न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं -----
हर भक्त कहते हैं, यही सद्ग्रन्थ गाते हैं ---
१. नहीं स्वीकार करते है निमंत्रण नृप द्रुयोधन का, विदुर के घर पहुंचकर भोग छिलकों का लगाते हैं -----
२. न आये मधुपुरी से गोपियों की दुःख कथा सुनकर,
द्रुपद जां की दशा पर द्वारिका से दौड़े आते हैं------
३. न रोये वन गमन में श्री पिता की वेदनाओं पर,
उठाकर गीध को निज गोद में आँसू बहते हैं ---
४. कठिनता से चरण धोकर मिले कुछ बिंदु विधि हरी को,
चरणोदक स्वयं केवट घर जाकर लुटाते हैं ---------
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