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Thursday, October 31, 2013

dhantryodashi

धनतेरस दीपावली के २ दिन पहले त्रयोदशी को मनायी जाती है।  इस दिन मृत्यु के देवता यम और धन के देवता कुबेर की पूजा का विशेष महत्त्व है
कहा जाता है कि इस दिन धन्वन्तरि का जन्म हुआ था और जिस समय उनका अवतरण हुआ था उनके हाथ में कलश था और इसी कारण इस दें नए बर्तन खरीदने के परम्परा है। और बरतन चाँदी ,पीतल या तांबे का लेना चाहिए ,स्टील का बरतन नहीं लेना चाहिए।

धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है. इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है.

धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है.धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या. दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके.
 कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था. दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा. राज इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े. दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया.
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे. जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा. यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए. दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक सरल उपाय मैं तुम्हें बताता हूं ". कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।

                         और तभी से धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा की ओर दिया जलाया जाने लगा। 


Sunday, October 27, 2013

rama ekadashi vrat

कार्तिक मास के कृ्ष्णपक्ष की एकादशी का नाम रमा एकादशी है. इस एकादशी को रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इसका व्रत करने से समस्त पाप नष्ट होते है.  

रमा एकादशी व्रत कार्तिक मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. वर्ष 2013 में यह एकादशी दिनांक ३० अक्तूबर को  किया जायेगा. इस दिन भगवान श्री केशव का संपूर्ण वस्तुओं से पूजन किया जाता है.

रमा एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है ------------

प्राचीन काल की बात है, एक बार मुचुकुन्द नाम का एक राजा राज्य करता था.  वह प्रकृ्ति से सत्यवादी था.  तथा वह श्री विष्णु का परम भक्त था. उसका राज्य में कोई पाप नहीं होता है. उसके यहां एक कन्या ने जन्म लिया. बडे होने पर उसने उस कन्या का विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र साभन के साथ किया.
एक समय जब चन्द्रभागा अपने ससुराल में थी, तो एक एकादशी पडी. एकादशी का व्रत करने की परम्परा उसने मायके से मिली थी. चन्द्रभागा का पति सोचने लगा कि मैं शारीरिक रुप से अत्यन्त कमजोर हूँ. मैं इस एकादशी के व्रत को नहीं कर पाऊंगा. व्रत न करने की बात जब चन्द्रभागा को पता चली तो वह बहुत परेशान हुई़.
चन्द्रभागा ने कहा कि मेरे यहां एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं कर सकता. अगर आप भोजन करना ही चाहते है, तो किसी ओर स्थान पर चले जायें यदि आप यहाँ रहेंगे तो आपको व्रत अवश्य ही करना पडेगा. अपनी पत्नी की यह बात सुनकर शोभन बोला कि तब तो मैं यही रहूंगा और व्रत अवश्य ही करूंगा.
यह सोच कर उसने एकादशी का व्रत किया, व्रत में वह भूख प्यास से पीडित होने लगा. सूर्य भगवान भी अस्त हो गए. और जागरण की रात्रि हुई़. वह रात्रि सोभन को दु:ख देने वाली थी. दूसरे दिन प्रात: से पूर्व ही सोभन इस संसार से चल बसा. 
राजा ने उसके मृ्तक शरीर को दहन करा दिया. चन्द्रभागा अपने पति की आज्ञानुसार अपने पिता के घर पर ही रही़. रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को एक उतम नगर प्राप्त हुआ, जो सिंहासन से युक्त था, परन्तु यह राज्य अध्रुव ( अदृश्य)  था. यह एक अनोखा राज्य था।
एक बार उसकी पत्नी के राज्य का एक ब्राह्माण भ्रमण के लिए निकला, उसने मार्ग में सोभन का नगर देखा. और सोभन ने उसे बताया कि उसे रमा एकादशी के प्रभाव से यह नगर प्राप्त हुआ है. सोभन ने ब्राह्माण से कहा की मेरी पत्नी चन्द्र भागा से इस नगर के बारे में और मेरे बारे में बता देना , वह सब ठीक  कर देगी.
ब्राह्माण ने वहां आकर चन्द्रभागा को सारा वृ्तान्त सुनाया. चन्द्रभागा बचपन से ही एकादशी व्रत करती चली आ रही थी. उसने अपनी सभी एकादशियों के प्रभाव से अपने पति और उसके राज्य को यथार्थ का कर दिया. और अन्त में अपने पति के साथ दिव्यरुप धारण करके तथा दिव्य वस्त्र अंलकारों से युक्त होकर आनन्द पूर्वक अपने पति के साथ रहने लगी.
  जो भी इस रमा एकादशी का व्रत करते है. उनके ब्रह्महत्या  आदि के पाप नष्ट होते है.

