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Sunday, January 26, 2014

bhajan







       रामा -रामा रटते -रटते बीती रे उमरिया ,कब आओगे रघुकुल नंदन दासी की झुपड़िया ॥ 

१. मैं शबरी भिलनी की जायी ,भजन भाव न जानूं ,भजन भाव न जानूं -२ 

      राम तेरे दर्शन की खातिर वन में जीवन पालूं ,वन में जीवन पालूं --

                                      --चरण कमल से निर्मल दासी की झोपड़िया ---रामा -रामा --------

२. रोज सवेरे वन में जाकर फल चुन-चुन कर लाऊंगी -फल चुन-चुन कर लाऊंगी -२ 

       अपने प्रभु के सन्मुख रख कर प्रेम से भोग लगाउंगी -प्रेम से भोग लगाउंगी ------

                                     मीठे-मीठे बेरन की में भर लाई डलिया --रामा रामा -----

३. स्याम सलोनी मोहनी मूरत नैना बीच बसाऊंगी -नैना बीच बसाऊंगी -२ 


        पद पंकज की रज सर धरकर जीवन सफल बनाउंगी ---


                                    अब क्या प्रभु जी भूल गए हो दासी की डगरिया ----रामा ,रामा 

४. राम तेरे दर्शन की प्यासी मैं अबला एक नारी हूँ ,में अबला एक नारी हूँ -२ 

      दर्शन बिन दो नैना तड़पे सुनो बहुत दुखयारी हूँ ,सुनो बहुत दुखयारी हूँ 

                                  हीरा रूप में दर्शन दे दो डालो एक नजरिया --रामा-  रामा 

bhajan




                              हमको तो लगी लग्न रे कन्हैया कृष्ण मुरारी 

             १.   जहर का प्याला राणा जी ने भेजा ,जहर का प्याला राणा जी ने भेजा -२
                            अमृत कर   देते हैं कन्हैया कृष्ण मुरारी ---------------------
             २. सर्पों की माला राणा जी ने भेजी - सर्पों की माला राणा जी ने भेजी -२
                            मोतियन की माला बना दें कन्हैया कृष्ण मुरारी ----------------
             ३. काँटों की सेजा राणा जी ने भेजा ,काँटों की सेजा राणा जी ने भेजा -२
                            फूलों की सेजा बना दें कन्हैया कृष्ण मुरारी -------------------

Wednesday, January 22, 2014

षटतिला एकादशी व्रत






षटतिला एकादशी के दिन तिलों का छ: प्रकार से उपयोग किया जाता है. जैसे - तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन करना, तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना और तिलों का दान करना - ये छ: प्रकार के उपयोग हैं. इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है.
माघ मास की  कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है ,और इस वर्ष यह एकादशी तारिख २७ जनवरी २०१४ को पड़ रही है।
इस दिन जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं, उनके सभी पापों का नाश होता है , काम, क्रोध, अहंकार, बुराई तथा चुगली का त्याग कर भगवान की शरण में जाना चाहिए. माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखने वाले मनुष्य के सभी पाप समाप्त होते हैं।

कथा----


प्राचीन काल में पृथ्वी लोक में एक ब्राह्मणी रहती थी. वह हमेशा व्रत करती थी लेकिन किसी ब्राह्मण अथवा साधु को कभी दान आदि नहीं देती थी. एक बार उसने एक माह तक लगातार व्रत रखा. इससे उस ब्राह्मणी का शरीर बहुत कमजोर हो गया था. तब भगवान विष्णु ने सोचा कि इस ब्राह्मणी ने व्रत रख कर अपना शरीर शुद्ध कर लिया है अत: इसे विष्णु लोक में स्थान तो मिल जाएगा परन्तु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया,. इससे ब्राह्मणी की तृप्ति होना कठिन है. इसलिए भगवान विष्णु ने सोचा कि वह भिखारी का वेश धारण करके उस ब्राह्मणी के पास जाएंगें और उससे भिक्षा मांगेगे. यदि वह भिक्षा दे देती है तब उसकी तृप्ति अवश्य हो जाएगी और भगवान विष्णु भिखारी के वेश में पृथ्वी लोक पर उस ब्राह्मणी के पास जाते हैं और उससे भिक्षा माँगते हैं. वह ब्राह्मणी विष्णु जी से पूछती है - महाराज किसलिए आए हो? विष्णु जी बोले मुझे भिक्षा चाहिए. यह सुनते ही उस ब्राह्मणी ने मिट्टी का एक ढे़ला विष्णु जी के भिक्षापात्र में डाल दिया. विष्णु जी उस मिट्टी के ढेले को लेकर स्वर्गलोक में लौट आये.
कुछ समय के बाद ब्राह्मणी ने अपना शरीर त्याग दिया और स्वर्ग लोक में आ गई. मिट्टी का ढेला दान करने से उस ब्राह्मणी को स्वर्ग में सुंदर महल तो मिल गया परन्तु उसने कभी अन्न का दान नहीं किया था इसलिए महल में अन्न आदि से बनी कोई सामग्री नहीं थी. वह घबराकर विष्णु जी के पास गई और कहने लगी "  हे भगवन मैंने आपके लिए व्रत आदि रखकर आपकी बहुत पूजा की पर  मेरे घर में अन्नादि वस्तुओं का अभाव है. ऎसा क्यों है? तब विष्णु जी बोले कि तुम पहले अपने घर जाओ. तुम्हें मिलने और देखने के लिए देवस्त्रियाँ आएँगी, तुम अपना द्वार खोलने से पहले उनसे षटतिला एकादशी की विधि और उसके महात्म्य के बारे में सुनना उसके बाद ही द्वार खोलना. ब्राह्मणी ने वैसे ही किया. द्वार खोलने से पहले षटतिला एकादशी व्रत के महात्म्य के बारे में पूछा. एक देवस्त्री ने ब्राह्मणी की बात सुनकर उसे षटतिला एकादशी व्रत के महात्म्य के बारे में जानकारी दी. उस जानकारी के बाद ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिए. देवस्त्रियों ने देखा कि वह ब्राह्मणी न तो गांधर्वी है और ना ही आसुरी है. वह पहले जैसे मनुष्य रुप में ही थी. अब उस ब्राह्मणी को दान ना देने का पता चला. अब उस ब्राह्मणी ने देवस्त्री के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया. इससे उसके समस्त पापों का नाश हो गया. वह सुंदर तथा रुपवति हो गई. अब उसका घर अन्नादि सभी प्रकार की वस्तुओं से भर गया.

