दोस्तों ,इस वर्ष नवरात्री का शुभारम्भ दिनांक 21 मार्च २०१5 को हो रहा है
,और हर वर्ष की भांति हम सभी अपने मंदिर में पूजन करने के लिए जाने की
तैयारी में लग गए हैं.
फिर मैंने सोचा जाने से पूूर्व आप सभी के साथ नवरात्री की पूजा की विस्तृत जानकारी शेयर कर लूँ ,
नवबर्ष का आरंभ ------
भारतीय शास्त्र के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष से नव वर्ष का आरम्भ
होता है .ऐसा माना जाता है की इसी दिन ब्रह्मा जी ने स्रष्टि का सृजन किया
था .कुछ लोग ऐसा मानते हैं की भारत के प्रतापी राजा चन्द्रगुप्त
विक्रमादित्य के संवत्सर का आरंभ भी इसी दिन से किया था ,अतः इस दिन का
दोनों ही द्रष्टि से बहुत महत्त्व है .ऐसी मान्यता भी है की इसी दिन भगवन
विष्णु ने मतस्य अवतार लिया था ,
सवाल ये है की इसी दिन से ही संवत्सर का आरंभ क्यों माना जाता है ---
१.तो पहली बात यह मानी जाती है की चैत्र मास में ही वृक्ष और लताएं नव पल्लवित होती हैं .२. कहते हैं की माघ मास में मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है ,मगर इसका कहीं भी स्पष्ट उल्लेख नहीं है ,इसलिए चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही नव वर्ष का आरम्भ माना गया है .
इसी दिन पंचांग की पूजा का भी विधान है
,बहुत सारे घरों में पंडित के द्वारा पंचांग की पूजा कराकर संवत सुनकर नव
वर्ष का स्वागत किया जाता है ,मुझे याद है हमारे घर में भी हमारे पूज्य
दादाजी भी इस पूजा का आयोजन करते थे उसके बाद पूज्य पिताजी और फिर हमारे
भाइयों ने भी इस प्रथा को आगे बढाया .
चैत्र मास की प्रतिपदा को गुडी पड़वा के रूप में भी हर्सौलास से मनाया जाता है ,सूर्य को अर्घ्य देकर नव वर्ष का स्वागत किया जाता है .
चैत्र मास की प्रतिपदा को गुडी पड़वा के रूप में भी हर्सौलास से मनाया जाता है ,सूर्य को अर्घ्य देकर नव वर्ष का स्वागत किया जाता है .
नवरात्री साल में मुख्यतः २ बार मनाई जाती हैं जिसमें एक चैत्र पक्ष की
और दूसरी आश्विन पक्ष की .इन दोनों में ही सामान रूप से माँ दुर्गा और
कन्या की पूजा का विधान है .नवरात्री पूजन प्रतिपदा से दशमी तक मनाई जाती
है ,ज्यादातर लोग नवमी को कन्या पूजन करके उपवास समाप्त करते हैं .
पूजन के स्थान की अच्छी तरह से सफाई करें और अगर सम्भव हो तो पूजा घर को पानी से घो लें .
सभी भगवान् के वस्त्र बदल दें .माता की मूर्ति या फोटो को साफ़ कर लें . अब सबसे पहले घट स्थापना की तैयारी करें .
पूजन के स्थान की अच्छी तरह से सफाई करें और अगर सम्भव हो तो पूजा घर को पानी से घो लें .
सभी भगवान् के वस्त्र बदल दें .माता की मूर्ति या फोटो को साफ़ कर लें . अब सबसे पहले घट स्थापना की तैयारी करें .
पूजा के लिए जो भी स्थान नियत हो वो स्थान ,पहनने वाले वस्त्र हमेशा शुद्ध हों ,आसन काला नहीं होना चाहिए ,ऐसी मान्यता है की पूजन के लिए ऊन का आसन सर्वोत्तम होता है ,कहते हैं की काठ के ऊपर बैठकर पूजा करने से निर्धनता आती है ,और पत्थर पर बैठ कर पूजा करने से रोग आते हैं ,अतः कोशिश करनी चाहिए की पूजा का स्थान और आसन दोनों ही पवित्र हों .