Sunday, October 20, 2013

karwa chauth..ka vrat ,poojaa

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को स्त्रियाँ पति की लम्बी आयु ,स्वास्थ्य और मंगलकामना के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं। इस व्रत का फल शुभ और सौभाग्य को देने वाला माना गया है । इस व्रत को रखने वाली स्त्री प्रातः काल में जलपान ग्रहण करने के उपरांत व्रत का संकल्प लेती अं और सायंकाल चंद्रोदय के उपरांत पूजा करके चन्द्र दर्शन करके पति के हाथ से जल ग्रहण करती है । 

कथा ------

एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए। द्रोपदी ने सोच की यहाँ हर वक्त विघ्न -बाधाएं आती रहती हैं ,उनके शयन के लिए कोई उपाय करना चाहिए तब उन्हें भगवान् कृष्ण का ध्यान किया। श्री कृष्ण जी ने कहा -पर्वत्री जी ने भी शिव जी से यही प्रश्न किया था तब न्होंने करवा चौथ का व्रत करने को कहा था जिसकी कथा और विधान में तुमको बताता हूँ

१. प्राचीन काल में धर्मपरायण ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी ,बड़ी होने पर ब्राह्मण ने उसका विधिवत विवाह कर दिया। विवाह के पश्चात उसने करवा चौथ का व्रत रखा। सात भाइयों की लाडली बहन चंद्रोदय से पहले ही भूख से व्याकुल होने लगी ,यह देखकर भाइयों से उसकी ऐसी अवस्था देखी  न गयी और उन्होंने कुछ सोचते हुए चंद्रोदय से पहले ही भोजन करने की सोची और तब उन्होंने पीपल की आड़ से चलनी में दिया रख कर चन्द्रोदय  होने की बात कही। 
और कहा उठो बहन अर्घ्य देकर भोजन कर लो ,बहन ने अर्घ्य देकर भोजन कर लिया तभी उसके पति के प्राण पखेरू हो गए। यह देखकर वह रोने -चिल्लाने लगी। रोने की आवाज सुनकर देवदासियों ने आकर रोने का कारन पूछा तो ब्राह्मण की कन्या ने सब हाल कह सुनाया !तब देवदासियां बोली तुमने चंद्रोदय से पहले ही अन्न -जल ग्रहण कर लिया जिसके कारन तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। यदि अब तुम मृत पति की सेवा करती हुई बारह महीनों तक प्रत्येक चौथ का व्रत विधिपूर्वक करो और करवा चौथ का व्रत यथाविधि करो तो तुम्हारे पति अवश्य जी उठेंगे। 
ब्राह्मण की पुत्री ने वैसा ही किया जैसा की देवदासियां कह कर गयीं थीं तो उसका पति जीवित हो उठा । 
इस प्रका कथा कह कर श्रीकृष्ण ने द्रोपदी से कहा तुम भी इसी प्रका व्रत करोगी तो तुम्हारे सरे दुःख दूर होंगे। 

