दिनांक १५ अप्रैल २० १५
वरूथनी एकादशी का व्रत
बैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है ,पाण्डु पुत्र
युधिष्ठिर ने जब श्रीकृष्ण से पुछा-" कि बैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी
को क्या कहते हैं" ,तब श्रीकृष्ण जी ने बताया कि इस एकादशी को बरूथनी
एकादशी के नाम से जाना जाता है ।
महत्व -------
कहा जाता है -जो मनुष्य इस एकादशी को पूर्ण श्रद्धा से इस व्रत को करते हैं
उन्हें दस हजार वर्ष तप करने से जो फल मिलता है वो ही इस व्रत के प्रभाव
से मिलता है ,कन्या दान से भी उत्तम इस व्रत का फल है ,जो फल कुरुक्षेत्र
में स्नान से मिलता है वो ही इस व्रत के प्रभाव से मिलता है।
व्रत की विधि-------
इस एकादशी के व्रत के के दिन पूर्व यानि की दशमी को रात्रि में सात्विक
भोजन करना चाहिए साथ ही शयन के लिए धरती का उपयोग करना चाहिए ,व्रती को
प्रातः स्नान से निवृत होकर पूजन सामिग्री एकत्रित करने के उपरांत धूप ,डीप
और धान्य से पूजन करना चाहिए ।
कथा ----
प्राचीन समय में नर्मदा नदी के तट पर राजा मान्धाता राज्य सुख को भोग
रहे थे ,राजयकाज करते हुए भी राजन अत्यधिक दानशील और तपस्वी थे , एक दिन जब
राजन तपस्या में लीं थे उसी समय एक जंगली भालू ने राजा का पैर काटना शुरू
कर दिया और थोड़ी ही देर में वह राजा को जंगल में ले गया ,राजा घर गए और
उन्होंने भगवान विष्णु की आराधना की और शीघ्र ही श्री विष्णु वहां प्रकट हो
गए, और उन्होंने अपने चक्र से उस भालू को मार गिराया ,पर तब तक भालू उनका
पैर तो खा ही चूका था जिसके कारण राजा बहुत चिंतित हुए।
भगवान वुशनु जी
ने कहा तुम मथुरा में जाकर मेरी वराह अवतार की पूजा करो और वरूथनी एकादशी
का व्रत करो। राजन ने पूर्ण शर्द्धा से इस व्रत को किया और वो पहले जैसे
सुन्दर अंगों वाले हो गए ।