घट स्थापना -----
- १ कलश मिटटी का या फिर पीतल का
- जों बोने के लिए एक मिट्टी का पात्र .
- जटा वाला नारियल .
- पान के या अशोक के पत्ते ५ .
- साफ़ मिट्टी या रेता .
- चावल १ बड़ा चम्मच .
- एक गहरी कटोरी .
- रोली ,और मोली .
- रूपये .इछानुसार .
- जोँ २ बड़े चम्मच
- नारियल के लिए कपडा .
विधि -------
- कलश को अच्छी तरह से धो कर उसमें साफ़ पानी भरें .
- अब मिट्टी के पात्र को भी पानी से धो लें .
- इसमें मिट्टी भरें .
- अब इस मिट्टी में जों को चारों ऒर फैलाते हुए बो दें .
- इसके बीच में कलश को रखें और कलश के गर्दन में मोली को चारों ओर से लपेटें .
- कटोरी में चावल भरकर इसे कलश के ऊपर रखें और कटोरी के नीचे पहले कलश में आम के पत्तों को सजाते हुए लगायें ताकि इस कटोरी से ठीक से सेट हो जाएँ .
- अब रोली की सहायता से कलश पर स्वस्तिक बनाएं .
- नारियल पर कपडा और मोली बाँध कर इसे चावलों वाली कटोरी के ऊपर रखें ,
- नारियल पर रूपये चढ़ाएं .
पूजन का सामान -----
- माता की चुन्नी .
- रोली , मोली ,
- साबुत सुपारी .९
- जायफल ९
- पान के पत्ते ९ .
- हवन सामिग्री १ किलो .
- काले तिल १ ० ० ग्राम .
- चावल धुले हुए ५ ० ग्राम .
- पञ्च मेवा कटी हुई २ बड़े चम्मच .
- गुड़ २ बड़े चम्मच .
- बूरा १ बड़ा चम्मच .
- देशी घी २ बड़े चम्मच .
- रुई .
- चावल पूजा के अक्षत के लिए
- धूप बत्ती .
- चौकी १ .
- बड़ा दिया १ .
- लाल कपडा बिछाने के लिए १ मीटर .
- गूगल १ चम्मच .
- ताम्र कुंड हवन के लिए
- कपूर .
- लौंग .
- दिए के लिए तेल या घी .
- पुष्प .
- बताशे प्रशाद के लिए
- जल का लोटा
- हवन के लिए आम की लकड़ी .
विधि -------------
- चोकी के ऊपर लाल वस्त्र बिछाकर माता को चुन्नी उढ़ाकर विराजित करें .
- हवन सामिग्री में गूगल ,मेवा,चावल,तिल ,जों, देशी घी ,बूरा,गुड़ को अच्छी तरह से मिलाकर सामिग्री को तैयार करें .
- अब माता के उत्तर पूर्व में घट रखें ,और दिए में घी या तेल सामर्थ्य के अनुसार भर कर और माता के समक्ष रखें .
- थाली में रोली,मोली ,चावल ,धूप बत्ती ,लौंग ,कपूर ,पुष्प ,बताशे रखें।
पूजन की विधि -----------
- आसन को बिछा कर बैठें और माँ का ध्यान करें .
- जल से आचमन करें,अब माता को स्नान कराएं ,पुष्प समर्पित करें ,
- टीका करें ,दिया प्रज्व्व्लित करें और फिर माता की आराधना करें
- आराधना में माता की स्तुति ,चालीसा पाठ और आरती करें .
- अब हवन के लिए कुंड में लकड़ी लगाकर कपूर से प्रज्वलित करें और सभी लोगों को सामान भाग से सामिग्री दे कर हवन शुरू करें .
- हवन करने के बाद प्रशाद ,पान चढ़ाएं .
- हवन के लिए या तो पंडित बुलाकर हवन कराएं या फिर स्वयं करें ,स्वयं हवन करने के लिए मन्त्र किसी पंडित से पूँछ कर ही करें ,अन्यथा न करें .
- अंत में सबको प्रशाद बांटें .