२.  एक ब्राह्मण परिवार में सात बहुएँ थीं उनमें से छः बहुएं बहुत अमीर मायके की थी मगर सातवीं बहु निर्धन परिवार से थी ,वह घर का सारा काम काज करती थी और सबकी सेवा करती रहती थी। 
तीज -त्यौहार पर जब उसके मायके से कोई न आता तो वह बहुत दुखी होती थी।  करवा चौथ पर वह दुखी होकर घर से निकल पड़ी और जंगल में जाकर वृक्ष के नीचे बैठ कर रोने लगी। तभी बिल से सांप निकल और उके रोने का  कारन पूछा ----तब छोटी ने सारी बात कही।  नाग को उस पर दया आगई और बोल तुम घर चलो मैं अभी करवा लेकर आता हूँ। 
नाग देवता करवा लेकर उसके घर पहुंचे। सास प्रसन्न हो गयी। सास ने प्रसन्न मन से छोटी को नाग के साथ उसके घर भेज दिया।  नाग देवता ने छोटी को अपना सारा महल दिखया और कहा -जितने दिन चाहो यहाँ आराम से रहो!
एक बात याद रखना -सामने रखी नांद कभी मत खोलना।  एक दिन उत्सुकता वश छोटी ने जब घर पर कोई नहीं था उस नांद को खोल कर देखना चाहा परन्तु उसमें से छोटे-छोटे नाग के बच्चे निकल कर इधर-उधर रेंगने लगे। उसने जल्दी से नांद को ढक दी ,जल्दी में एक सांप की पूँछ कट गयी ,शाम को नाग के आने पर उसने अपनी गलती स्वीकार ली और आज्ञा लेकर अपने घर वापस चली गयी ,उसकी ससुराल में बड़ी इज्जत होने लगी। 
जिस सांप की पूछ कटी थी उसने जब अपनी माँ से पूछ की मेरी पूँछ कैसे कटी ? माँ ने बताया तो वह बोल मैं बदला लूँगा ,माँ के बहुत समझाने पर भी वो छोटी के घर गया और चुप कर बैठ गया। 
वहां उसकी सास से किसी बात पर सास से बहस हो रही थी और छोटी बार-बार कसम खाकर कह रही थी की मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ,"मुझे बंदा  भैया से प्यारा कोई नहीं मैं उनकी कसम खाकर कह रही हूँ मैंने ऐसा नहीं किया" यह सुनकर बंडा सोचने लगा ये मुझे इतना प्यार करती है और मैं इसे मारने चला था और वो वहां से चला गया । तभी से बंडा भैया करवा लेकर जाने लगे । 

              इस वर्ष करवा चौथ का व्रत २२ अक्टूबर २०१३ को पड़  रहा है ।





Friday, October 18, 2013

sharad poornima/ शरद पूर्णिमा/ कोजागिरी पूर्णिमा

आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है. वर्ष 2015 में शरद पूर्णिमा 26 अक्तूबर  को होगी . इस पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है . इस दिन चन्द्रमा व सत्य नारायण भगवान का पूजन, व्रत, कथा की जाती है.
 ज्योतिषिय नियमों  के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है. इस दिन के संदर्भ में एक मान्यता प्रसिद्ध है, कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था. इस दिन चन्द्रमा कि किरणों से अमृ्त वर्षा होने की किवदंती प्रसिद्ध है. इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रत भर चांदनी में रखकर अगले दिन प्रात: काल में खाने का विधि-विधान है.

कुछ लोग दूध में चूरा भिगो कर रखते हैं और कुछ लोग काली मिर्च में चीनी पीस कर देशी घी के साथ रखते हैं इस विषय में कहा ये जाता है की इस काली मिर्च के प्रसाद को खाने  से आँखों की रोशनी तेज़ होती है । 

अतः इस दिन कुछ भी प्रसाद बना कर चन्द्रमा की रौशनी में जरूर रखना चाहिए और प्रातः  उठकर इस प्रसाद को ग्रहण करना चाहिए और सभी में इस प्रसाद को वितरित करना चाहिए ।

कथा ----

    एक साहुकार था जिसके यहां दो पुत्रियां थीं. एक पुत्री विधि-विधान से व्रत पूरा करती थी.  और दूसरी पुत्री व्रत तो करती थी, परन्तु अधूरा ही किया करती थी. इसी कारण से दूसरी पुत्री के यहां जो भी संतान होती थी. वह मर जाती थी. यह स्थिति देख कर साहूकार की दूसरी पुत्री ने इसका कारण पंडितों  से पूछा. तब पंडितों ने बताया की तुम व्रत तो करती हो मगर अधूरा किया करती हों, इसी कारण से तुम्हारी सन्तान जन्म लेते ही मर जाती है.अतः  तुम शरद पूर्णिमा का पूरा व्रत करों,साहूकार की पुत्री ने पंडितों के बताये अनुसार व्रत किया फलस्वरूप उसे पुत्र तो हुआ मगर शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गयी । 
उसने अपनी संतान को एक पटली पर लिटा दिया और उसके ऊपर कपडा ढ्क दिया. इसके बाद वह अपनी बडी बहन को बुलाकर लाई और उसे बैठने के लिये कहा, उसकी बडी बहन के वस्त्र उस बालक से छू गयें. और देखते ही देखते मरा हुआ बच्चा रोने लगा. बालक को रोते देख, बडी बहन ने कहा कि अगर गलती से मैं बालक के ऊपर बैठ जाती तो बच्चा मर न जाता. तब छोटी बहन ने कहा की यह तो पहले ही मरा हुआ था. तेरे वस्त्र छूने से यह जीवित हो गया है. उसके बाद से शरद पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से करने की परम्परा चली आ रही है.

