एकादशी वर्ष में २४ पड़ती हैं, परन्तु जिस वर्ष पुरषोत्तम माह पड़ता हिअ उस वर्ष एकादशी २६ पड़ती हैं और वर्ष २०१५ में पुरषोतम माह पड़ने के कारण देवशयनी एकादशी थोड़ी देर से पड़ रही है. कहा जाता है इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से सोना दान करने से भी अधिक पुण्य मिलता है.
आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते है, इस दिन भगवन विष्णु को शयन कराया जाता है इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते है।२०१५ में यह एकादशी दिनांक २७ दिन सोमवार को पड़ रही है ।
इसकी कथा इस प्रकार है -
श्री कृष्ण जी बोले ---हे धर्मात्मा युधिष्ठिर !अषाढ़ पक्ष की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं ,इसे हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं । ब्रह्मा जी ने कहा आज के दिन भगवन विष्णु को शयन कराया जाता है ।
कथा -----सूर्य वंश में मान्धाता राजा अयोध्यापुरी में राज करते थे ,एक समय उसके राज्य में अकाल पड़ गया ,प्रजा दुःख और भूख से व्याकुल होकर मरने लगी ,हवनादि शुभ कर्म बंद हो गए ,। राजा दुखी होकर वन में चले गए और अंगरा ऋषि के आश्रम में पहुँच कर बोले -हे श्रेष्ठ मुनि मैं आपकी शरण में आया हूँ ,मुझे कृपया यह बताएं की मेरे किस पाप कर्मों के कारण मेरे राज्य में अकाल पड़ा है ?
मुनि बोले हे महानुभाव -आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रह है ,और शूद्र को मरने से दोष दूर हो जायेगा।
मान्धाता बोले --उस निरपराध शूद्र को मैं मार कर में पाप में नहीं पड़ना चाहता हूँ ,हे मुनिश्रेष्ठ यदि कोई और उपाय हो तो कहें ,मैं अकाश्य करूंगा ?
तब ऋषि बोले -मैं सुगम उपाय बताता हूँ ,भोग तथा मोक्ष को देने वाली देवशयनी एकादशी है । हे राजन आप इस एकादशी का विधिवत व्रत और पूजा करें इसके प्रभाव से पूरे चातुर्मास बर्षा होगी और साथ ही यह एकादशी समस्त सिद्धियों को देने वाला और उपद्रवों को शांत करने वाली भी है । इसका महात्म्य सुनने से अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है । इस दिन तुलसी के बीज को रोपना चाहिए ,तुलसी माला से पूजा करनी चाहिए .।
आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते है, इस दिन भगवन विष्णु को शयन कराया जाता है इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते है।२०१५ में यह एकादशी दिनांक २७ दिन सोमवार को पड़ रही है ।
इसकी कथा इस प्रकार है -
श्री कृष्ण जी बोले ---हे धर्मात्मा युधिष्ठिर !अषाढ़ पक्ष की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं ,इसे हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं । ब्रह्मा जी ने कहा आज के दिन भगवन विष्णु को शयन कराया जाता है ।
कथा -----सूर्य वंश में मान्धाता राजा अयोध्यापुरी में राज करते थे ,एक समय उसके राज्य में अकाल पड़ गया ,प्रजा दुःख और भूख से व्याकुल होकर मरने लगी ,हवनादि शुभ कर्म बंद हो गए ,। राजा दुखी होकर वन में चले गए और अंगरा ऋषि के आश्रम में पहुँच कर बोले -हे श्रेष्ठ मुनि मैं आपकी शरण में आया हूँ ,मुझे कृपया यह बताएं की मेरे किस पाप कर्मों के कारण मेरे राज्य में अकाल पड़ा है ?
मुनि बोले हे महानुभाव -आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रह है ,और शूद्र को मरने से दोष दूर हो जायेगा।
मान्धाता बोले --उस निरपराध शूद्र को मैं मार कर में पाप में नहीं पड़ना चाहता हूँ ,हे मुनिश्रेष्ठ यदि कोई और उपाय हो तो कहें ,मैं अकाश्य करूंगा ?
तब ऋषि बोले -मैं सुगम उपाय बताता हूँ ,भोग तथा मोक्ष को देने वाली देवशयनी एकादशी है । हे राजन आप इस एकादशी का विधिवत व्रत और पूजा करें इसके प्रभाव से पूरे चातुर्मास बर्षा होगी और साथ ही यह एकादशी समस्त सिद्धियों को देने वाला और उपद्रवों को शांत करने वाली भी है । इसका महात्म्य सुनने से अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है । इस दिन तुलसी के बीज को रोपना चाहिए ,तुलसी माला से पूजा करनी चाहिए .।
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