वर्ष २०१५ में यह व्रत १ जून को पड़ रहा है -----
इस व्रत को सुहागिनें अपने पति की लम्बी आयु के लिए करती है ,और वटवृक्ष की पूजा करती हैं ,
जैसा की सभी ने इससे सम्बंधित कथा को पढ़ा और सुना ही होगा कि इस पूजा का आरम्भ सावित्री के वटवृक्ष की पूजा करने के बाद ही आरम्भ हुआ है।
हमारे हिन्दू धर्म में अक्सर सभी व्रत व् पूजा बड़े ही विधिविधान से किये जाते है ,हिन्दू स्त्रियां अपने घर में भी प्रतिदिन की पूजा भी बड़ी ही विधि पूर्वक करती हैं ,ऐसा माना जाता है की सुहागिनों के द्वारा की गयी किसी भी पूजा का उनके गृहस्थ जीवन पर बड़ा असर पड़ता है।
केवल हिन्दू घर्म में ही नहीं वरन अन्य धर्मों में भी उनके पूजा आदि विधि पूर्ण किया जाता है ,परन्तु हिन्दू धर्म में ३३ करोड़ देवी देवता है ऐसा माना गया है ,हमारे यहाँ तो प्रतिदिन ही पूजनीय है ,इसीलिए सोमवार,मंगलवार,वीरवार,शुक्रवार ,शनिवार और रविवार का व्रत भी किया जाता है।
वट सावित्री की पूजा में स्त्रियां प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर पकवान बनाती है और फिर बरगद के पेड़ के नीचे विधि पूर्वक पूजा संपन्न करने के उपरान्त ही जल ग्रहण करती हैं।
पहले तो परिवार संयुक्तहोते थे तो काफी सारी गृहणियां एक साथ घर से पूजा करने के लिए निकलती थी और वो नज़ारा देखने के काबिल होता था पर अब तो शहरों मैं सिमटे एकल परिवार और उनमें से कुछ तो शायद इस तरह के छोटे त्योहारों के नहीं भी करते हैं कुछ तो काम के कारण और कुछ पूजा के लिए सामिग्री उपलब्ध न होने के कारण।
हाँ छोटे शहरों में अभी भी वट सावित्री पूजा का बहुत महत्त्व भी है और इसे विधि पूर्वक मनाया जाता है -
विधान -----
पूजा के लिए प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर स्वछ वस्त्र पहन कर पूजा के लिए मीठी पूरी ,भीगा हुआ चना ,कच्चा सूत ,पुष्प ,धूप ,जल ,घी का दिया आदि एक थाली में रख कर बरगद के वृछ के नीचे बैठ कर पूजा की जाती है .
बहुत सी जगह पर मीठी पूरी के साथ नमकीन पूरी व् मीठे बरगद भी बनाये जाते हैं ,
कथा -----
प्राचीन काल में मद्र देश के राजा अश्वपति के सर्वगुण संपन्न कन्या थी ,जो सावित्री देवी की पूजा के पश्चात उत्पन्न हुई थी अतः उसका नाम सावित्री रखा गया । कन्या के युवा होने पर राजा में अपने मंत्री के साथ वर चुनने के लिए भेज दिया । जिस दिन सावित्री वर चुन कर दरबार में आई ,महर्षि नारद पधारे हुए थे ।
जब नारद ने सावित्री से वर का नाम पूछा तो सावित्री ने बताया महाराज धुम्त्सेन ,जिनका राज्य छीन लिया गया और तथा जो अंधे हो चुके थे और दर- बदर घूम रहे हैं ,उनके के एकलौते पुत्र सत्यवान को मैंने अपने पति के रूप में चुना है ।
नारद जी ने अश्वपति को बधाई दी परन्तु एक बात और बताई की जब सावित्री बारह वर्ष की होगी तब इसके पति की म्रत्यु हो जाएगी ,तब राजा ने सावित्री को दूसरा वर चुनने को कहा ,परन्तु सावित्री ने कहा ,पिताजी मैं आर्य पुत्री हूँ जो जीवन में एक ही वर चुनती है ।