हिंदू धर्म में जितने भी व्रत त्यौहार, या तिथिएं  मनाई जाती है यदि देखा जाये तो उनका कोई न कोई महत्व है 

Monday, October 14, 2013

Hema's Archana: पापाकुंशा एकादशी

Hema's Archana: पापाकुंशा एकादशी: श्री कृष्ण जी बोले --हे  युधिष्ठिर आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापाकुंशा  एकादशी है।  पापाकुंशा एकादशी के फलों के विषय में...

पापाकुंशा एकादशी

श्री कृष्ण जी बोले --हे युधिष्ठिर आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापाकुंशा  एकादशी है। 

पापाकुंशा एकादशी के फलों के विषय में कहा गया है, कि हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के फल,इस एकादशी के फल के सोलहवें, हिस्से के बराबर भी नहीं होता है. इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को स्वस्थ शरीर और सुन्दर जीवन साथी की प्राप्ति होती है.
इस एकादशी के दिन मनोवांछित फल कि प्राप्ति के लिये श्री विष्णु भगवान कि पूजा की जाती है. - See more at: http://www.myguru.in/Vrat_PoojanVidhi-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A4%BE-%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A5%80-Papankusha-Ekadashi.htm#sthash.aaq36xwd.dpuf
पापाकुंशा एकाद्शी
पापाकुंशा
पापाकुंशा
एकादशी तिथि के दिन सुबह उठकर स्नान आदि कार्य करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. 
यदि इसके व्रत में श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान विष्णु क पूजन किया जाए तो  मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति इस एकादशी की रात्रि में जागरण करता है,  उन्हें, बिना किसी रोक के स्वर्ग मिलता है.इस लोक में सुन्दर स्त्री ,पुत्र और धन की प्राप्ती होती है ।
इस एकादशी के एक दिन पहले भगवान राम ने रावण का वध किया था ।रावण स्वभाव से चाहे जैसा भी था लेकिन था तो ब्राम्हण ,अतः ब्रह्म हत्या के  दोष निवारण हेतु मर्यादा पुरुसोत्तम राम ने पापाकुंशा एकादशी का व्रत किया और पाप रहित हो गए।  

कथा ------

विन्ध्यपर्वत पर महा क्रुर और अत्यधिक क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था. उसने बुरे कार्य करने में सारा जीवन बीता दिया. जीवन के अंतिम भाग आने पर यमराज ने उसे अपने दरबार में लाने की आज्ञा दी. दूतोण ने यह बात उसे समय से पूर्व ही बता दी. मृ्त्युभय से डरकर वह अंगिरा ऋषि के आश्रम में गया. और यमलोक में जाना न पडे इसकी विनती करने लगा.
अंगिरा ऋषि ने उसे आश्चिन मास कि शुक्ल पक्ष कि एकादशी के दिन श्री विष्णु जी का पूजन करने की सलाह दी़. इस एकादशी का पूजन और व्रत करने से वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को गया ।।।।

              इस दिन साँवा मलीचा का सागार लिया जाना चाहिए ।

Saturday, October 12, 2013

aathvan navratra (mahagauri poojan

श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः |
महागौरी शुभं दद्यान्त्र महादेव प्रमोददा ||

                 इस मन्त्र से आज हमने माता की उपासना की है ।और आप सभी भी इसी मन्त्र से आराधना करें तो उत्तम फल कि प्राप्ति होगी ।

 

 इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत है ।इनकी चार भुजाएं है ।इनका वाहन वृषभ है ।अपने पार्वती रूप में इन्होने भगवान् शिव को पति - रूप में प्राप्त करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी ।इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया ।इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान् शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत् प्रभा के समान अत्यंत कान्तिमान गौर हो उठा ! तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा । दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है ।इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है । माता के इस स्वरूप की पूजा करने से पूर्व संचित पाप भी विनिष्ट हो जाते है ।भविष्य में पाप संताप , दैन्य - दुःख उसके पास कभी नै आते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है ।इनकी पूजा उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते है माँ महागौरी का ध्यान - स्मरण पूजन - आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है । हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए ! इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है ।मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादार - विन्दों का ध्यान करना चाहिए । ये भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती है ! इनकी पूजा - उपासना से भक्तों के असम्भव कार्य भी संभव हो जाते है ! अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमे सर्व विध प्रयत्नं करना चाहिए । पुराणों में इनकी महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है ।ये मनुष्य की वृत्तियों को सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती हैं ।