इस प्रकार षटतिला एकादशी का व्रत पूर्ण विधि से करना चाहिए। ।

इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण की पेठा ,नारियल,जायफल,सुपारी आदि से पूजा की जानी चाहिए और तिल का सागर लिया जाना चाहिए ।

Sunday, January 19, 2014

sankashthi (sakat) pooja

सकट पूजा उत्तर प्रदेश में अधिकतर मनायी जाती है ,इसे गणेश संकष्टी पूजा भी कहा जाता है ,माह मास में कृष्ण  पक्ष की चौथ को इसे मनाया जाता है।
जिस तरह सुहागिन स्त्रियां करवा चौथ में निर्जल रहकर पति की लम्बी आयु की कामना हेतु व्रत रहकर पूजा करती हैं ,उसी तरह सकट चौथ की पूजा बेटों की लम्बी आयु के लिए स्त्रियां , पुत्रवती माँ निर्जल रहकर पूजा करती हैं और चन्द्रमा या फिर तारों में अपने व्रत को खोलती है ,इस पूजा में तिल से बनाये हुए पकवानों का विशेष महत्त्व होता है।
इस वर्ष यह व्रत दिनांक ८ जनवरी २०१५ को पड़ रहा है।
पूजन के लिए गौरी-गणेश की मूर्ति स्थापित करके उनका विधिवत पूजन किया जाता है। पूजा के स्थान पर तिल,गंजी ,बथुए का साग ,गुड आदि रखा जाता है ,और फिर कथा कहकर चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पानी पिया जाता है।

कथा -------

इस व्रत में वैसे तो ४ कथा कही जाती हैं पर जो मुख्य कथा है वह इस प्रकार है ------- 
किसी राज्य में यह प्रथा थी कि प्रतिदिन एक घर से एक बलि के द्वारा ही आँवा (बर्तन पकाने वाला ) जलाया जाता था ,ऐसा कहा जाता था कि जिस दिन किसी की बलि नहीं दी जायेगी उस दिन आँवाँ नहीं जलेगा और बर्तन कच्चे ही रह जायेंगे। 
एक दिन जिस बूढी औरत के घर की बारी थी वह विधवा थी और उसके एक ही पुत्र था ,बुधिा इसी आशंका से व्यथित थी कि अगर आज मेरे बेटे की बलि दे दी जायेगी तो मैं कल आने वाले सकट की पूजा किसके लिए करूंगी। 
इसी सोच विचार में वह दरवाजे पर बैठी रो रही थी उधर से सकट देव निकले !उन्होंने पूछ कि देवी तुम क्यों रो रही हो तुम्हारी क्या परेशानी है ?तब वह विधवा बोली भगवन _"आज इस राज्य में जिसकी बलि दी जानी  है वह मेरा एकलौता पुत्र है और अगर उसकी ही बलि चढ़ जायेगी तो में कैसे रहूंगी और किसके वास्ते सकट की पूजा करूंगी "
तब महाराज ने उस बुढ़िया को ५ सुपारी और एक ५ का सिक्का देते हुए कहा _ देवी तुम इसे अपने पुत्र को दे देना और फिर उसे आंवा में बिठा देना "
बुढ़िया ने वैसा ही किया "जैसे दूसरे दिन आँवा खोला गया उसका पुत्र जीवित बैठा था। और तभी से बिना बलि के उस राज्य में बर्तन पकाने के लिए आंवा लगाया जाने लगा। बुढ़िया ने भी प्रसन्नता पूर्वक सकट की पूजा संपन्न की। 
इस तरह सकट देव पुत्र रक्षा करते है।संकष्ठी चतुर्थी के दिन कुछ स्त्रियां फलहार लेती है,जिसमें शकरकंद और दूध लिया जाता है परन्तु जो भोजन ग्रहण करती हैं वे पूरी आदि का सागार ले सकती हैं । 
कहीं-कहीं सूर्य को अर्घ्य देकर व् कहीं तारों में भी पूजा समाप्त की जाती है ॥

