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Wednesday, May 28, 2014

vat savitri vrat/वट सावित्री व्रत /28 may 2014


वट सावित्री की पूजा बचपन से ही  घर में देखती आई थी, मालूम था विवाह के बाद मुझे भी करना होगा ,एक बात हमेशा ही मन में खटकती रही है क्या पति की आयु के लिए सभी सुहागिनें व्रत पूजा करती हैं पर उनका क्या जो जीवन दूसरों को समर्पित कर अपनी आयु भी पति और पुत्र को न्योछावर करने के लिए पूरी श्रद्धा से समर्पित रहती है ,खैर जो भी हो शादी हुई और मैंने भी व्रत किया ,क्यूंकि घर की परम्परा थी निभाया ,चलिए जानते हैं की इस पूजा का महत्त्व क्या है और किस तरह किया जाता है -------------
वर्ष २०१५ में यह व्रत १ जून को पड़ रहा है -----
इस व्रत को सुहागिनें अपने पति की लम्बी आयु के लिए करती है ,और वटवृक्ष की पूजा करती हैं ,
जैसा की सभी ने इससे सम्बंधित कथा को पढ़ा और सुना ही होगा कि इस पूजा का आरम्भ सावित्री के वटवृक्ष की पूजा करने के बाद ही आरम्भ हुआ है।
हमारे हिन्दू धर्म में अक्सर सभी व्रत व् पूजा बड़े ही विधिविधान से किये जाते है ,हिन्दू स्त्रियां अपने घर में भी प्रतिदिन की पूजा भी बड़ी ही विधि पूर्वक करती हैं ,ऐसा माना जाता है की सुहागिनों के द्वारा की गयी किसी भी पूजा का उनके गृहस्थ जीवन पर बड़ा असर पड़ता है।
केवल हिन्दू घर्म में ही नहीं वरन अन्य धर्मों में भी उनके पूजा आदि विधि पूर्ण किया जाता है ,परन्तु हिन्दू धर्म में ३३ करोड़ देवी देवता है ऐसा माना गया है ,हमारे यहाँ तो प्रतिदिन ही पूजनीय है ,इसीलिए सोमवार,मंगलवार,वीरवार,शुक्रवार ,शनिवार और रविवार का व्रत भी किया जाता है।
वट सावित्री की पूजा में स्त्रियां प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर पकवान बनाती है और फिर बरगद के पेड़ के नीचे विधि पूर्वक पूजा संपन्न करने के उपरान्त ही जल ग्रहण करती हैं।
 पहले तो परिवार संयुक्तहोते थे तो काफी सारी गृहणियां एक साथ घर से पूजा करने के लिए निकलती थी और वो नज़ारा देखने के काबिल होता था पर अब तो  शहरों मैं सिमटे एकल परिवार और उनमें से कुछ तो शायद इस तरह के छोटे त्योहारों के नहीं भी करते हैं कुछ तो काम के कारण और कुछ पूजा के लिए सामिग्री उपलब्ध न होने के  कारण।
 हाँ छोटे शहरों में अभी भी वट सावित्री पूजा का बहुत महत्त्व भी है और इसे विधि पूर्वक मनाया जाता है -

विधान -----

            पूजा के लिए प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर स्वछ वस्त्र पहन कर पूजा के लिए मीठी पूरी ,भीगा हुआ चना ,कच्चा सूत ,पुष्प ,धूप ,जल ,घी का दिया आदि एक थाली में रख कर बरगद के वृछ के नीचे बैठ कर पूजा की जाती है .
         बहुत सी जगह पर मीठी पूरी के साथ नमकीन पूरी व् मीठे बरगद भी बनाये जाते हैं ,