विवाह हुआ ,सावित्री परिवार सहित जंगल में सास -ससुर की सेवा करते हुए जीवन व्यतीत करने लगी ,जब सावित्री बारह वर्ष की हुई ,उस दिन सत्यवान लकड़ी काटने जंगल में जाने लगे तब सावित्री ने भी साथ चलने को कहा ,
जंगल में सत्यवान ने मीठे फल लाकर सावित्री को दिए और स्वयं लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ गए .थोड़ी ही देर में सत्यवान को सर में बहुत तेज़ दर्द हुआ और वो पेड़ से उतर कर आये और सावित्री की गोद में सर रखकर लेट गए ,थोड़ी ही देर में उनके प्राण पखेरू हो गये ,।
जब यमराज उनकी आत्मा को ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे हो चलीं ,यमराज ने कहा "पुत्री म्रत्यु के पश्चात जीवित मनुष्य स्वर्ग नहीं जाता ,अतः तुम वापस जाओ " इस पर सावित्री ने कहा ,"महाराज पत्नी क पतीत्व पति के साथ है ,अतः जहाँ पति जायेंगे वहीँ मैं भी जाउंगी " इस पर यमराज ने वर मांगने को कहा ---सावित्री ने सास- ससुर की खोयी नेत्र ज्योति का वर मांगा . यमराज ने तथास्तु कहा और आगे को चल पड़े ।
सावित्री फिर भी उनके पीछे चलती रही ,यमराज ने पुनः वापस जाने को कहा परन्तु सावित्री की धर्मनिष्ठा देखकर पुनः वर मांगने को कहा ! सावित्री ने सास-ससुर को राज्य मिल जाये ,ऐसा वर मांगा ,यमराज ने पुनः तथास्तु !कहा और आगे चल दिए ।
सावित्री अभी भी उनके पीछे चल रही थी ,इस पर यमराज ने कहा पुत्री तुम विपरीत दिशा में वापस जाओ ,इस पर सावित्री बोली --"पति के बिना पत्नी के जीवन की कोई सार्थकता नहीं है "इस पर यमराज ने पुनः वर मांगने को कहा ! सावित्री ने सौ पुत्रों की माँ होने का वर माँगा ,यमराज तथास्तु !कहकर आगे बढ़ चले ।
अब भी सवित्री को पीछे आता देख यमराज ने झुंजला कर कहा पुत्री ,अब तो मैं तुम्हें मुंह मांगा वर भी दे चूका हूँ ,अब तो विपरीत दिशा में चली जाओ " इस पर सावित्री ने कहा :महाराज ! सौ पुत्रों की माँ बिना पति के कैसे बन सकती हूँ " यमराज ने उसकी पतिव्रता से प्रसन्न होकर सत्यवान को जीवन दान दे दिया ,और स्वयं वापस चले गए ।
प्रसन्नचित सावित्री उसी जगह वापस आई जहाँ सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था ,उसने बरगद के पेड़ की परिक्रमा की ,इसी के साथ सत्यवान भी जीवित हो उठे । सावित्री घर वापस आई सास- ससुर की नेत्रों की ज्योति वापस आ गयी ,उनका खोया राज्य भी मिल गया ,इस तरह सावित्री ने अपनी धर्मनिष्ठा ,विवेक से न केवल अपने पति का जीवन पाया अपितु जो भी खोया हुआ था प्राप्त किया । उसकी कीर्ति सारे संसार में फैल गयी ।
संबंधों को गरिमा प्रदान करती वट-सावित्री व्रत और उतना ही सुंदर आपका आलेख.
ReplyDeleteसंबंधों को गरिमा प्रदान करती वट-सावित्री व्रत और उतना ही सुंदर आपका आलेख.
ReplyDeletethanks shreeman rakesh ji aapka bahut-bahut abhaar
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