Sunday, January 12, 2014

makar sankranti/khichdi / मकर संक्रांति/खिचड़ी

जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब सुख और समृद्धी का प्रतीक मकर संक्रांति का पर्व पूरे हिंदुस्तान में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।
उत्तर  भारत में इसे मकर संक्रांति या फिर खिचड़ी के नाम से मनाया जाता है ,पंजाब ,हरियाणा में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है ,दक्षिण भारत में पोंगल और असम  में बिहु के नाम से इस परम पावन  त्यौहार को मनाया जाता है।
उत्तर भारत में अधिकतर लोग नए चावल से खिचड़ी बनाकर सूर्य भगवान् का भोग लगाते है जिसके कारण ही इसे खिचड़ी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्त्व माना  गया है और स्नान के पश्चात लोग तिल और गुड़ से बनी वस्तुओं का भोग लगाकर खाते हैं। बहुत सी जगहों पर लोग पतंग उड़ाकर भी इस त्यौहार को मानते हैं ,
कहा यह जाता है कि इस दिन सूर्य  दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं। कहा यह जाता है कि इस उत्तरायण में देह त्यागने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
उत्तर भारत में इस दिन गंगा स्नान का बहुत महत्त्व है ,लोग गंगा स्नान के पश्चात खिचड़ी का दान करते हैं और खिचड़ी कहते हैं ,तिल और गुड़ का भी दान किया जाता है ।

सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर से तथा 6 महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है। 

मकर संक्रांति के पश्चात सभी शुभ कार्यों का आरम्भ हो जाता है 

 

Saturday, January 11, 2014

ekadashi vrat (putrda)

इस व्रत के नाम के अनुसार ही इसका फल है. जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती है अथवा जो व्यक्ति पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं उनके लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत बहुत ही शुभफलदायक होता है. इसलिए संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को व्यक्ति विशेष को अवश्य रखना चाहिए, जिससे उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो सके
हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है. धूप-दीप आदि से भगवान नारायण की अर्चना की जाती है, उसके पश्चात फलाहार किया जाता इस दिन दीप दान करने का महत्व है.
इस वर्ष यह एकादशी दिनाकं ११ जनवरी २०१४ को पड़   रही है ----

कथा इस प्रकार है ------------

प्राचीन काल में भद्रावतीपुरी नगर में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे.  शादी के कई वर्ष बीत जाने पर भी उनको पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई. राजा और उसकी रानी दोनों इस बात को लेकर चिन्ताग्रस्त रहते थे. राजा  इसी चिन्ता से अधिक दु:खी थे कि उनके मरने के बद उन्हें कौन अग्नि देगा. मन में बुरे-बुरे विचार आते थे। 
एक दिन इसी चिन्ता से ग्रस्त राजा सुकेतुमान अपने घोडें पर सवार होकर वन की ओर चल दिए. वन में चलते हुए वह अत्यन्त घने वन में चले गए जहाँ तरह-तरह के जानवरों की आवाजें सुनाई दे रही थी.
वन में चलते-चलते राजा को बहुत प्यास लगने लगी. वह पानी की तलाश में वन में और अंदर की ओर चले गए जहाँ उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया. राजा ने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी बने हुए है और बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे हैं।  राजा ने सभी मुनियों को बारी-बारी से सादर प्रणाम किया. ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया और बोले कि राजन हम आपसे प्रसन्न हैं. तब राजा ने ऋषियों से उनके एकत्रित होने का कारण पूछा. मुनि ने कहा कि वह विश्वेदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आये हैं. आज से पाँचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज पुत्रदा एकादशी है. जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है.

राजा सुकेतुमान ने यह सुनते ही कहा -"ऋषिवर  यदि आप सभी मुझ पर प्रसन्न हैं तब आप मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दें. मुनि बोले हे राजन आज पुत्रदा एकादशी का व्रत है.आप आज इस व्रत को रखें और भगवान नारायण की आराधना करें. राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिवत तरीके से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा. विधिवत तरीके से अनुष्ठान किया. . इसके बाद राजा ने सभी मुनियों को बार-बार झुककर प्रणाम किया और अपने महल में वापिस आ गये. कुछ समय के पश्चात रानी गर्भवती हो गई. नौ महीने बाद रानी ने एक सुकुमार पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर शूरवीर तथा प्रजापालक बना.

  इस दिन गाय के बछड़े के दूध का सागर लिया जाना चाहिए ॥