अक्षय तृतीया बैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है ,क्यों ,इस विषय में सभी लोग अलग-अलग कारण बताते हैं ,पर इसका जो वास्तविक अर्थ है वह है कभी क्षीर्ण न होने वाला ,और इसका तृतीया शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है ,जिसका अर्थ है तीसरा ,और चन्द्र पंचांग के अनुसार इसका अनुमान लगाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं में कहा गया है कि इस दिन शुरू किये गये कार्यों में अधिक से अधिक सफलता मिलने के संकेत मिलते है। इस महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये विशेष अनुष्ठान किये जाते हैं ,इस दिन पंचांग देखे बिना ही कोई भी कार्य किया ज सकता है। इस दिन समस्त शुभ कार्य जैसे विवाह,गृह -प्रवेश ,पदभार,स्थान-परिवर्तन और स्वर्ण खरीदने जैसे कार्य किये जाते हैं भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन सतयुग और त्रेता युग का आरम्भ हुआ था ,भगवान विष्णु के २४ अवतारों में से परशुराम,नर-नारायण तथा हयग्रीव ने अवतार लिया था। आज से ही बद्रीनाथ की पट भी खुलते हैं।
जब मीडिया का इतना प्रचार नही था तब भि अक्षय तृतीया मनाई जाती थी पर अब अखबारों मेँ और टेलीविजन पर इतना प्रचार हो जाने के कारण सारे पर्व मनाने के लिये उत्साह अलग ही देखा जाता है।
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