कथा -----

            प्राचीन काल में मद्र देश के राजा अश्वपति के सर्वगुण संपन्न कन्या थी ,जो सावित्री देवी की पूजा के पश्चात उत्पन्न हुई थी अतः उसका नाम सावित्री रखा गया । कन्या के युवा होने पर राजा में अपने मंत्री के साथ वर चुनने के लिए भेज दिया । जिस दिन सावित्री वर चुन कर दरबार में आई ,महर्षि नारद पधारे हुए थे । 
            जब नारद ने सावित्री से वर का नाम पूछा तो सावित्री ने बताया महाराज धुम्त्सेन ,जिनका राज्य छीन लिया गया और तथा जो अंधे हो चुके थे और दर- बदर घूम रहे हैं ,उनके के एकलौते पुत्र सत्यवान को मैंने अपने पति के रूप में  चुना है । 
           नारद जी ने अश्वपति को बधाई दी परन्तु एक बात और बताई की जब सावित्री बारह वर्ष की होगी तब इसके पति की म्रत्यु हो जाएगी ,तब राजा ने सावित्री को दूसरा वर चुनने को कहा ,परन्तु सावित्री ने कहा ,पिताजी मैं आर्य पुत्री हूँ जो जीवन में एक ही वर चुनती है । 
             विवाह हुआ ,सावित्री परिवार सहित जंगल में सास -ससुर की सेवा करते हुए जीवन व्यतीत करने लगी ,जब सावित्री बारह वर्ष की हुई ,उस दिन सत्यवान लकड़ी काटने जंगल में जाने लगे तब सावित्री ने भी साथ चलने को कहा ,
           जंगल में सत्यवान ने मीठे फल लाकर सावित्री को दिए और स्वयं लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ गए .थोड़ी ही देर में सत्यवान को सर में बहुत तेज़ दर्द हुआ और वो पेड़ से उतर कर आये और सावित्री की गोद में सर रखकर लेट गए ,थोड़ी ही देर में उनके प्राण पखेरू हो गये ,। 
            जब यमराज उनकी आत्मा को ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे हो चलीं ,यमराज ने कहा "पुत्री म्रत्यु के पश्चात जीवित मनुष्य स्वर्ग नहीं जाता ,अतः तुम वापस जाओ " इस पर सावित्री ने कहा ,"महाराज पत्नी क पतीत्व पति के साथ है ,अतः जहाँ पति जायेंगे वहीँ मैं भी जाउंगी " इस पर यमराज ने वर मांगने को कहा ---सावित्री ने सास- ससुर की खोयी नेत्र ज्योति का वर मांगा . यमराज ने तथास्तु कहा और आगे को चल पड़े । 
           सावित्री फिर भी उनके पीछे चलती रही ,यमराज ने पुनः वापस जाने को कहा परन्तु सावित्री की धर्मनिष्ठा देखकर पुनः वर मांगने को कहा ! सावित्री ने सास-ससुर को राज्य मिल जाये ,ऐसा वर मांगा ,यमराज ने पुनः तथास्तु !कहा और आगे चल दिए । 
       सावित्री  अभी भी उनके पीछे चल रही थी ,इस पर यमराज ने कहा पुत्री तुम विपरीत दिशा में वापस जाओ ,इस पर सावित्री बोली --"पति के बिना पत्नी के  जीवन की कोई सार्थकता नहीं है "इस पर यमराज ने पुनः वर मांगने को कहा ! सावित्री ने सौ पुत्रों की माँ होने का वर माँगा ,यमराज तथास्तु !कहकर आगे बढ़ चले । 
     अब भी सवित्री को पीछे आता देख यमराज ने झुंजला कर कहा पुत्री ,अब तो मैं तुम्हें मुंह मांगा वर भी दे चूका हूँ ,अब तो विपरीत दिशा में चली जाओ " इस पर सावित्री ने कहा :महाराज ! सौ पुत्रों की माँ बिना पति के कैसे बन सकती हूँ " यमराज ने उसकी पतिव्रता से प्रसन्न होकर सत्यवान को जीवन दान दे दिया ,और स्वयं वापस चले गए । 
            प्रसन्नचित सावित्री उसी जगह वापस आई जहाँ सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था ,उसने बरगद के पेड़ की परिक्रमा की ,इसी के साथ सत्यवान भी जीवित हो उठे । सावित्री घर वापस आई सास- ससुर की नेत्रों की ज्योति वापस आ गयी ,उनका खोया राज्य भी मिल गया ,इस तरह सावित्री ने अपनी धर्मनिष्ठा ,विवेक से न केवल अपने पति का जीवन पाया अपितु जो भी खोया हुआ था प्राप्त किया । उसकी कीर्ति सारे संसार में फैल गयी । 

कथा के उपरान्त बरगद की परिक्रमा कच्चे धागे से करने के बाद सुहागिनें भीगा हुआ चना और बरगद के फल से अपने व्रत को तोड़ती हैं .


