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Sunday, January 19, 2014

sankashthi (sakat) pooja

सकट पूजा उत्तर प्रदेश में अधिकतर मनायी जाती है ,इसे गणेश संकष्टी पूजा भी कहा जाता है ,माह मास में कृष्ण  पक्ष की चौथ को इसे मनाया जाता है।
जिस तरह सुहागिन स्त्रियां करवा चौथ में निर्जल रहकर पति की लम्बी आयु की कामना हेतु व्रत रहकर पूजा करती हैं ,उसी तरह सकट चौथ की पूजा बेटों की लम्बी आयु के लिए स्त्रियां , पुत्रवती माँ निर्जल रहकर पूजा करती हैं और चन्द्रमा या फिर तारों में अपने व्रत को खोलती है ,इस पूजा में तिल से बनाये हुए पकवानों का विशेष महत्त्व होता है।
इस वर्ष यह व्रत दिनांक ८ जनवरी २०१५ को पड़ रहा है।
पूजन के लिए गौरी-गणेश की मूर्ति स्थापित करके उनका विधिवत पूजन किया जाता है। पूजा के स्थान पर तिल,गंजी ,बथुए का साग ,गुड आदि रखा जाता है ,और फिर कथा कहकर चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पानी पिया जाता है।

कथा -------

इस व्रत में वैसे तो ४ कथा कही जाती हैं पर जो मुख्य कथा है वह इस प्रकार है ------- 
किसी राज्य में यह प्रथा थी कि प्रतिदिन एक घर से एक बलि के द्वारा ही आँवा (बर्तन पकाने वाला ) जलाया जाता था ,ऐसा कहा जाता था कि जिस दिन किसी की बलि नहीं दी जायेगी उस दिन आँवाँ नहीं जलेगा और बर्तन कच्चे ही रह जायेंगे। 
एक दिन जिस बूढी औरत के घर की बारी थी वह विधवा थी और उसके एक ही पुत्र था ,बुधिा इसी आशंका से व्यथित थी कि अगर आज मेरे बेटे की बलि दे दी जायेगी तो मैं कल आने वाले सकट की पूजा किसके लिए करूंगी। 
इसी सोच विचार में वह दरवाजे पर बैठी रो रही थी उधर से सकट देव निकले !उन्होंने पूछ कि देवी तुम क्यों रो रही हो तुम्हारी क्या परेशानी है ?तब वह विधवा बोली भगवन _"आज इस राज्य में जिसकी बलि दी जानी  है वह मेरा एकलौता पुत्र है और अगर उसकी ही बलि चढ़ जायेगी तो में कैसे रहूंगी और किसके वास्ते सकट की पूजा करूंगी "
तब महाराज ने उस बुढ़िया को ५ सुपारी और एक ५ का सिक्का देते हुए कहा _ देवी तुम इसे अपने पुत्र को दे देना और फिर उसे आंवा में बिठा देना "
बुढ़िया ने वैसा ही किया "जैसे दूसरे दिन आँवा खोला गया उसका पुत्र जीवित बैठा था। और तभी से बिना बलि के उस राज्य में बर्तन पकाने के लिए आंवा लगाया जाने लगा। बुढ़िया ने भी प्रसन्नता पूर्वक सकट की पूजा संपन्न की। 
इस तरह सकट देव पुत्र रक्षा करते है।संकष्ठी चतुर्थी के दिन कुछ स्त्रियां फलहार लेती है,जिसमें शकरकंद और दूध लिया जाता है परन्तु जो भोजन ग्रहण करती हैं वे पूरी आदि का सागार ले सकती हैं । 
कहीं-कहीं सूर्य को अर्घ्य देकर व् कहीं तारों में भी पूजा समाप्त की जाती है ॥

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