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Thursday, September 14, 2017

इंदिरा एकादशी

                   अश्विन माह के कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है,  यूँ तो सभी एकादशी का अपना अलग महत्व है परन्तु श्राद्ध पक्ष में पड़ने वाली इस एकादशी का महत्व बहुत है, ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी का फल पितरों के लिए होता है इसके करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।
 वर्ष २०१७ में यह एकादशी दिनांक १६ सितम्बर दिन शनिवार को पड़ रही है।

                  वैसे तो एकादशी की पूजा काफी विधि पूर्वक की जाती है परन्तु गृहस्थ अपनी सुविधानुसार एकादशी को कर सकते हैं विशेष रूप से यदि मान कर एकादशी का व्रत किया जा रहा है तो पूर्ण रूप से विधि अनुसार ही एकादशी का व्रत किया जाना चाहिए।


कथा :- 



श्री द्वारकानाथ जी युधिष्ठिर से बोले :- हे धर्मपुत्र अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है और इसके महात्म्य की एक कथा मैं कहता हूँ  :-

                 
                एक समय नारद मुनि ब्रह्म लोक से यम लोक में आये, वहां एक धर्मात्मा राजा को दुखी देखा, मुनि के दिल में दया भाव जागे। उसका भविष्य कर्म विचार कर महिष्मति नगरी में आये वहां इस राजा का पुत्र राज्य करता था, नारद ऋषि इससे कहने लगे तेरे पिता को मैं यमराज की सभा में बैठा देख आया हूँ और उसके शुभ कर्म को भी जो की उसे स्वर्ग को देने वाले हैं।

            मात्र एक एकादशी व्रत के बिगड़ जाने के कारन ही उनको यम लोक मिला है यदि तुम विधि पूर्वक इंद्रा एकादशी का व्रत पिता के निमित्त कर लो तो अवश्य ही उनको स्वर्ग लोक मिल जायेगा।
        
          इतना कहकर महर्षि ने उस पुत्र को इस एकादशी की शुभ विशि कुछ इस तरह से बतलायी  :-



विधि :-


             १. दशमी के दिन पितृ की श्राद्ध करके ब्राह्मणों को प्रसन्न करें।
             २. गौ का ग्रास, कौवे का ग्रास बनाएं और उनका पेट भरें।
             ३. मिथ्या भाषण न करें, रात्रि को भूमि पर शयन करें।
             ४. प्रातः श्रद्धा सहित भक्ति से एकादशी का व्रत करें।
             ५. ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा दे कर फलाहार का भोग लगाएं।
             ६. गौ माता को भी मधुर फलों का भोग लगाएं।
             ७. रात्रि जागरण कर विष्णु भगवन का पूजन करें।


       ऐसी शिक्षा दे कर नारद मुनि अंतर्ध्यान हो गए, राजा ने विधिपूर्वक एकादशी का व्रत व् पूजन किया।
       उसी समय इसके ऊपर पुष्पों को वर्ष हुई और ऊपर दृष्टि करने पर  पाया कि पुष्पक विमान में सवार उसके पिता स्वर्ग की ओर जा रहे थे।



फलाहार :- इस दिन शालिग्राम की पूजा कर टिल और गुड़ का सागर लेना चाहिए।


Tuesday, September 12, 2017

श्रीभगवतीस्तोत्रम्







दिनांक २१ सितबंर २०१७ से नवरात्री का शुभागमन हो रहा है माता रानी हमारे घर पधारे और हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें यही हम सब की कामना होती है।
 हम सब तरह -तरह से माँ की प्रार्थना अर्चना करते हैं  इसी श्रेणी में मैं यहाँ श्री भगवती स्त्रोत का वर्णन कर रही हूँ, इस स्त्रोत का उच्च स्वर से पाठ करना बहुत ही फलदायी होता है, इस स्त्रोत को सबसे पहले मैंने टीवी पर प्रसारित होने वाली माँ वैष्णव की आरती के दौरान सुना था और वहीँ इसे कंठस्थ भी किया।


  • जय भगवती देवी नमो वरदे, जय पापविनाशिनी बहु फलदे ॥ 
  • जय शुम्भ निशुम्भ कपाल धरे, जय  प्रणमामी तु विनिशर्तिहरे ॥ 
  • जय चन्द्र्दिवाकर नेत्र धरे, जय पावक भूशिन्वक्त्र धरे ॥ 
  • जय भेरवदेह निलीनपरे, जय अन्धक्दैत्य  विशोषकरे   ॥ 
  • जय महिष विमर्दिनी शूलकरे, जय लोक समस्त्क पाप हरे ॥ 
  • जय देवी पितामह विष्णुनते, जय भाष्कर शक्र शिरोअवनते ॥ 
  • जय षन्मुख सायुध ईश्नते, जय सागर गामिनी शम्भुनते ॥ 
  • जय दुःख दरिद्र विनाश्कारे, जय पुत्र कलत्र विबुद्धिकरे ॥ 
  • जय देवी समस्त शरीर धरे, जय नाक विदर्शिनी दुःख हरे ॥ 
  • जय वांछित दायिनी सिद्धि वरे, जय व्याद्विनाशिनी मोक्ष करे ॥ 
श्री भगवती की स्तुति का नित्य प्रति पाठ करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और माँ की कृपा बनी रहती है .