हिन्दू धर्म के अनुसार वर्ष में चौबीस एकादशी पड़ती हैं और जिस वर्ष अधिक मास पड़ता है उस वर्ष दो एकादशी अधिक पड़ती हैं। एकादशी माह में दो पड़ती है प्रति पन्द्रहवें दिन एकादशी पड़ती है।
विधि पूर्वक एकादशी का व्रत और पूजन विशेष फलदायी माना गया है, एकादशी के व्रत में यूँ तो अनाज और नमक खाना वर्जित है परन्तु यदि कोई नमक खाना चाहे तो व्रत वाला (सेंधा नमक) ले सकता है मगर अन्न लेना विशिष्ट रूप से वर्जित है।
माना ये गया है कि एकादशी में चावल न ही खाने चाहिए न ही दान करने चाहिए और न चढाने चाहिए।
भाद्र पक्ष की शुक्ल एकादशी को वामन एकादशी कहा जाता है और इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी में वामन की पूजा का विधान है । भगवान् विष्णु अपनी शयन वेदिका पर करवट बदलते रहते हैं और इसीलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है ।
इस वर्ष यह एकादशी २ सितंबर २०१७ को पड़ रही है।
विधि पूर्वक एकादशी का व्रत और पूजन विशेष फलदायी माना गया है, एकादशी के व्रत में यूँ तो अनाज और नमक खाना वर्जित है परन्तु यदि कोई नमक खाना चाहे तो व्रत वाला (सेंधा नमक) ले सकता है मगर अन्न लेना विशिष्ट रूप से वर्जित है।
माना ये गया है कि एकादशी में चावल न ही खाने चाहिए न ही दान करने चाहिए और न चढाने चाहिए।
भाद्र पक्ष की शुक्ल एकादशी को वामन एकादशी कहा जाता है और इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी में वामन की पूजा का विधान है । भगवान् विष्णु अपनी शयन वेदिका पर करवट बदलते रहते हैं और इसीलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है ।
इस वर्ष यह एकादशी २ सितंबर २०१७ को पड़ रही है।
कथा :-
त्रेता युग में
प्रहलाद के पौत्र राजा बलि राज्य करता था ,ब्राह्मणों का सेवक था और भगवान्
विष्णु का परम भक्त था । मगर इन्द्रादि देवताओं का शत्रु था । अपने भुज बल
से देवताओं को विजय करके स्वर्ग से निकाल दिया था । देवताओं को दुखी देखकर
भगवन विष्णु में वामन का स्वरुप धारण किया और राजा बलि के द्वार पर आकर
खड़े हो गए और कहा मुझे तीन पग प्रथ्वी का दान चाहिए , बलि बोले --"तीन पग
क्या मैं तीन लोक दान कर सकता हूँ "
भगवान् ने विराट रूप धारण किया ,२ लोकों को २ पग में ले लिए ,तीसरा पग राजा बलि के सर पर रखा जिसके कारण पातळ लोक चले गए ।
जब भगवान् वामन पैर उठाने लगे तब बलि ने उनके चरणों को पकड़कर कहा इन्हें मैं मंदिर में रखूंगा ।
तब भगवान् बोले -"यदि तुम वामन एकादशी का व्रत करोगे तो में तुम्हारे द्वार पर कुटिया बनाकर रहूँगा। "
राजा बलि एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया और कहा जता है की तभी से भगवान्
की एक प्रतिमा पातळ लोक में द्वारपाल बनकर निवास करने लगी और एक प्रतिमा
छीर सागर में निवास करने लगी ।
इस दिन सम्भव हो सके तो वामन भगवान् की मूर्ती की पूजा करनी चाहिए और ककड़ी या खीरे का सागार लेना चाहिए।