हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है. धूप-दीप आदि से भगवान नारायण की अर्चना की जाती है, उसके पश्चात फलाहार किया जाता इस दिन दीप दान करने का महत्व है.
इस वर्ष यह एकादशी दिनाकं ११ जनवरी २०१४ को पड़ रही है ----
कथा इस प्रकार है ------------
प्राचीन काल में भद्रावतीपुरी नगर में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे. शादी
के कई वर्ष बीत जाने पर भी उनको पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई. राजा और उसकी
रानी दोनों इस बात को लेकर चिन्ताग्रस्त रहते थे. राजा इसी
चिन्ता से अधिक दु:खी थे कि उनके मरने के बद उन्हें कौन अग्नि देगा. मन में बुरे-बुरे विचार आते थे।
एक दिन
इसी चिन्ता से ग्रस्त राजा सुकेतुमान अपने घोडें पर सवार होकर वन की ओर चल
दिए. वन में चलते हुए वह अत्यन्त घने वन में चले गए जहाँ तरह-तरह के
जानवरों की आवाजें सुनाई दे रही थी.
वन में चलते-चलते राजा को बहुत प्यास लगने लगी. वह पानी की तलाश में वन में और अंदर की ओर चले गए जहाँ उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया. राजा ने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी बने हुए है और बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे हैं। राजा ने सभी मुनियों को बारी-बारी से सादर प्रणाम किया. ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया और बोले कि राजन हम आपसे प्रसन्न हैं. तब राजा ने ऋषियों से उनके एकत्रित होने का कारण पूछा. मुनि ने कहा कि वह विश्वेदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आये हैं. आज से पाँचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज पुत्रदा एकादशी है. जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है.
राजा सुकेतुमान ने यह सुनते ही कहा -"ऋषिवर यदि आप सभी मुझ पर प्रसन्न हैं तब आप मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दें. मुनि बोले हे राजन आज पुत्रदा एकादशी का व्रत है.आप आज इस व्रत को रखें और भगवान नारायण की आराधना करें. राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिवत तरीके से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा. विधिवत तरीके से अनुष्ठान किया. . इसके बाद राजा ने सभी मुनियों को बार-बार झुककर प्रणाम किया और अपने महल में वापिस आ गये. कुछ समय के पश्चात रानी गर्भवती हो गई. नौ महीने बाद रानी ने एक सुकुमार पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर शूरवीर तथा प्रजापालक बना.
वन में चलते-चलते राजा को बहुत प्यास लगने लगी. वह पानी की तलाश में वन में और अंदर की ओर चले गए जहाँ उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया. राजा ने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी बने हुए है और बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे हैं। राजा ने सभी मुनियों को बारी-बारी से सादर प्रणाम किया. ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया और बोले कि राजन हम आपसे प्रसन्न हैं. तब राजा ने ऋषियों से उनके एकत्रित होने का कारण पूछा. मुनि ने कहा कि वह विश्वेदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आये हैं. आज से पाँचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज पुत्रदा एकादशी है. जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है.
राजा सुकेतुमान ने यह सुनते ही कहा -"ऋषिवर यदि आप सभी मुझ पर प्रसन्न हैं तब आप मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दें. मुनि बोले हे राजन आज पुत्रदा एकादशी का व्रत है.आप आज इस व्रत को रखें और भगवान नारायण की आराधना करें. राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिवत तरीके से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा. विधिवत तरीके से अनुष्ठान किया. . इसके बाद राजा ने सभी मुनियों को बार-बार झुककर प्रणाम किया और अपने महल में वापिस आ गये. कुछ समय के पश्चात रानी गर्भवती हो गई. नौ महीने बाद रानी ने एक सुकुमार पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर शूरवीर तथा प्रजापालक बना.
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