भाद्रपक्ष की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी के नाम से जाना जाता है, इस एकादशी की पूजा करने से बाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस एकादशी को वामन एकादशी भी कहा जाता है।
कथा -------
त्रेता युग में
प्रहलाद के पौत्र राजा बलि राज्य करता था ,ब्राह्मणों का सेवक था और भगवान्
विष्णु का परम भक्त था । मगर इन्द्रादि देवताओं का शत्रु था । अपने भुज बल
से देवताओं को विजय करके स्वर्ग से निकाल दिया था । देवताओं को दुखी देखकर
भगवन विष्णु में वामन का स्वरुप धारण किया और राजा बलि के द्वार पर आकर
खड़े हो गए और कहा मुझे तीन पग प्रथ्वी का दान चाहिए , बलि बोले --"तीन पग
क्या मैं तीन लोक दान कर सकता हूँ "
भगवान् ने विराट रूप धारण किया ,२ लोकों को २ पग में ले लिए ,तीसरा पग राजा बलि के सर पर रखा जिसके कारण पातळ लोक चले गए ।
जब भगवान् वामन पैर उठाने लगे तब बलि ने उनके चरणों को पकड़कर कहा इन्हें मैं मंदिर में रखूंगा ।
तब भगवान् बोले -"यदि तुम वामन एकादशी का व्रत करोगे तो में तुम्हारे द्वार पर कुटिया बनाकर रहूँगा। "
राजा बलि एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया और कहा जता है की तभी से भगवान्
की एक प्रतिमा पातळ लोक में द्वारपाल बनकर निवास करने लगी और एक प्रतिमा
छीर सागर में निवास करने लगी ।
इस दिन भगवन विष्णु की पूजा का विधान है साथ ही इस दिन ककड़ी का सागर लिया जाना चाहिए ।
हम गृहस्थ आश्रम में रहकर जितनी विधि - विधान से पूजन कर सकते हैं करना चाहिए, ईश्वर ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है की आप पूरी विधि का ही पालन करें हाँ, सभी पूजन में साफ- सफाई का ध्यान अवश्य किया जाना चाहिए ।
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