षटतिला एकादशी के दिन तिलों का छ: प्रकार से उपयोग किया जाता है. जैसे - तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन करना, तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना और तिलों का दान करना - ये छ: प्रकार के उपयोग हैं. इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है.
माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है ,और इस वर्ष यह एकादशी तारिख २७ जनवरी २०१४ को पड़ रही है।
इस दिन जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं, उनके सभी पापों का नाश होता है , काम, क्रोध, अहंकार, बुराई तथा चुगली का त्याग कर भगवान की शरण में जाना चाहिए. माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखने वाले मनुष्य के सभी पाप समाप्त होते हैं।
कथा----
प्राचीन काल में पृथ्वी लोक में एक ब्राह्मणी रहती थी. वह हमेशा व्रत करती थी लेकिन किसी ब्राह्मण अथवा साधु को कभी दान आदि नहीं देती थी. एक बार उसने एक माह तक लगातार व्रत रखा. इससे उस ब्राह्मणी का शरीर बहुत कमजोर हो गया था. तब भगवान विष्णु ने सोचा कि इस ब्राह्मणी ने व्रत रख कर अपना शरीर शुद्ध कर लिया है अत: इसे विष्णु लोक में स्थान तो मिल जाएगा परन्तु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया,. इससे ब्राह्मणी की तृप्ति होना कठिन है. इसलिए भगवान विष्णु ने सोचा कि वह भिखारी का वेश धारण करके उस ब्राह्मणी के पास जाएंगें और उससे भिक्षा मांगेगे. यदि वह भिक्षा दे देती है तब उसकी तृप्ति अवश्य हो जाएगी और भगवान विष्णु भिखारी के वेश में पृथ्वी लोक पर उस ब्राह्मणी के पास जाते हैं और उससे भिक्षा माँगते हैं. वह ब्राह्मणी विष्णु जी से पूछती है - महाराज किसलिए आए हो? विष्णु जी बोले मुझे भिक्षा चाहिए. यह सुनते ही उस ब्राह्मणी ने मिट्टी का एक ढे़ला विष्णु जी के भिक्षापात्र में डाल दिया. विष्णु जी उस मिट्टी के ढेले को लेकर स्वर्गलोक में लौट आये.
कुछ समय के बाद ब्राह्मणी ने अपना शरीर त्याग दिया और स्वर्ग लोक में आ गई. मिट्टी का ढेला दान करने से उस ब्राह्मणी को स्वर्ग में सुंदर महल तो मिल गया परन्तु उसने कभी अन्न का दान नहीं किया था इसलिए महल में अन्न आदि से बनी कोई सामग्री नहीं थी. वह घबराकर विष्णु जी के पास गई और कहने लगी " हे भगवन मैंने आपके लिए व्रत आदि रखकर आपकी बहुत पूजा की पर मेरे घर में अन्नादि वस्तुओं का अभाव है. ऎसा क्यों है? तब विष्णु जी बोले कि तुम पहले अपने घर जाओ. तुम्हें मिलने और देखने के लिए देवस्त्रियाँ आएँगी, तुम अपना द्वार खोलने से पहले उनसे षटतिला एकादशी की विधि और उसके महात्म्य के बारे में सुनना उसके बाद ही द्वार खोलना. ब्राह्मणी ने वैसे ही किया. द्वार खोलने से पहले षटतिला एकादशी व्रत के महात्म्य के बारे में पूछा. एक देवस्त्री ने ब्राह्मणी की बात सुनकर उसे षटतिला एकादशी व्रत के महात्म्य के बारे में जानकारी दी. उस जानकारी के बाद ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिए. देवस्त्रियों ने देखा कि वह ब्राह्मणी न तो गांधर्वी है और ना ही आसुरी है. वह पहले जैसे मनुष्य रुप में ही थी. अब उस ब्राह्मणी को दान ना देने का पता चला. अब उस ब्राह्मणी ने देवस्त्री के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया. इससे उसके समस्त पापों का नाश हो गया. वह सुंदर तथा रुपवति हो गई. अब उसका घर अन्नादि सभी प्रकार की वस्तुओं से भर गया.
इस प्रकार षटतिला एकादशी का व्रत पूर्ण विधि से करना चाहिए। ।
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