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Thursday, May 16, 2013

mohni ekadashi

आने वाली २ १ मई को मोहिनी एकादशी है ,जो की बैशाख माह के शुक्लपक्ष को होती है और इस वर्ष ये एकादशी २ १ मई को पड़  रही है । हर एकादशी का अपना अलग महत्व है ,कहा गया है की इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से निन्दित कर्मों से छुटकारा मिल जाता है ।
इस दिन पुरषोत्तम राम की पूजा का विधान है ,भगवन राम की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध करने के पश्चात उच्चासन पर विराजमान करने के बाद धूप  ,दीप एवम मीठे फलों से पूजन किया जाना चाहिए .। रात्रि में कीर्तन करते हुए मूर्ति  के समीप ही शयन करना चाहिए ,और फिर प्रातः काल में स्नानादि से निवृत होकर दान करें और फिर अन्न ग्रहण करना चाहिए । इस एकादशी का महत्तम राजा  राम ने महर्षि वशिष्ठ से पूछा था ,वशिष्ठ जी ने कहा ----सरस्वती नदी के तट पर चन्द्रावती नाम की नगरी है ,उसमें धृत राजा राज्य करता था  । एक धनपाल नाम का वैश्य  रहता था ,बड़ा ही धर्मात्मा और विष्णु का भक्त था । उसके पांच पुत्र थे, बड़ा पुत्र महापापी था । जुआ खेलता ,मद्धपान  करना नीच कर्म करने वाला था । उसके माता, पिता ने कुछ धन देकर उसे घर से निकाल दिया । आभूषणों को बेचकर कुछ दिन उसने काटे ,अंत में धनहीन हो गया और चोरी करने चला ,पुलिस ने पकड़ कर बंद कर दिया । दंड की अवधि व्यतीत हुई तो नगरी से निकाला गया , वन में पशु -पक्षियों को मारता -खाता समय व्यतीत करने लगा । एक दिन उसके हाथ शिकार न लगा ,भूखा- प्यासा कोठर मुनि के आश्रम पर आया ,हाथ जोड़कर बोला मैं आपकी शरण में  हूँ ,पातकी हूँ ,कोई उपाय बताकर मेरा उद्धार करें ?
मुनि बोले वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का एक व्रत करो ,अन्नत जन्मों के पाप भस्म हो जायेंगे । मुनि की शिक्षा से वेश्य कुमार ने मोहिनी एकादशी का व्रत किया । पापरहित होकर विष्णु लोक को चला गया .

इसका महात्म्य सुनने  से हजार  गायों के दान का फल मिलता है ।  

इस दिन गाय के मूत्र का सागार लेना चाहिए । 


Tuesday, May 14, 2013

ARTI KA MAHATV

 पूजन में आरती का बहुत महत्व है ,ऐसा मन जाता है की अगर पूजन में कोई भी त्रुटि  हो जाय तो आरती से उसकी पूर्ति हो जाती है ,स्कन्दपुराण में बताया गया है ------
पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन(आरती ) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है .
आरती में सबसे पहले भगवन को पुष्पांजली देनी चाहिए ,घंटे की ध्वनि से तथा जयकार के शब्द के साथ कपूर या दिए से आरती करनी चाहिए .
असल में आरती पूजन के अंत में इष्टदेवता की प्रसन्नता हेतु की जाती है । आरती के पांच अंग मने गए है .
१. दीपमाला ,२ जलयुक्त शंख से ,३. धुले वस्त्र से .४. आम और पीपल के पट्टों से .और ५. साष्टांग दण्डवत से ।
आरती घी में डूबी पाँच बत्तियों से की जानी चाहिए .
आरती मुख पर एक बार ,नाभि पर दो बार ,एवम चरणों में चार बार की जानी चाहिए और सम्पूर्ण अंग पर सात बार की जानी चाहिए  । अक्सर हम सब एक -एक कर के आरती करते हैं जबकि ऐसा मन गया है की आरती एक ही व्यक्ति को पूरी करनी चाहिए ।
सांध्य आरती का नियम जरूर होना चाहिए । आरती  सब परिवार के साथ यदि की जाय तो उत्तम मानी गयी है .इष्टदेव को आरती दिखने के बाद स्तवन और गुणगान करना चाहिए -------

कदलीगर्भ कर्पूरम च प्रदीपितं । आरार्तिक्यम्हम कुर्वे पश्य मे वरदो भव ॥ 

Friday, May 10, 2013

maa durga ki archana

माँ की उपासना में इस अर्चना का बहुत महत्त्व है ,पूजा के पश्चात इस अर्चना का पाठ करने से पूजा में हुई  त्रुटियों के लिए माँ से क्षमा  के लिए प्रार्थना की जाती है ---

दयामयी भगवती  करुणासागर  !काली ,रमा ,गिरा तू दधिनिधि ! सुनंना आर्त  पुकार । 

नहीं पाठ पूजा मैं जानूं ,नहीं अन्य उपचार ! केवल नाम आपका ध्यायूं ,जो है विपति विदार ॥ 

मैं क्या योग्य तपस्या कर जो ,करलूं निज उद्धार । केवल कृपा भीख तेरी ही ,है मेरा आधार ॥ 

पग पग  का अपराधी तेरा, नख शिख भरा विकार । अगर तुम्हीं चाहो तो मेरा ,बेड़ा होवे   पार ॥

दुष्टों से भक्तों को बचाने ,हेतु अनेकों बार । लिया आपने विश्वमोहिनी ,चामुंडा अवतार ॥ 

जिन पर कृपा आपकी होती ,धन्य वही नर -नार । उनके लिए सदा होता है ,सुखमय सब संसार ॥ 

माँ तेरी यह सेविका ,करती यही पुकार । अम्ब काटकर संकट सारा ,करना बेड़ा पार ॥