भाद्र पक्ष की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश
चतुर्थी का आयोजन धूमधाम से किया जाता है, और इसे विनायक चतुर्थी भी कहा
जाता है गणेशजी का वाहन मूषक है , इनको बुद्धि का देवत माना जाता है ।
इनकी पत्नी रिद्धि और सिद्धि हैं । और गणेश जी का प्रिय भग मोदक है जो चावल
के आटे से बनाया जाता है और जिसमें नारियल और गुड़ डाला जाता है । चतुर्थी
के दिन गणेश जी की स्थापना करने के बाद सभी लोग अपनी सुविधा के अनुसार रखते
हैं ,और फिर १० दिनों के बाद विसर्जन किया जाता है ।
शिवपुराण में ऐसा विदित है कि एक समय माता पार्वती के स्नान से मैल से एक पुत्र को उतपन्न किया और उनमें प्राण फूंक दिए, और उसे अपना द्वारपाल नियुक्त किया, जिसने शिव जी के आने पर उन्हें भीतर न जाने दिया और शिव जी ने क्रोध में आकर उसका सर धड़ से अलग कर दिया, माता पार्वती अत्यं क्रुद्ध हो उठीं, महर्षि नारद के आग्रह पर माँ जगदम्बा की स्तुति द्वारा उनको शांत किया गया, श्री भगवन ने हठी का मस्तक उस पुत्र को लगाकर ओनह उनमें प्राण फूंक कर जीवित किया, भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने से पहले विघ्नविनाशक श्री गणेश जी की पूजा की जाती है ।
शिवपुराण में ऐसा विदित है कि एक समय माता पार्वती के स्नान से मैल से एक पुत्र को उतपन्न किया और उनमें प्राण फूंक दिए, और उसे अपना द्वारपाल नियुक्त किया, जिसने शिव जी के आने पर उन्हें भीतर न जाने दिया और शिव जी ने क्रोध में आकर उसका सर धड़ से अलग कर दिया, माता पार्वती अत्यं क्रुद्ध हो उठीं, महर्षि नारद के आग्रह पर माँ जगदम्बा की स्तुति द्वारा उनको शांत किया गया, श्री भगवन ने हठी का मस्तक उस पुत्र को लगाकर ओनह उनमें प्राण फूंक कर जीवित किया, भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने से पहले विघ्नविनाशक श्री गणेश जी की पूजा की जाती है ।
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है ।
कैसे करें पूजन ,स्थापना और विसर्जन ..
- गणेशोत्सव के दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर गणेशजी की प्रतिमा बनाई जाती है। गणेशजी की इस प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर, मुंह पर कोरा कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित किया जाता है। फिर मूर्ति पर (गणेशजी की) सिंदूर चढ़ाकरपूजन करना चाहिए ।
- पूजन के समय अपना मुंह उत्तर या पूर्व की और रखना चाहिए ।
- पूजन में पुष्प ,धूप के पश्चात :ॐ गण गणपतये नमः"मन्त्र से माला का जप करना चाहिए ।
- पूजन में तिल ,गुड़ से बनी चीज़ों का भोग लगाना चाहिए ,गणेशजी को मोदक सर्वप्रिय है ।
- अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए ।
- गणेशजी को केवड़ा जल के सुगन्धित जल से स्नान कराना बहुत ही शुभ माना गया है।
- प्रतिदिन यदि गणेश जी की प्रतिमा को केवड़ा जल से स्नान कराएं तो संतान के लिए लाभदायी होती है।
- गणेश जी को तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए।
कथा :-
- पौराणिक
गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद
मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी
बैठे थे।
देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेशजी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।
- भगवान
शिव से यह सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा
के लिए निकल गए। परंतु गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी
पृथ्वी की परिक्रमा कैसे करेंगे ,इस तरह से तो बहुत समय लग जाएगा।
उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।
तब गणेश ने कहा - 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।'
यह सुनते ही भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे।
- जिस भी दिन विसर्जन किया जाना हो पूजन ,वंदन करके कलश और थाल के साथ गणेश जी की प्रतिमा को बंधू जनों के साथ जाकर किसी नदी या तालाब में जाकर विसर्जित करना चाहिए ।
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