अषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है । व्यास ऋषि जिन्होंने चारों वेदों का ज्ञान दिया ,अतः उनको आदिगुरू के रूप में याद किया जाता है ।
प्राचीन समय में विद्यार्थी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने जाते थे और अपने गुरु को शक्ति अनुसार दक्षिणा देते थे ,केवल गुरु ही नहीं अपितु ,माता ,पिता बड़े भाई -बहन भी गुरु की तरह पूज्यनीय हैं अतः यदि गुरु न हों तो उन्हें पूजा जा सकता है ।
गुरु पूजा के दिन स्नानादि से निवृत होकर गुरु के लिए वस्त्र ,फल ,फूल ,माला अर्पण करना चाहिए । इस पर्व को श्रद्धा -भाव से मनाना चाहिए ।
१. महर्षि वाल्मीकि के गुरु ऋषि नारद थे जिन्होंने उन्हें उपदेश देकर सही राह पर चलाया और महर्षि वाल्मीकि ने .ज्ञान प्राप्त कर रामायण की रचना की .
२. राजा राम चन्द्र के गुरु वशिष्ठ थे ।
३. श्री कृष्ण जी के गुरु संदीपन थे ।
४. राजा जनक गुरु महर्षि अष्टावक्र थे ।
५. स्वामी विवेकानंद के गुरु श्री परमहंस थे ।
प्राचीन समय में विद्यार्थी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने जाते थे और अपने गुरु को शक्ति अनुसार दक्षिणा देते थे ,केवल गुरु ही नहीं अपितु ,माता ,पिता बड़े भाई -बहन भी गुरु की तरह पूज्यनीय हैं अतः यदि गुरु न हों तो उन्हें पूजा जा सकता है ।
गुरु पूजा के दिन स्नानादि से निवृत होकर गुरु के लिए वस्त्र ,फल ,फूल ,माला अर्पण करना चाहिए । इस पर्व को श्रद्धा -भाव से मनाना चाहिए ।
१. महर्षि वाल्मीकि के गुरु ऋषि नारद थे जिन्होंने उन्हें उपदेश देकर सही राह पर चलाया और महर्षि वाल्मीकि ने .ज्ञान प्राप्त कर रामायण की रचना की .
२. राजा राम चन्द्र के गुरु वशिष्ठ थे ।
३. श्री कृष्ण जी के गुरु संदीपन थे ।
४. राजा जनक गुरु महर्षि अष्टावक्र थे ।
५. स्वामी विवेकानंद के गुरु श्री परमहंस थे ।
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