उपवास ---
- नवरात्री मे अधिकतर लोग उपवास रखते हैं ,अगर आप ९ दिनों का व्रत नहीं रख सकते हैं तो पहला और आखिरी यानि की प्रतिपदा और अष्टमी का व्रत रखें .
- उपवास में फल ज्यादा खाएं और पानी भी लगातार पियें ताकि शरीर में पानी की कमी न हो .
- व्रत ,उपवास शरीर के क्षमता के अनुसार ही रखना चाहिए .
- नवरात्रि में माता का कीर्तन अवश्य करें ,ऐसी मान्यता है की यदि माता के छंद नहीं गए जाते है तो माता एक पैर से खड़ी रहती हैं .
- संभव हो सके तो माता के मंदिर भी जायें .
माँ दुर्गा के ९ रूपों की पूजा का विधान नवरात्री में है,और माँ के ९ रूपों की व्याख्या इस प्रकार है -----
- प्रथम हैं माँ शैलपुत्री ,हिमालय पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा .
- नवरात्री के दुसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है ,तप और जप करने के कारन इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा .
- माँ चंद्रघंटा की पूजा नवरात्री की तीसरे दिन की जाती है ,इस रूप में माँ के मस्तक पर अर्धचन्द्र बना है अतः इस रूप को चंद्रघंटा कहते हैं .
- चतुर्थी को माँ कूष्मांडा की अर्चना का विधान है .ऐसा कहा जाता है मंद हंसी के द्वारा माँ ने ब्रम्हांड को उत्पन्न किया .इसलिए इन्हें कुष्मांडा कहा जाता है
- चार भुजाओं वाली माँ स्कंदमाता की अर्चना पंचमी को की जाती है .
- जिनकी उपासना से भक्तों के रोग ,शोक ,भय ,और संताप का विनाश होता है ऐसी माँ कात्यायनी की उपासना छठे दिन की जाती है .
- काल से रक्षा करने वाली देवी कालरात्रि की उपासना सातवें दिन की जाती है .
- शांत रूप वाली ,भक्तों को अमोघ फल देने वाली देवी महागौरी की पूजा आठवें दिन की जाती है .
- भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी सिध्दात्री की पूजा नवें दिन की जाती है .
ऐसा माना जाता है की ,नवराति में माँ की आराधना करने में सबसे पहले माता के १ ० ८ नामों के पढना चाहिए ,जो इस तरह हैं ---------
- सती .
- साध्वी .
- भवप्रीता .
- भवानी
- भवमोचनी .
- आर्या .
- दुर्गा .
- जया .
- आध्रा .
- त्रिनेत्रा .
- शूलधारिणी .
- पिनाकधारिणी .
- चित्रा .
- चंद्रघंटा .
- महातपाः .
- मनः .
- बुद्धिः .
- अहंकारा .
- चित्तरूपा .
- चित्ता
- चितिः
- सर्वमंत्रमयी .
- सत्ता .
- सत्यान्द्स्वरूपिनी .
- अनंता .
- भाविनी .
- भाव्या .
- भव्या .
- अभव्या .
- सदागति .
- शाम्भवी .
- देवमाता .
- चिंता .
- रत्नप्रिया .
- सर्वविद्या .
- दक्ष कन्या
- दक्ष यग्यविनाशिनी
- अपर्णा .
- अनेकवर्णा .
- पाटला .
- पाटलावती .
- पट्टाम्बर परिधाना .
- कल्मंजीर्रंजनी .
- अमेयविक्रमा .
- क्रूरा .
- सुंदरी .
- सुरसुन्दरी .
- वनदुर्गा .
- मातंगी .
- मतंग्मुनिपूजिता .
- ब्राह्मी .
- माहेश्वरी .
- ऐन्द्री .
- कौमारी .
- वैष्णवी .
- चामुंडा .
- वाराही .
- लक्ष्मी .
- पुरषा कृति .
- विमला .
- उत्कार्शनी
- ज्ञाना .
- क्रिया .
- नित्या .
- बुद्धिदा .
- बहुला .
- बहुलप्रेमा
- सर्ववाहन वाहना .
- निशुम्भ्शुम्भ्हन्नी .
- महिशाशुर मर्दिनी .
