Powered By Blogger

Thursday, June 13, 2013

shree hanman pooja

ज्येष्ठ माह में राम भक्त श्री हनुमान जी की पूजा का विशेष महत्व है । लखनऊ शहर में विशेष कर ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले हर मंगल वार को हनुमान मंदिर में मेला भी लगता है ,। जगह-जगह लोग आलू और पूरी का भंडारा करते हैं ,अपनी श्रद्धा के अनुसार लोग मंदिरों  में प्याऊ लगवाते हैं । लखनऊ शहर के अलीगंज के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर और गोमती के तट पर स्थित हनुमान मंदिर की विशेष महत्ता है । इन दिनों लोग अपने घरों से पेट के बल चल कर हनुमान मंदिर में अपनी मनोकामना की कामना से आते हैं । लोग तड़के ही उठ कर पैदल ही चलकर मंदिरों में   दर्शनार्थ आते हैं । हनुमान सेतु में लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार श्रृंगार भी करते हैं ,कुछ लोग बिजली की झालरों सेऔर कुछ लोग फूलों से भी श्रृंगार कराते हैं .ऐसी मान्यता है की ज्येष्ठ माह के प्रति मंगलवार को जो भी भक्त हनुमत दर्शन और व्रत करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है । लखनऊ के ही अमीनाबाद के हनुमान मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर घंटे चढ़ाते हैं ।
पूजन विधि----प्रातः काल उठ कर स्नान  आदि सी निवृत होकर साफ़ आसन पर बैठ कर हनुमान जी की मूर्ति को लाल आसन पर स्थापित करें ,पुष्प स्नान कराकर चमेली के तेल में सेंदुर मिलाकर टीका लगायें और लाल फूल चढ़ाएं । श्रद्धा के अनुसार भोग बनाकर रखें ,और हनुमान गायत्री के साथ पाठ का आरम्भ करें ।

हनुमान गायत्री----ॐ आन्जनीनीजाय विदमहे वायुपुत्राय श्रीमही । तन्नो हनुमान प्रचोदयात ॥ 

इस गायत्री की कम से कम १ १ माला का जप करें । अगर सामर्थ्य हो तो सुंदरकांड का पाठ करें । 

ऐसी मान्यता है की असाध्य रोगों से छुटकारा पाने के लिए हनुमान बाहुक का २ १ दिनों तक पाठ करना चाहिए
इस माह में प्रत्येक मंगलवार को सुन्दर कांड पढ़ने से विशेष फल प्राप्त होता है । तुलसी पत्र पर सेंदुर से राम लिख कर चढ़ाने से हनुमान भक्ति प्राप्त होती है । 

ॐ बज्रंगाय नमः (आध्यात्मिक शांति के लिए) ,

ॐ पवनाय नमः (आधिभौतिक शांति के लिए )

और ॐ हनुमते नमः का जप आधिदैविक शांति के लिए करना चाहिए । 

बड़ी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए ७ ,१ १ ,२ १ दिनों तक सुन्दरकाण्ड का पाठ विशेष फलदायी है ।


Thursday, June 6, 2013

vat savitri vrat

ज्येष्ठ माह की अमावश्या को वत  सावित्री का व्रत सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु के लिए रखती हैं ,इस वर्ष आने वाली ८ जून को वत सावित्री व्रत पड़ रहा है ।

विधान -----

            पूजा के लिए प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर स्वछ वस्त्र पहन कर पूजा के लिए मीठी पूरी ,भीगा हुआ चना ,कच्चा सूत ,पुष्प ,धूप ,जल ,घी का दिया आदि एक थाली में रख कर बरगद के वृछ के नीचे बैठ कर पूजा की जाती है .
         बहुत सी जगह पर मीठी पूरी के साथ नमकीन पूरी व् मीठे बरगद भी बनाये जाते हैं ,

