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Saturday, October 28, 2017

kartik poornima/ कार्तिक पूर्णिमा/ 4 नवंबर 2917

कार्तिक पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है.पुराणों में मान्यता है कि आज के दिन शिव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था अतः अगर इस दिन कृतिका नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा कहते हैं और इस दिन इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
वर्ष २०१७ में ४  नवम्बर को यह पूर्णिमा पड़ेगी -
शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा को समाप्त होने वाले इस माह में गंगा स्नान का भी बहुत महत्त्व है, श्रद्धालु पूरे माह प्रातः उठकर स्नान से निवृत होकर तारों के दर्शन करते हैं, कुछ लोग पूरे माह गंगा स्नानं को जाते हैं।
मत्स्यपुराण के अनुसार इस दिन भगवान् विष्णु ने  प्रलय काल में वेदों की रक्षा करने के लिए मत्स्य अवतार लिया था .इस  दिन दान -स्नान तथा दीप दान का विशेष महत्त्व है।
इस दिन चंद्रोदय पर शिवा ,सम्भूति।,संतति ,प्रीती ,अनुसूया ,और क्षमा इन छः कृतिकाओं का पूजन और वृष दान से शिवपद की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा  के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, पुष्कर, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है.

कथा ---

एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया ,इस तप से  समस्त जड़ ,चेतन ,जीव तथा देवता भयभीत हो गए। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं पर उन्हें भी सफलता नहीं मिली। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया था कि वह देवता से मरे और न ही मनुष्य से।
और इस वरदान के कारण त्रिपरसुर ने निडर हो अत्याचार करना शुरू कर दिया तब महादेव तथा त्रिपुरासुर का घमासान युद्ध हुआ, अंत में शिव जी ने विष्णु जी  की सहायता से उसका अंत कर दिया !तभी से इस दिन का महत्त्व बढ़ गया और इस दिन को दीपावली से ही सामान मनाया जाता है।
 कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिख सम्प्रदाय के लोगों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था. सिख सम्प्रदाय को मानने वाले  पूरे कार्तिक माह में सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सगंध लेते हैं.तथा प्रभात फेरियां करते हैं। इस दिन कढ़ाव प्रसाद बना कर वितरित करते हैं। कढ़ाव प्रसाद में सूजी का हलवा बनाया जाता है।
कार्तिक माह में रामायण का अध्धययन करने से बहुत पुण्य प्राप्त होता है। कुछ लोग पूरे कार्तिक में कार्तिक महात्म्य कि पुस्तक का पाठ करते हैं।
पूरे कार्तिक मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्त्व  है, तुलसी पर दीप जलना, तुलसी विवाह आदि की परम्परा बहुत पुरानी है, एकादशी से पूर्णिमा तक किसी भी दिन तुलसी विवाह किया जाता है, परन्तु अधिकतर घरों व् मंदिरों में प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया जाता है।


कुछ लोग कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन प्रातः ४ बजे उठकर दरिद्र भगाते हैं।

Tuesday, October 24, 2017

prabhodhini ekadashi/ प्रबोधनी एकादशी/ देवोत्थानी एकादशी/ दिनांक ३१ अक्टूबर २०१७






कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकाद्शी,ग्यारस तुलसी या देव उठावनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. कुछ स्थानों में इसे प्रबोधनी एकाद्शी भी कहा जाता है. इसे पापमुक्त एकादशी भी माना जाता है। 
 कहा ये जाता है कि भाद्रपक्ष की एकादशी को भगवान् विष्णु ने शंखासुर नामक राक्षस का वध किया और क्षीर सागर में थकावट के कारण शयन करने चले गए और प्रबोधनी एकादशी को चार माह के पश्चात  विश्राम समाप्त किया, तभी से चौमास प्राम्भ होता है. देवउठावनी एकादशी के दिन भगवन विष्णु शयन से उठते हैं अतः इस लिए इसे देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं।
इस तिथि के बाद ही शादी-विवाह आदि के शुभ कार्य शुरु होते है. वर्ष २०१७   में यह एकादशी दिनांक ३१ अक्टूबर को पड़ेगी।

प्रबोधनी एकादशी के विषय में कहा गया है,कि समस्त तीर्थों में जाने था, गौ, स्वर्ण, भूमि आदि के दान का फल और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रबोधनी एकादशी के रात्रि के जागरण के फल एक बराबर होते है. राजसूय यज्ञ के बराबर इस एकादशी का फल माना गया है।  इस संसार में उसी का जीवन सफल है, जिसने प्रबोधनी एकादशी का व्रत किया है. संसार में जितने तीर्थ स्थान है, वे सभी एकत्र होकर इस एकादशी को करने वाले व्यक्ति के घर में होते है. देवोत्थानी एकादशी करने से व्यक्ति धनवान, योगी, तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतने वाला बनता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति भगवान श्री विष्णु का प्रिय बन जाता है.

इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है,कहा जाता है कि कार्तिक मास मे जो मनुष्य तुलसी का विवाह भगवान से करते हैं, उनके पिछलों जन्मो के सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
 कार्तिक मास में स्नान करने वाले स्त्रियाँ कार्तिक शुक्ल एकादशी का शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है।

 वैसे तो तुलसी विवाह कि कई कथाएं हैं मगर हम जो कथा विशेष रूप से तुलसी विवाह पर कहते हैं वो इस प्रकार है ------

एक माँ की २ पुत्रियां थीं उनमें  से एक उसकी सौतेली बेटी थी, जिस कारण से वह उससे द्वेश रखती थी। मगर पुत्री उसे अपनी सगी माँ की ही तरह मानती थी और वह पूरे कार्तिक मास में तुलसी जी की पूजा करती व् विवाह विधि पूर्वक करती थी जिससे उसकी माँ उससे नाराज रहती थी। 

जब वह विवाह के लायक हुई तो माँ ने उसका विवाह तय कर दिया मगर उसके विवाह पर उसे दहेज़ की जगह तुलसी पत्र और मंजरी ही दे दिया। 

पुत्री के विदा के समय नाउ भी साथ में भेजा ताकि वह आकर उसके ससुराल का समाचार सुनाये। रस्ते में जब सभी बारातियों को भूख लगी तब उन्होंने पात्र खोलकर देखा तो उसमें तरह-तरह के फल ,मेवा और मिष्ठान थे जिन्हें उन सभी ने बड़े चाव से खाया। 

घर से जब उसका नाउ वापस चलने लगा तो उस पुत्री ने उसे २ तुलसी पत्र  दिए ,जब वह घर आया तो वे तुलसी पत्र  सोने की गिन्नी के रूप में बदल गए। 

यह देखकर उस स्त्री ने अपनी सगी बेटी को भी तुलसी की पूजा के लिया कहा और उसे भी कहा कि वो तुलसी पत्र और मंजरी को घड़े में संभालकर रखे, तथा शीघ्र ही उसका भी विवाह कर दिया ,विदा के समय उसके साथ भी उसी तरह मंजरी और तुलसी पत्र रख दिए जैसे अपनी सौतेली बेटी के साथ रखे थे। 

जब रस्ते में बारातियों ने पात्र खोले तो उनमें मिट्टी और तुलसी पत्र के अतिरिक्त कुछ नहीं था जिसके कारण  वे सभी नाराज हुए और बुरा भला कहने लगे। 

इधर जब माँ को पता चला तो वो अपनी सौतेली बेटी पर बहुत नाराज हुई और कहा तूने जादू  -टोना किया है। 

तब पुत्री ने कहाँ माँ मैं तो मन से तुलसी पूजा करती थी और इसके कारण मुझे तुलसा महारानी का आशीर्वाद मिला है। 

तब माँ को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने भी तभी  से तुलसी पूजन आरम्भ कर दिया। 

 तुलसी विवाह के सुअवसर पर व्रत रखने का बड़ा ही महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार इस दिन श्रद्धा-भक्ति और विधिपूर्वक व्रत करने से व्रती के इस जन्म के साथ-साथ पूर्वजन्म के भी सारे पाप मिट जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है.
इस दिन इस तरह की रंगोली या चौक पूरते (बनाते) हैं और सिंघाड़े, शकरकंद  आदि  से पूजन करते हैं 
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेकर सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए। 
इस दिन निराहार व्रत रहकर बारस को ब्राह्मणों को दान करने के पश्चात् भोजन का विधान बताया गया है लेकिन यदि ऐसा संभव न हो तो फलाहार के साथ इस व्रत को किया जा सकता है मगर अन्न का निषेध बताया गया है। 
शमी के पुष्प, बेल पत्र चढाने का महत्त्व भी बताया गया है।