नवरात्री का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है और इन दिनों माँ दुर्गा के भक्त माँ के नौ रूपों की विधिविधान से पूजा करते हैं ,शारदीय नवरात्री आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होकर नवमी तिथि को कन्या पूजन के साथ समाप्त की जाती है। इस वर्ष यह नवरात्री दिनांक 13 अक्टूबर २०१५ से आरम्भ होकर अक्टूबर को समाप्त होगी।
नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है. नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक किर्या कलाप संपन्न किए जाते हैं॥
पूजन में सर्वप्रथम स्वच्छ स्थान में माता की मूर्ती अपनी सामर्थ्य के अनुसार मिटटी,चांदी ,पीतल या फिर तस्वीर लेकर एक चौकी पर स्वच्छ लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें ,अब एक मिटटी के पात्र में मिट्टी डालकर बीच में पीतल,ताम्बे या फिर मिटटी का कलश भरकर रखें ,इसमें थोड़ा सा शहद डालें ,कलश के ऊपर एक पात्र मैं अक्षत डालें और इसके चारों ओर आम के पत्ते लगाएं । अब बाकि की मिट्टी में जौ बो दें (इसे ही खेतड़ी कहा जाता है ) यदि स्वयं न कर सकें तो पुरोहित के द्वारा भी इस विधान को कराया जा सकता है । कलश की स्थापना के साथ ही नवदुर्गा पूजन का आरम्भ हो जाता है ,यदि आप नौ दिनों के लिए दीपक भी प्रज्वलित करना चाहते हैं तो इसी समय अखंड ज्योति भी जल कर रखें, अखंड ज्योति का स्थान हमेशा उत्तर पूर्व में रखें । और दुर्गा सप्तसती,दुर्गा चालीसा ,दुर्गा स्तुति से माँ को प्रसन्न करें ।
माँ के नौ रूपों की व्याख्या इस प्रकार है ------
- प्रथम हैं माँ शैलपुत्री ,हिमालय पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा .
- नवरात्री के दुसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है ,तप और जप करने के कारन इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा .
- माँ चंद्रघंटा की पूजा नवरात्री की तीसरे दिन की जाती है ,इस रूप में माँ के मस्तक पर अर्धचन्द्र बना है अतः इस रूप को चंद्रघंटा कहते हैं .
- चतुर्थी को माँ कूष्मांडा की अर्चना का विधान है .ऐसा कहा जाता है मंद हंसी के द्वारा माँ ने ब्रम्हांड को उत्पन्न किया .इसलिए इन्हें कुष्मांडा कहा जाता है
- चार भुजाओं वाली माँ स्कंदमाता की अर्चना पंचमी को की जाती है .
- जिनकी उपासना से भक्तों के रोग ,शोक ,भय ,और संताप का विनाश होता है ऐसी माँ कात्यायनी की उपासना छठे दिन की जाती है .
- काल से रक्षा करने वाली देवी कालरात्रि की उपासना सातवें दिन की जाती है .
- शांत रूप वाली ,भक्तों को अमोघ फल देने वाली देवी महागौरी की पूजा आठवें दिन की जाती है .
- भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी सिध्दात्री की पूजा नवें दिन की जाती है .
यहाँ मैं उन मन्त्रों का उल्लेख कर रही हूँ ----
सर्वप्रथम हवन कुण्ड में लकड़ी रखें फिर जल से स्नान कराएं , कुमकुम लगाकर समिधा से हवन शुरू करें ।
१. ऐं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः स्वाहा ॥
२. ऐं ह्रीं क्लीं कनकवती स्वाहा ॥
३. ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डा विच्चै नमः स्वाहा ॥
इन मन्त्रों का ११ बार आहुति दें ,,,तदुपरांत --
१. ॐ नमः स्वाहा ॥२. ॐ श्री सद्गुरु देवाय नमः स्वाहा ॥
३. ॐ परमब्रहाय नमः स्वाहा ॥
इन मन्त्रों का ५ बार आहुति दें ।।
इसके बाद २४ बार गायत्री मन्त्र से आहुति देकर अंत में भोग और बलि देकर हवन की विधि समाप्त करें ,यहाँ बलि का आशय किसी जीव की बलि से बिलकुल नहीं है बल्कि आप साबुत सुपारी के द्वारा बलि दें और फिर पान खिलाकर देवी को विदा करें। तत्पचात स्वय प्रसाद ग्रहण कर फलहार लें ।
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