- मधुकैटभ हननी .
- चंड मुंड विनाशिनी .
- सर्व असुर विनाशा .
- सर्वदानव घातिनी .
- सर्वशात्र्मायी .
- सत्या .
- सर्वाशास्त्र्धरिणी .
- अनेकाश्त्र हस्ता
- अनेकाश्त्र धारिणी .
- कुमारी .
- एक कन्या .
- कैशोरी .
- युवती .
- यति .
- अप्रोढ़ा .
- प्रोढा .
- वृद्ध माता .
- बलप्रदा .
- महोदरी .
- मुक्तकेशी .
- घोररूपा .
- महाबला .
- अग्निज्वाला .
- रौद्रमुखी .
- कालरात्रि .
- तपस्वनी .
- नारायणी .
- भद्रकाली .
- विष्णुमाया .
- जलोदरी .
- शिवदूती .
- कराली .
- अनंता .
- परमेश्वरी .
- कात्यायनी .
- सावित्री .
- प्रत्यक्षा .
- ब्रह्मवादिनी .
______________________________________________________________________________
अब माता की सप्तसती मन्त्रों से पूजा अर्चना आरम्भ की जानी चाहिए ,जो इस प्रकार से है ----------
- देवी प्रप्न्नाति हरे प्रसीद प्रसीद मार्त जगतो अखिलस्य ,प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमीश्वरी चराचरस्य .
- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ,शरण्ये त्रयम्बिके नारायणी नमोस्तुते ।
- देवी त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्य विधायिनी ,कलोहि कार्य सिद्धर्थ्य मुयाम ब्रूह यत्नतः .
- ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा , बलादा कृष्य मोहाय महामाया प्रयक्षति ।
- दुर्गे स्मरता हरसि भीतिमशेष जन्तोः ,स्वस्थे स्मरता मतिमतीव शुभां ददासि ।
- दारिद्य दुःख भय हारिणी
का त्वन्द्या ,सर्वोपकार करनाय सदार्द चिता । शरणागत दीनार्त परित्राण
परायने ,सर्व्स्यार्ति हरे नारायणी नमोस्तुते ।
- सर्वस्वरूपे सेर्वेषे सर्वशक्ति समन्विते ,भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे नमॉस्तुते ।
- रोगान शेशान पहन्सि तुष्टा ,रुष्टा तू कामान सक्लांभिशितान । त्वं आश्रीतानाम न विपिन्नरानाम ,त्व्माश्रिता ह्याश्रिता प्रयन्ति '
- सर्वबाधा प्रस्मनम त्रैलोकश्य अखिलेश्वरी ,एवमेव त्वया कार्यमस्द्वैरी .विनाशं ।
प्रतिदिन माँ दुर्गा के संक्षिप्त स्तुति सम्पूर्ण कार्य और मनोरथ पूर्ण करने वाली है ।
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तत्पचात माँ का कीलक स्त्रोत का पाठ किया जाना चाहिए -------
महर्षि मार्कण्डेय जी बोले -----
कल्याण प्राप्ति हेतु निर्मल ज्ञानरूपी शरीर धारण करने वाले दिव्य नेत्रों
वाले ,तथा मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करने वाले भगवन शिव जी! को नमस्कार है
,इस धरा पर जो मनुष्य इस कीलक मन्त्र को जानने वाला है वाही कल्याण को
प्राप्त करता है । जो केवल सप्तशती से ही देवी की स्तुति करता है उसे इस
कीलक से देवी की सिद्धि हो जाती है ।देवि की सिद्धि के लिए दूसरी साधना की
आवश्यकता नहीं रह जाती ,लोगों के मन में आशंका थी की केवल सप्तशती के
मन्त्रों की उपासना अथवा अन्य मन्त्रों की उपासना से भी सामान रूप से सब
कार्य सफल हो जाते हैं तो इनमें से कौन सा साधन श्रेष्ठ है ।
इन सभी शंकाओं को लेकर भगवन शंकर ने अपने सामने आये भक्तों को
समझते हुए कहा---- सप्तशती नामक सम्पूर्ण स्त्रोत कल्याण को देने वाला है
और तभी भगवन शंकर ने माँ के सप्तशती नामक स्त्रोत को गुप्त कर दिया । इसलिए
मनुष्य इसको बड़े पुण्य से प्राप्त करता है ।
जो भी मनुष्य अष्टमी को या कृष्ण पक्ष की चतुर्दसी को देवी को अपना
