बसंत पंचमी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनायी जाती है ,यह दिन सभी शुभ कार्यों के लिए शुभ माना गया है।
इस वर्ष ४ फरवरी २०१४ को बसंत पंचमी मनायी जा रही है ,इस दिन सरस्वती पूजा का विशेष महत्त्व है.
सृष्टि के रचना काल में विष्णु जी की आज्ञा से ब्र्ह्माजी ने मानव योनि की रचना की पर वः अपनी इस रचना से संतुष्ट नहीं थे।
और तब ब्र्ह्मा जी ने भगवन विष्णु से आज्ञा लेकर पृथ्वी पर जल छिड़का ,जिससे धरती पर कम्पन होने लगा और एक अतिसुंदर स्त्री अद्भुत रूप में प्रकट हुई, जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया। माँ सरस्वती को वीणावादिनी ,माँ भगवती,माँ शारदा के नाम से भी जाना जाता है।
वसंत पंचमी के दिन को माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
पुराणोँ के अनुसार भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार के रूप में सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी आराधना की जाएगी। इस कारण हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
सुमित्रानंदन पंत जी ने वसंत पंचमी पर ये कविता भी लिखी है ---
फिर वसंत की आत्मा आई,
मिटे प्रतीक्षा के दुर्वह क्षण,
अभिवादन करता भू का मन !
दीप्त दिशाओं के वातायन,
प्रीति सांस-सा मलय समीरण,
चंचल नील, नवल भू यौवन,
फिर वसंत की आत्मा आई,
आम्र मौर में गूंथ स्वर्ण कण,
किंशुक को कर ज्वाल वसन तन !
देख चुका मन कितने पतझर,
ग्रीष्म शरद, हिम पावस सुंदर,
ऋतुओं की ऋतु यह कुसुमाकर,
फिर वसंत की आत्मा आई,
विरह मिलन के खुले प्रीति व्रण,
स्वप्नों से शोभा प्ररोह मन !
सब युग सब ऋतु थीं आयोजन,
तुम आओगी वे थीं साधन,
तुम्हें भूल कटते ही कब क्षण?
फिर वसंत की आत्मा आई,
देव, हुआ फिर नवल युगागम,
स्वर्ग धरा का सफल समागम !
मिटे प्रतीक्षा के दुर्वह क्षण,
अभिवादन करता भू का मन !
दीप्त दिशाओं के वातायन,
प्रीति सांस-सा मलय समीरण,
चंचल नील, नवल भू यौवन,
फिर वसंत की आत्मा आई,
आम्र मौर में गूंथ स्वर्ण कण,
किंशुक को कर ज्वाल वसन तन !
देख चुका मन कितने पतझर,
ग्रीष्म शरद, हिम पावस सुंदर,
ऋतुओं की ऋतु यह कुसुमाकर,
फिर वसंत की आत्मा आई,
विरह मिलन के खुले प्रीति व्रण,
स्वप्नों से शोभा प्ररोह मन !
सब युग सब ऋतु थीं आयोजन,
तुम आओगी वे थीं साधन,
तुम्हें भूल कटते ही कब क्षण?
फिर वसंत की आत्मा आई,
देव, हुआ फिर नवल युगागम,
स्वर्ग धरा का सफल समागम !
आप सभी को वसंत पंचमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। ………
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