      माता के इस स्वरूप को हम सभी सत -सत प्रणाम करते है बोलो माता रानी कि जय,

Friday, October 11, 2013

7venth navratra

 दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है।  माँ दुर्गा का यह स्वरूप कालरात्रि के नाम से पूजा जाता है , माना गया है कि इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है
साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है।
इस लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है। अतः इनके भक्तों को माता के इस स्वरूप से भयभीत होने कि आवश्यकता नही है 

माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं।  ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

             इस दिन इस मन्त्र द्वारा माता कि अर्चना की जानी चाहिए

                           बोलो अम्बे मात की जय



Thursday, October 10, 2013

chatha navratra (maa katayaani )

                                              चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना |
                                                         कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि || 
                          इस मंत्र द्वारा मां के छठे रूप की आराधना की जाती है
मार्कण्डये पुराण के अनुसार जब राक्षसराज महिषासुर का अत्याचार बढ़ गया, तब देवताओं के कार्य को सिद्ध करने के लिए देवी मां ने महर्षि कात्यान के तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया. चूँकि महर्षि कात्यान ने सर्वप्रथम अपने पुत्री रुपी चतुर्भुजी देवी का पूजन किया, जिस कारण माता का नाम कात्यायिनी पड़ा. मान्यता है कि यदि कोई श्रद्धा भाव से नवरात्री के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा आराधना करता तो उसे आज्ञा चक्र की प्राप्ति होती है.
इनका रूप भव्य और दिव्य हैं ,स्वर्ण के समान तेज वाली मां के बायी तरफ उपर वाले हाथ  में कमल पुष्प और नीचे वाले हाथ  में तलवार हैं . 
 मां कात्यायनी की उपासना से मनुष्य  सरलता पूर्वक अर्थ ,धर्म ,काम और मोक्ष चारो फलों को आसानी से प्राप्त कर लेता हैं । जो मनुष्य मन ,कर्म और वचन से मां की आराधना करता हैं उन्हे मां धन -धान्य से परिपूर्ण करती हैं और साथ ही भयमुक्त भी करती हैं । 
 मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए रुक्मिणी ने इनकी ही आराधना की थी, जिस कारण मां कात्यायनी को मन की शक्ति कहा गया है.
 

Wednesday, October 9, 2013

fifth navratra---maa sakndmata ki aaraadhana

नवरात्री के पाँचवें दिन मां स्कंदमाता की  पूजा की जाती है।समस्त मनोकामना को पूर्ण करने वाली मां स्कंदमाता ,भगवान स्कंद की मां है अतः उनके इस स्वरूप को स्कंदमाता कहा जाता है ।

स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प लिए  हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं और  इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है।
नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा होती है।
इस औषधि को नवरात्रि में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी बीमारियां नहीं होती। साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति मिलती है।
कहा गया है कि यदि कोई श्रद्धा और भक्ति पूर्वक माता कि पूजा,अर्चना करता  है तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है ।माता की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है । पौराणिक कथाओं के अनुसार माता स्कन्द माता ही  हिमालय पुत्री है और महादेव की पत्नी होने के कारण माहेश्वरी के नाम से भी पूजा जाता है । इनका पुत्र से अत्यधिक प्रेम होने के कारण  इनहें इनके पुत्र स्कन्द के नाम से पुकारा जाता है । 
माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इस मन्त्र को कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।


Tuesday, October 8, 2013

maata ka chand

          अम्बिके जग्दम्बिके अब तेरा ही आधार है ,जिसने ध्याया तुझको उसका  बेडा पार है -----२
  1. नंगे-नंगे पैरों मैया अकबर आया ,सोने का  छत्र मां उसने चढाया -२ 

         पूजा करी मां तेरी  तू शक्ति का आधार है ,अम्बिके --------

    २. पान, सुपारी ,ध्वजा ,नारियल भेंट चढाउँ ,खोल दरवाजा आजा तुझे ही बुलाउ -२ 

          दर पे आए भक्तों ने बोली जय -जयकार है --अम्बिके 

    ३. दर पे खडा सवाली भर दे मेरी झोली खाली , तेरा वचन न जाए खाली जय हो माता शेरा वाली -२ 

