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Thursday, May 19, 2016

भजन







बंसी बजाने वाले बंसी की धुन सुनाना, बंसी की धुन सुनाना,
जीवन मेरा अँधेरा तुम ज्योत बनके आना, तुम ज्योत बन के आना -

१. कोई नहीं हमारा नैया का है खिवैया -२ 
               तेरे सिवा कन्हैया मेरा कहाँ ठिकाना, मेरा कहाँ ठिकाना 

२. अज्ञानता हमारी प्रभुजी ये दूर करना -२ 
              गीता सुना के अपना प्रेमी मुझे बनाना, प्रेमी मुझे बनाना  ॥  

Friday, May 13, 2016

माँ वैष्णो देवी यादगार यात्रा

                              यहाँ मैं यह बताना चाहूंगी की सभी चित्र मैंने गूगल से लिए हैं -

हर कोई अपने जीवन में कभी घूमने की जगह पर या फिर कभी धार्मिक स्थल पर भ्रमण के लिए अवश्य जाता है वहां से कुछ यादगार पल अपने मन में समेत कर लाता है ।
मैंने भी इस तरह की कई यात्राएं की हैं पर सबसे यादगार और खुशनुमा यात्रा के बारे में कहना चाहूंगी की पिछले वर्ष की माँ वैष्णो देवी की यात्रा हमारे लिए सच में बहुत ही यादगार रही ।
इससे पहले हम जब माँ के दर्शनार्थ गए तब जम्मू से कटरा तक कोई ट्रेन नहीं जाती थी, तो या तो टैक्सी या फिर बस के द्वारा कटरा तक का सफर करना होता था , फिर वहां से आगे  के लिए पैदल, टट्टू, या खच्चर के द्वारा माँ के दरबार में पहुंचा जाता है ।
                                                            जम्मू से कटरा की ट्रेन
                                                             जम्मू से कटरा

पर अब जम्मू से कटरा के लिए ट्रेन भी जाने लगी तो हमने इसी सुविधा का प्रयोग किया । हम सभी परिवार जन जुलाई के दुसरे माह में गए थे तब वहां का मौसम खुशनुमा तो होता ही है पर बारिश का मौसम भी होता है ।
हम ट्रेन से दिल्ली से जम्मू के लिए रवाना हुए, दिल्ली से जम्मू का सफर लगभग ६०० किलोमीटर का है जिसमें लगभग १० घंटे लग जाते है ।
दिल्ली से जम्मू तक की यात्रा के लिए ट्रेन का किराया ३०० से २३०० तक लग जाता है ।
परिवार के लोगों का साथ होने से सफर लुत्फ़ उठाते हुए बीतता है यह तो आप सभी को मालूम ही है ।
 हम सुबह करीब १० बजे करीब जम्मू पहुँच गए, थोड़ा रुक कर कुछ खा पीकर हम  वहां से ट्रेन से जम्मू के लिए रवाना हुए,  जम्मू से कटरा का सफर इतना आनंददायक था की उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती । ट्रेन कभी पहाड़ों के बीच से कभी गुफाओं के बीच से और कभी पुल से गुजर रही थी जब पहाड़ों के बीच से गुजरती तो पहाड़ों से रिस्ता हुआ ठन्डे पानी की छीटें तन को सिहरा देतीं, जब खायी से गुजरती तब मन में थोड़ा सा कम्पन होता और जब पहाड़ों के साथ चलते हुए निकलती तो और  लगता, कुल मिलाकर ट्रेन का सफर बड़ा ही  आनंददायी था । लगभग ४ बजे हम कटरा पहुँच गए थे
अब हम श्राइन बोर्ड के होटल में थे जिसमें साफ़ सफाई का बड़ा ही ध्यान दिया गया था , हम १० लोग थे तो रूम में १० बेड  और उनपर साफ़ चादरें बिछीं थीं । आप इन सबके लिए ऑनलाइन बुकिंग कराकर जाएं तो बेहतर होगा अन्यथा वहां जाकर इन सब में काफी समय निकल जाता है ।  वहां थोड़ा आराम जरने के उपरांत हमने खाना खाया ।
फिर हम सभी ऑटो से उस स्थान  तक पहुंचे जहाँ से यात्रा आरम्भ होती है - दरबार में जाने के लिए कुछ लोग पालकी, या हेलीकॉप्टर से भी जाते हैं.

