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Monday, March 24, 2014

पापमोचनी एकादशी /papmochni ekadashi /27 Mrach 2014

एकादशी का व्रत रखने से या कथा सुनने मात्र से ही मनुष्य कई प्रकार के कष्टों से मुक्ति पा लेता है ,पापमोची एकादशी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष को मनायी जाती है। इस दिन भगवान् विष्णु को अर्घ्यदान देकर पूजा कि जाती है ,तत्पचात धूप -दीप,चन्दन आदि के द्वारा नीरंजना करनी चाहिए। 

प्राचीन समय की बात है, चित्ररथ नाम का एक वन था. इस वन में गंधर्व कन्याएं और देवता सभी विहार करते थें. एक बार मेधावी नामक ऋषि इस वन में तपस्या कर रहा था. तभी वहां से एक मंजुघोषा नामक अप्सरा ऋषि को देख कर उनपर मोहित हो गई. मंजूघोषा ने अपने रुप-रंग और नृ्त्य से ऋषि को मोहित करने का प्रयास किया. उस समय में कामदेव भी वहां से गुजर रहे थें, उन्होने भी अप्सरा की इस कार्य में सहयोग किया. जिसके फलस्वरुप अप्सरा ऋषि की तपस्या भंग करने में सफल हो गई.कुछ वर्षो के बाद जब ऋषि का मोहभंग हुआ, तो ऋषि को स्मरण  हुआ कि वे तो शिव तपस्या कर रहे थें. अपनी इस अवस्था का कारण उन्होने अप्सरा को माना. और उन्होने अप्सरा को पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया. शाप सुनकर मंजूघोषा ने कांपते हुए इस श्राप से मुक्त होने का उपाय पूछा. तब ऋषि ने उसे पापमोचनी एकादशी व्रत करने को कहा. स्वयं ऋषि भी अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिये इस व्रत को करने लगें. दोनों का व्रत पूरा होने पर, दोनों को ही अपने पापों से मुक्ति मिली.
तभी से पापमोचनी एकादशी का व्रत करने की प्रथा चली आ रही है. 

यह व्रत व्यक्ति के सभी जाने- अनजाने में किये गये पापों से मुक्ति दिलाता है. 

कबीर दास जी ने कहा है------

                  पर नारी पैनी छुरी,मत कई लगो अंत,रावण के दश सर गधे,पर नारी संग । 

                 एक कंचन एक कामिनी दुर्गम घाटी दोय,इन दोनों को पारकर श्रेय लई कोई कोय ॥       


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