सर्वस्व समर्पित कने के पश्चात् उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करता है ,उस पर
माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं,अन्यथा नहीं । इस प्रकार शिव जी द्वारा इस
स्त्रोत को कीलित किया गया है ,और जो पुरुष इस स्त्रोत को निश्कीलित करके
नित्य प्रति पाठ करता है ,वह सिद्ध हो जाता है और वही गंधर्व होता है ।
इस संसार में सर्वत्र विचरते हुए भी उस मनुष्य को भय नहीं रहता म्रत्यु के
पश्चात मोक्ष प्राप्त करता है । किन्तु इस कीलक की विधि को जानकार ही
सप्तसती का पाठ करना चाहिए । कीलन और निष्कीलन के ज्ञान के पश्चात यह
स्त्रोत निर्दोष हो जाता है । ऐसा कहा जाता है , की स्त्रियों में जो
सौभाग्यहैं ,इसी पाठ की कृपा स्वरूप हैं ।
इस स्त्रोत का पाठ उच्च स्वर में करने से ही की जानी चाहिए । उस
देवी की स्तुति अवश्य की जानी चाहिए जिसके प्रसाद स्वरूप सौभाग्य ,आरोग्य
,सम्पत्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
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इसके उपरांत अर्गला स्त्रोत का पाठ करना चाहिए जो इस प्रकार है --------------
जयंती ,मंगला ,काली ,भद्रकाली,कपालिनी ,दुर्गा ,क्षमा ,शिव,धात्री स्वाहा ,स्वधा इन रूपों में प्रसिद्ध माँ तुमको नमस्कार है ..
- सब जगह व्याप्त प्राणियों के दुःख हरने वाली माँ !कालरात्रि तुम्हें नमस्कार है ,मधुकैटभ का नाश करने वाली माँ ब्रह्मा जी को वर देने वाली माँ तुम मुझे रूप दो जय दो और काम क्रोध रुपी शत्रुओं का नाश करने वाली माँ तुमको मेरा नमस्कार है .।
- महिषासुर मर्दिनी माँ! भक्तों को सुख देने वाली तुमको नमस्कार हो ,तुम मुझे रूप दो के दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो .।
- रक्तबीज का वध करने वाली ,माँ !चंड मुंड विनाशिनी ,तुम मुझे रूप,जय दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो .।
- शुम्भ-निशुम्भ का मर्दन करने वाली हे देवी! मुझको स्वरूप दो ,जय दो और मेरे काम,क्रोध रुपी शत्रुओं का नाश करो .।
- हे सम्पूर्ण सोभाग्य को देने वाली !,पूजित युगल चरणों वाली माँ तुम मुझे रूप दो ,यश दो ,मेरे शत्रुओं का नाश करो ।
- तुम सब शत्रुओं का नाश करने वाली! हो ,तुम्हारे रूप और चरित्र अमित हैं ,मुझे रूप दो ,यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
- इस संसार में जो भक्ति से तुम्हारी पूजा करते हैं सबके पापों का नाश करने वाली माँ !तुम उन सबको रूप और यश दो और उनके शत्रुओं का नाश करो ।
- माँ रोगों का नाश करने वाली जो भी भक्त तुम्हारी पूजा भक्ति पूर्वक करते हैं उनको रूप और जय दो ,उनके शत्रुओं का नाश करो ।
- हे देवी! माँ मुझे सोभाग्य और आरोग्य दो मुझे रूप दो जय दो और मेरे काम,क्रोध रुपी शत्रुओं का नाश करो ।
- हे माँ ! जो मुझसे बैर रखते हैं उनका नाश करके मेरा बल बढाओ ,मुझे रूप,जय दो मेरे शत्रुओं का नाश करो ।
- माँ! मेरा कल्याण करके मुझे उत्तम सम्पत्ते प्रदान करो ,मुझे रूप दो जय दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो ।
- देवताओ और राक्षसों के मुकुटों द्वारा स्पर्श किये चरणों वाली माँ !अम्बे मुझे स्वरूप ,जय दो ।
- हे देवी! अपने भक्तों को विद्वान ,लक्ष्मीवान और कीर्तिमान बनाकर उन्हें रूप और जय दो ,उनके शत्रुओं का नाश करें ।
- हे देवी ! प्रचंड दैत्यों के मान का नाश करने वाली चण्डिके !मुझे रूप दो जय दो ,और मेरे काम क्रोध रुपी शत्रुओं का नाश करो .