                                                              पैदल यात्रा का मार्ग

खैर, अब शुरू हुई हमारी असली यात्रा यानि माँ वैष्णो के भवन के लिए चढ़ाई, हमने तय किया की हम पैदल ही माँ के भवन तक का मार्ग तय करेंगे तो रात्रि का सफर ऐसे में उत्तम रहता है, हम शाम के ७ बजे चढ़ाई के लिए रवाना हुए , जय माता दी, जय माता दी न केवल हम सब अपितु मार्ग में चलने वाले सभी यात्री भी जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे।
रात्रि के १ बजे के करीब हम अर्द्धकुमारी पहुंचे और तभी बारिश होने लगी और बारिश भी ऐसी की आगे बढ़ने के लिए सोच में पड़ गए तो हमने वहां २ घंटे का विश्राम लिया और फिर आगे की यात्रा आरम्भ की। प्रातः की किरणें धीरे -धीरे पांव पसारने लगी थीं परन्तु बारिश और घने कोहरे ने सूर्य नारायण के उजाले पर ग्रहण लगा रखा था ।

                                                      कहीं कहीं तो इतनी अधिक बारिश हो रही थी की मार्ग में आगे बढ़ने के लिए सोचना पड़ रहा था फिर भी हम सब हिम्म्त से चलते रहे । एक दो बार तो ऐसा लग रहा था की राह में बारिश के साथ पत्थर की बड़ी शिला भी गिर पड़ेगी हम सभी ने हिम्म्त नहीं हारी और चलते ही गए और फिर हमारे सामने पवित्र भवन की झलक दिखने लगी दिल में उमंग और ख़ुशी दोनों का ऐसा मिलन हो रहा था की कैसे बताऊँ । बादलों की बीच माँ का भवन ऐसा लग रहा था मानों बस स्वर्ग यहीं है ।
यहाँ हमने अपना सामान रखवाया और दशर्न की पर्ची पर मोहर लगवाकर स्नान करने के लिए गए और फिर दर्शनर्थ के लिए लाइन में लगे धीरे- धीरे हम माँ की पवित्र गुफा की ओर बढ़ रहे थे और फिर वो समय आया जब हम माँ के दरबार में थे , नतमस्तक हो माँ के आगे झुकते ही आंसुओं की लड़ी लग गयी , जो मेरे साथ अक्सर होता है खुद की माँ न होने के कारण माँ दुर्गा के हर स्वरूप को मैंने अपनी माँ माना है इसलिए माँ के सामने झुकते ही ख़ुशी के आंसूं निकल ही आते हैं ।
 अधिक देर रुकने की अनुमति नहीं है पर जिस समय हम दर्शन के लिए गए थे अधिक बारिश के चलते भीड़ नहीं थी तो हम आराम से माँ के दर्शन कर पाए और बाहर आये यह हमारा सौभाग्य था की उसी समय किसी ने अपनी मन्नत पूरी होने पर प्रसाद चढ़ाया था जो हमें भी मिला।
इतनी देर के लिए हम गुफा के बाहर पहले नहीं रुक पाए थे जितनी देर के लिए इस बार रुके थे बहार का नज़ारा बस देखते ही बन रहा था हर तरफ काली घटाएं और बीच में माँ की सफ़ेद उज्ज्वल गुफा के द्वार ।
 वहां से वापस आकर भोजन ग्रहण किया और फिर नीचे उतरने के लिए प्रस्थान किया, अत्यधिक बारिश के कारन हम भैरों जी के दर्शन हेतु नहीं जा सके । पर हाँ नीचे से ही उनके मंदिर के दर्शन हुए यह भी मेरे लिए यादगार पल रहा ।
हम सभी काफी थक गए थे इस कारण हमने अर्द्धकुमारी तक का मार्ग टैम्पो से तय किया और वह से पैदल , नीचे आने के बाद माँ के पहाड़ों के दर्शन भी कुछ कम मनोरम नहीं था -
                                                               रात्रि का नज़ारा

