आंवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा मन गया है कि इस दिन सतयुग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इस की पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
एक कथा के अनुसार पुत्ररत्न की प्राप्ति के लिए एक दिन एक वैश्य की पत्नी ने पड़ोसन के कहने पर पराए लड़के की बलि भैरव देवता के नाम पर दे दी। इस वध का परिणाम विपरीत हुआ और उस महिला को कुष्ट रोग हो गया तथा लड़के की आत्मा सताने लगी।
बाल वध करने के पाप के कारण शरीर पर हुए कोढ़ से छुटकारा पाने के लिए उस महिला ने गंगा के कहने पर कार्तिक की नवमी के दिन आँवला का व्रत करने लगी। ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र प्राप्ति भी हुई। तभी से इस व्रत को करने का प्रचलन है।आँवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन कर उसकी जड़ में दूध देना चाहिए। इसके बाद पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बाँधकर कपूर, बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
No comments:
Post a Comment