Thursday, May 22, 2014

भजन

                                                             भजन
हमें निज धर्म चलना सिखाती सिखाती रोज रामायण ,सदा शुभ आचरण करना  रामायण
१. जिन्हें संसार सागर से उतर कर पार जाना है ,
                                                      उन्हें सुख से किनारे पर लगाती रोज रामायण ,,,,हमें
२. कहीं छवि बिष्णु की बांकी ,कहीं शंकर की है झांकी
                                                        कहीं आनंद झूले पर झूलती रोज रामायण ---हमें
३. कभी वेदों के सागर में ,कभी गीता की गंगा में
                                                   कभी भक्ति सरोवर में डुबाती रोज रामायण ,,,हमें ----
४. सरल कविता के कुंजों में बना मंदिर है हिंदी का ,
                                                    पुजारी बिंदु से कविता मिलाती रोज रामायण ,हमें ------------

Monday, May 19, 2014

अपरा / अचला एकादशी व्रत पूजा



अपरा एकादशी ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है इसे अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है ,इस व्रत के करने से ब्रह्मा हत्या ,परनिंदा ,भूतयोनि जैसे निकृष्ट कर्मों से भी छुटकारा मिलता है। जो फल बद्रिकाश्रम में निवास करने से मिलता है और जो फल सूर्यग्रहण में कुरक्षेत्र में स्नान से मिलता है वह फल इस एकादशी के व्रत से मिलता है। 

इस वर्ष अपरा एकादशी का व्रत दिनांक २४ मई २०१४ को मनाया जायेगा। 

महत्व -----

इसके करने से कीर्तिपूर्ण तथा धन की प्राप्ति होती है ,यह व्रत मिथ्यावादियों,जालसाजियों ,कपटियों तथा ठगों के घोर पापों से मुक्ति दिलाने वाला होता है । 

पूजन विधि-----

इस एकादशी में मलयगिरि चन्दन ,तुलसी तथा कपूर से गंगा जल सहित  भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए ,कहीं-कहीं पर भगवान कृष्ण और बलराम  की पूजा भी की जाती है। 

कथा --------

प्राचीन कल में महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा था जिसका छोटा भाई बड़ा ही क्रूर और अधर्मी  था ,वह  अपने बड़े भाई के साथ द्वेष रखता था ,उस अवसरवादी पापिष्ट ने एक दिन रात्रि में बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को जंगली पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया ,मृत्यु के उरान्त वह राजा प्रेतात्मा के रूप में पीपल पर निवास करने लगा ,वह बड़े ही उत्पात मचाता था। अचानक एक दिन धौम्य नामक ऋषि वहां से गुजरे ,उन्होंने तपोबल से प्रेत का उत्पात का कारण जाना तथा जीवन का वृतांत समझा। ऋषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया ,अंत में इस प्रेतात्मा  होने  इसे अचला एकादशी का व्रत करने को कहा ,इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से वह राजा दिव्य शरीर वाला होकर स्वर्ग में चला गया। 

                                इस दिन ककड़ी का सागर लिया जाना चाहिए 

  

Friday, May 2, 2014

अक्षय तृतीया



अक्षय तृतीया बैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है ,क्यों ,इस विषय में सभी लोग अलग-अलग कारण बताते हैं ,पर इसका जो वास्तविक  अर्थ है वह है कभी क्षीर्ण न होने वाला ,और इसका तृतीया शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है ,जिसका अर्थ है तीसरा ,और चन्द्र पंचांग के अनुसार इसका अनुमान लगाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं में कहा गया है कि इस दिन शुरू किये गये कार्यों में अधिक से अधिक सफलता मिलने के संकेत मिलते है। इस महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये विशेष अनुष्ठान किये जाते हैं ,इस दिन पंचांग देखे बिना ही कोई भी कार्य किया ज सकता है। इस दिन समस्त शुभ कार्य जैसे विवाह,गृह -प्रवेश ,पदभार,स्थान-परिवर्तन और स्वर्ण खरीदने जैसे कार्य किये जाते हैं भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन सतयुग और त्रेता युग का आरम्भ हुआ था ,भगवान विष्णु के २४ अवतारों में से परशुराम,नर-नारायण तथा हयग्रीव ने अवतार लिया था। आज से ही बद्रीनाथ की  पट भी खुलते हैं। 

जब मीडिया का इतना प्रचार नही था तब भि अक्षय तृतीया मनाई जाती थी पर अब अखबारों  मेँ और टेलीविजन पर इतना प्रचार हो जाने के कारण सारे पर्व मनाने के लिये उत्साह अलग ही देखा जाता है।