आप यदि माँ वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जाना चाहते हैं तो आपको इस लिंक पर सारी सूचनाएं मिल जाएँगी -

http://www.indianrail.gov.in/

हेलीकॉप्टर की बुकिंग के लिए इस वेबसाइट पर सूचना प्राप्त कर सकते हैं -

 http://www.jammu.com/shri-mata-vaishno-devi-yatra/online-helicopter-booking.php

                                                               




Thursday, May 12, 2016

मोहिनी एकादशी

आने वाली 17 मई को मोहिनी एकादशी है ,जो की बैशाख माह के शुक्लपक्ष को होती है और इस वर्ष ये एकादशी 17 मई को पड़  रही है ।
 हर एकादशी का अपना अलग महत्व है ,कहा गया है की इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से निन्दित कर्मों से छुटकारा मिल जाता है ।
इस दिन पुरषोत्तम राम की पूजा का विधान है ,भगवन राम की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध करने के पश्चात उच्चासन पर विराजमान करने के बाद धूप  ,दीप एवम मीठे फलों से पूजन किया जाना चाहिए .। रात्रि में कीर्तन करते हुए मूर्ति  के समीप ही शयन करना चाहिए ,और फिर प्रातः काल में स्नानादि से निवृत होकर दान करें और फिर अन्न ग्रहण करना चाहिए ।
 इस एकादशी का महत्तम राजा  राम ने महर्षि वशिष्ठ से पूछा था ,वशिष्ठ जी ने कहा ----सरस्वती नदी के तट पर चन्द्रावती नाम की नगरी है ,उसमें धृत राजा राज्य करता था  । एक धनपाल नाम का वैश्य  रहता था ,बड़ा ही धर्मात्मा और विष्णु का भक्त था । उसके पांच पुत्र थे, बड़ा पुत्र महापापी था । जुआ खेलता ,मद्धपान  करना नीच कर्म करने वाला था । उसके माता, पिता ने कुछ धन देकर उसे घर से निकाल दिया । आभूषणों को बेचकर कुछ दिन उसने काटे ,अंत में धनहीन हो गया और चोरी करने चला ,पुलिस ने पकड़ कर बंद कर दिया । दंड की अवधि व्यतीत हुई तो नगरी से निकाला गया , वन में पशु -पक्षियों को मारता -खाता समय व्यतीत करने लगा ।
एक दिन उसके हाथ शिकार न लगा ,भूखा- प्यासा कोठर मुनि के आश्रम पर आया ,हाथ जोड़कर बोला मैं आपकी शरण में  हूँ ,पातकी हूँ ,कोई उपाय बताकर मेरा उद्धार करें ?
मुनि बोले वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का एक व्रत करो ,अन्नत जन्मों के पाप भस्म हो जायेंगे । मुनि की शिक्षा से वेश्य कुमार ने मोहिनी एकादशी का व्रत किया । वह पापरहित होकर विष्णु लोक को चला गया .

इसका महात्म्य सुनने  से हजार  गायों के दान का फल मिलता है ।  

इस दिन गाय के मूत्र का सागार लेना चाहिए । 

एकादशी के व्रत का पुराणों में बहुत महत्व बताया गया है यदि व्रत न रह सकें तो इसकी कथा सुनने मात्र से भी पुण्य प्राप्त होता है।