          कर दे किरपा मेहरा वाली तू  बड़ी दयालु है ---अम्बिके 

    ४. धर्म भवन जागरण में मैया तुझको आना है , सब भक्तों को मैया तेरा दर्शन पाना है -२ 

          जल्दी से आजा मैया तेरा इन्तजार है --अम्बिके ---





                           

Sunday, October 6, 2013

mata ke chand (geet)

                                           कामना पूर्ण करो महारानी -२

  1.       सो देवा रानी काहे के चारो खंबा -२ 
                   काहे के चारो झंडी …--
    सो मन्त्री सोने के चारों खंबे ,तूल  कि झंडी लगी महारनी -----कामना पूर्ण करो -----

    २. सो देवा रानी काहे का तेरा लहंगा -२
                   काहे की चुनर बनी महारानी -------
    सो मन्त्री सातन का मेरा लहंगा ,रेशम ओढ्निया बनी महारानी ----कामना पूर्ण करो ------

    ३. सो देवा रानी कहे का तेरा भोग -२ 
                   कहे का प्रसाद बना महारानी -----
    सो मंत्री हलवे का मेरा भोग , चने का प्रसाद बना महारानी --कामना पूर्ण करो महारानी

2end navaratra-----maa bhrhamcharini

दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मां दुर्गा की दूसरी शक्ति स्वरूपा भगवती ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. माता ब्रह्मचारिणी का स्वरुप बहुत ही सात्विक और भव्य है. ये श्वेत वस्त्र में लिपटी हुई कन्या रूप में हैं जिनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है. मां दुर्गा की 9 शक्ति का यह दूसरा रूप भक्तों और साधकों को अनंत  फल प्रदान करने वाला है. 
  ब्रह्मचारिणी - तप का आचरण करने वाली - वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म - वेद, तत्व और तप ' ब्रह्म शब्द के अर्थ है !
पौराणिक कथानुसार अपने पूर्व जन्म में ब्रह्मचारिणी मां भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए देवर्षि नारद के उपदेश से कठिन तपस्या की ,और  इस तपस्या के दौरान मां ब्रह्मचारिणी ने एक  हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं. अपने कठिन उपवास के समय मां केवल जमीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शिव की अराधना करती रही और फिर कई हज़ार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार ही व्रत करती रही, तब जाकर भगवान शिव इन्हें पति रूप में प्राप्त हुए। 
इनकी पूजा - उपासना से मनुष्य में तप , त्याग , वैराग्य , सदाचार , संयम , पर उपकार की वृद्धि होती हैं ! जीवन के कठिन समय में भी विचलित नहीं होते ! 
  

Thursday, October 3, 2013

navarati

 नवरात्री वर्ष मे २ बार मनाई जाती है ,दशहरे से पहले मनाई जाने वाली नवरात्री को महा नवरात्री के रूप मे मनाया जाता है ,

इस वर्ष नवरात्री का शुभ आरंभ ५ अक्तूबर से होगा ,और हिंदू धर्म  मे नवरात्री का विशेष महत्व है ,परम्पराओं के इस त्योहार मे सबसे पहले कलश कि स्थापना का विधान है । 

घटस्थापन- कलश स्थापन मुहुर्त : 06:16 AM to 07:15 AM (Kanya Lagna) ज्योतिष के अनुसार यह उत्तम समय घट स्थापना के लिये बताया गया है । यदि किसी कारण वश इस शुभ मुहूर्त मे स्थापना न हो सके तो कलश कि स्थापना कभी भी राहू काल मे नही कि जानी चाहिये . 

कलश स्थापना vidhi ------

      सर्वप्रथम स्नान से निवृत होकर जिस स्थान पर पूजन किया जाने हो  उस स्थान पर सफाई करें और कलश में गंगा जल भर कर उसके उपर अशोक या आम के पत्तों को कलश पर रखें। इसके उपर दीपक रखें और प्रज्वलित करें ।
     तत्पचात सभी देवी -देवता का  आह्वाहन करें और प्रार्थना करें , 
     आराधना और पूजा के बाद आरती और वन्दना के पश्चात भोग लगाएँ तथा सभी में वितरित कर दें। 

 दुर्गा जी कि पूजा में मंत्रों का विशेष महत्व है अतः उनका आवाहन मंत्रों द्वारा किया जाना चाहिए ।