- हे माँ ! चार भुजाओं वाली परमेश्वरी !मुझे रूप ,जय दो मेरे शत्रुओं का नाश करो ।
- विष्णु से सदा स्तुति की हुई माँ ! हिमालय कन्या पारवती के भगवान् शंकर से स्तुति की गयी माँ ,मुझे रूप दो जय दो ,और मेरे शत्रुओं का नाश करो ।
- इंद्र द्वारा सद्भाव से पूजित माँ! तुम मुझे रूप दो जय दो और मेरे काम क्रोध रुपी शत्रुओं का नाश करो ।
- प्रचंड ,भभुदंड से दैत्यों का दमन करने वाली माँ !मुझे रूप दो ,यश दो ,मेरे शत्रुओं का नाश करो ।
- हे देवी! तुम अपने भक्तों को असीम आनंद देने वाली हो ,मुझे रूप ,जय दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो
- मेरी इच्छानुसार चलने वाली सुंदर पत्नी प्रदान करो ,माँ ! जो संसार सागर से तारने वाली हो और उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो .
जो मनुष्य इस महा स्त्रोत का पाठ करता है वह श्रेष्ठ फल प्राप्त करता है और प्रचुर धन भी प्राप्त करता है .
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दोस्तों में एक विशेष स्तुति माता की करती हूँ और आप सभी के साथ इसे बांटना चाहती हूँ ,माँ की ये स्तुति समस्त सुखों को देने वाली है ------
हे सिंघ्वहिनी जगदम्बे तेरा ही एक सहारा है --------
- मेरी विपदाएं दूर करो ,करुणा की द्रष्टि इस ओर करो । संकट के बीच घिरा हूँ माँ आशा से तुम्हें पुकारा है .
- कुमकुम ,अक्षत और पुष्पों से नैवेध धूप और अर्चन से । नित तुम्हें रिझाया करती हूँ क्यों अब तक नहीं निहारा है .
- जब-जब मानव पर कष्ट पड़े तब-तब तुमने अवतार लिया । हे कल्याणी ! हे रुद्राणी ,इन्द्राणी रूप तुम्हारा है .
- भाव -बाधाएं हरने वाली जन-जन की बाधाएं हरती हो । मेरी भी बाधाएं हरना जग जननी नाम तुम्हारा है .
- कौमारी ,सरस्वती हो तुम ,ब्रम्हाणी तुम वैष्णवी हो ।कर शंख चक्र और पुष्प लिए लक्ष्मी भी रूप तुम्हारा है .
- मधुकैटभ सा दानव मारा और चंड मुंड को चूर किया ।हे महेश्वरी ,महामाया चामुंडा रूप तुम्हारा है .
- धूम्रलोचन को तुमने मारा ,महिषासुर तुमने संहारा है । हे सिंघ्वाहिनी !अष्टभुजी नवदुर्गा रूप रुम्हारा है .
- था शुम्भ-निशुम्भ असुर मारा और रक्तबीज का रक्त पिया । हे शिवदूती! हे गौरी माँ काली भी रूप तुम्हारा है .
- जब वैश्य -सुरथ ने तप करके अपना तन तुम्हें चढ़ाया था । दर्शन दे जीवनदान दिया ज्योतिर्मय रूप तुम्हारा है .
- तेरी शरणागत में आकर तेरी ही महिमा को गाकर ।माँ ! सप्तशती के मन्त्रों से भक्तों ने तुहें पुकारा है .
हे सिंघ्वाहिनी जगदम्बे तेरा ही एक सहारा है ---------------------
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