फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलक एकादशी कहते हैं, आमलकी यानी आंवला और आंवले को शास्त्रों में श्रेष्ठ स्थान दिया गया है जिस समय ब्रह्मा जी ने जी ने सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को भी जन्म दिया था । आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।
दशमी के दिन प्रातः ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें।
भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है।
कथा-----कथा इस प्रकार है किसी राजा के राज्य में आमलक एकादशी के दिन एक भूख-प्यासा निर्धन रात भर बैठा रहा उस दिन उसे कहीं से भी अन्न नहीं मिला क्योंकि उस दिन उस राज्य में एकादशी का व्रत सभी ने रखा था ,पर उस गरीब का व्रत ऐसे ही हो गया साथ ही रात्रि जागरण भी हो गया ,वः निर्धन अपने दुसरे जन्म में बहुत बड़ा राजा हुआ।
तुलसीदास जी ने सत्संगति के महत्त्व को इस प्रकार अपने कथन में स्पष्ट किया है-----
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