जो व्यक्ति और कोई भी एकादशी का व्रत नहीं रखते वे इस पुत्रदा एकादशी का व्रत करके अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकते हैं ।
कथा ------
भगवान श्री कृष्ण जी बोले ---हे धर्म पुत्र ! पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है और इसके महात्मय की कथा इस प्रकार है --
एक समय भद्रवती नगर में संकेतमान नाम का राजा राज्य करता था ,उसकी स्त्री का नाम शैव्या था ,पूरा भवन विश्व-विभूतियों से भरा था,द्वार चिन्तामणियों से सुसज्जित था। परन्तु राजा उदास था और उसे अपने चारों ओर अँधेरा महसूस होता था ,कारन की उसके कोई भी संतान नहीं थी। हजारों यज्ञ करने के बाद भी उसे कोई संतान नहीं हुई।
हर कर उसके मन में विष खाने और जंगल में जाने के विचार आने लगे थे ,फिर विचार किया आत्मघात करना महापाप है और फिर इस चिंता से मुक्त होने के लिए उसने वनवासियों से परामर्श लेने का विचार बनाया।
घोड़े पर सवार वन विहार करने लगा, वहां पशु-पक्षी इत्यादि जीवों को पुत्रों के साथ खेलता देखा मन में कहने लगा की ये मेरे से भी अधिक सौभाग्यशाली हैं।
आगे चला तो एक सरोवर मिला जिसमें मछलियाँ आदि जलचर भी अपनी संतानों के साथ विहार कर रहे थे ,
चारों तरफ मुनियों के आश्रम थे ,राजा घोड़े से उतरे और मुनियों की शरण में गए ,प्रणाम किया और अपना दर्द कहा ,मुनि बोले हम विश्व के देवता हैं और इस सरोवर को पतित पवन समझ कर यहाँ स्नान करने आये हैं ,आज पुत्रदा एकादशी है जो पुत्र की इच्छा को पूर्ण करता है।
राजा बोला क्या यह दिव्य फल मुझे इस व्रत के फल से मुझे भी प्राप्त हो जायेगा ,विश्वदेव बोले -राजन हमारी बात सत्य होगी।
राजा ने पूर्ण श्रद्दा के साथ स्नान किया और पुत्रदा एकादशी का व्रत किया ,रात्रि जागरण किया और भवन में चला गया। पुत्रदा एकादशी के फल से उसे पुत्र की प्राप्ति हुई ,कथा को सुनने मात्र से ही स्वर्ग मिलता है ऐसी मान्यता है।
इस दिन नारायण जी की पूजा की जाती है ,इस दिन गौ के दूध का सागर लिया जाना चाहिए ।