कथा -----

            प्राचीन काल में मद्र देश के राजा अश्वपति के सर्वगुण संपन्न कन्या थी ,जो सावित्री देवी की पूजा के पश्चात उत्पन्न हुई थी अतः उसका नाम सावित्री रखा गया । कन्या के युवा होने पर राजा में अपने मंत्री के साथ वर चुनने के लिए भेज दिया । जिस दिन सावित्री वर चुन कर दरबार में आई ,महर्षि नारद पधारे हुए थे । 
            जब नारद ने सावित्री से वर का नाम पूछा तो सावित्री ने बताया महाराज धुम्त्सेन ,जिनका राज्य छीन लिया गया और तथा जो अंधे हो चुके थे और दर- बदर घूम रहे हैं ,उनके के एकलौते पुत्र सत्यवान को मैंने अपने पति के रूप में  चुना है । 
           नारद जी ने अश्वपति को बधाई दी परन्तु एक बात और बताई की जब सावित्री बारह वर्ष की होगी तब इसके पति की म्रत्यु हो जाएगी ,तब राजा ने सावित्री को दूसरा वर चुनने को कहा ,परन्तु सावित्री ने कहा ,पिताजी मैं आर्य पुत्री हूँ जो जीवन में एक ही वर चुनती है । 
             विवाह हुआ ,सावित्री परिवार सहित जंगल में सास -ससुर की सेवा करते हुए जीवन व्यतीत करने लगी ,जब सावित्री बारह वर्ष की हुई ,उस दिन सत्यवान लकड़ी काटने जंगल में जाने लगे तब सावित्री ने भी साथ चलने को कहा ,
           जंगल में सत्यवान ने मीठे फल लाकर सावित्री को दिए और स्वयं लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ गए .थोड़ी ही देर में सत्यवान को सर में बहुत तेज़ दर्द हुआ और वो पेड़ से उतर कर आये और सावित्री की गोद में सर रखकर लेट गए ,थोड़ी ही देर में उनके प्राण पखेरू हो गये ,। 
            जब यमराज उनकी आत्मा को ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे हो चलीं ,यमराज ने कहा "पुत्री म्रत्यु के पश्चात जीवित मनुष्य स्वर्ग नहीं जाता ,अतः तुम वापस जाओ " इस पर सावित्री ने कहा ,"महाराज पत्नी क पतीत्व पति के साथ है ,अतः जहाँ पति जायेंगे वहीँ मैं भी जाउंगी " इस पर यमराज ने वर मांगने को कहा ---सावित्री ने सास- ससुर की खोयी नेत्र ज्योति का वर मांगा . यमराज ने तथास्तु कहा और आगे को चल पड़े । 
           सावित्री फिर भी उनके पीछे चलती रही ,यमराज ने पुनः वापस जाने को कहा परन्तु सावित्री की धर्मनिष्ठा देखकर पुनः वर मांगने को कहा ! सावित्री ने सास-ससुर को राज्य मिल जाये ,ऐसा वर मांगा ,यमराज ने पुनः तथास्तु !कहा और आगे चल दिए । 
       सावित्री  अभी भी उनके पीछे चल रही थी ,इस पर यमराज ने कहा पुत्री तुम विपरीत दिशा में वापस जाओ ,इस पर सावित्री बोली --"पति के बिना पत्नी के  जीवन की कोई सार्थकता नहीं है "इस पर यमराज ने पुनः वर मांगने को कहा ! सावित्री ने सौ पुत्रों की माँ होने का वर माँगा ,यमराज तथास्तु !कहकर आगे बढ़ चले । 
     अब भी सवित्री को पीछे आता देख यमराज ने झुंजला कर कहा पुत्री ,अब तो मैं तुम्हें मुंह मांगा वर भी दे चूका हूँ ,अब तो विपरीत दिशा में चली जाओ " इस पर सावित्री ने कहा :महाराज ! सौ पुत्रों की माँ बिना पति के कैसे बन सकती हूँ " यमराज ने उसकी पतिव्रता से प्रसन्न होकर सत्यवान को जीवन दान दे दिया ,और स्वयं वापस चले गए । 
            प्रसन्नचित सावित्री उसी जगह वापस आई जहाँ सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था ,उसने बरगद के पेड़ की परिक्रमा की ,इसी के साथ सत्यवान भी जीवित हो उठे । सावित्री घर वापस आई सास- ससुर की नेत्रों की ज्योति वापस आ गयी ,उनका खोया राज्य भी मिल गया ,इस तरह सावित्री ने अपनी धर्मनिष्ठा ,विवेक से न केवल अपने पति का जीवन पाया अपितु जो भी खोया हुआ था प्राप्त किया । उसकी कीर्ति सारे संसार में फैल गयी । 

कथा के उपरान्त बरगद की परिक्रमा कच्चे धागे से करने के बाद सुहागिनें भीगा हुआ चना और बरगद के फल से अपने व्रत को तोड़ती हैं .


            

Monday, June 3, 2013

achla ekadashi vrat

अचला एकादशी को अचला और अपरा दो नामों से जाना जाता है । इस व्रत के करने से ब्रह्म हत्या ,परनिंदा और प्रेत्योनि जैसे कर्मों से मुक्ति मिलती है । ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत किया जाता है । 

व्रत की विधि ---

                        व्रती जल से स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करे ,और स्वच्छ आसन पर बैठ कर प्रभु श्री विष्णु और लछमी की मूर्ति स्थापित करें .तत्पचात गंगाजल से स्नान करा कर धूप ,दीप से पूजन करें तथा व्रत  का संकल्प करें .पूजन में शंख और घंटी अवश्य रखें ,ये दोनों ही विष्णु प्रिय हैं । दिन भर उपवास करें, रात को जागरण करें।दूसरे दिन व्रत का ब्राह्मण को भोजन कराकर उसे दान दक्षिणा देकर विदा करें। पूजन में चावल के स्थान पर तिल और पुष्प का इस्तेमाल करें ,एकादशी के पूजन में चावल के अक्षत नहीं चढ़ाते । 

कथा -------

                        प्राचीन काल में महिध्वज नामक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई ब्रजध्वज बड़ा ही अन्यायी, अधर्मी और क्रूर था।वह अपने बड़े भाई से द्वेश रखता था । एक दिन अवसर पाकर उसने अपने भाई की हत्या कर दी और मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृछ के नीचे दबा आया । 
                             इसके बाद राजा की आत्मा उस पीपल में वास करने लगी। अचानक एक दिन धौम्य ऋषि पीपल के वृक्ष के नीचे से निकले।उन्होंने तपोबल से उसके जीवन वृतांत को समझ लिया । 
                                  ऋषि ने राजा के प्रेत को पीपल के वृक्ष से उतारकर परलोक विद्या का उपदेश दिया और प्रेत योनि से छुटकारा पाने के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत रखने से राजा का प्रेत दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक को चला गया।

           एकादशी का व्रत करने वाले को अधिक से अधिक भजन में समय बिताकर रात्रि जागरण करके प्रातः स्नान करने के पश्चात भोजन करना चाहिए ।