दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। माँ दुर्गा का यह स्वरूप कालरात्रि के नाम से पूजा जाता है , माना गया है कि इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है
साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है।
इस लिए ब्रह्मांड की समस्त
सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में
अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक
नाम 'शुभंकारी' भी है। अतः इनके भक्तों को माता के इस स्वरूप से भयभीत होने कि आवश्यकता नही है
माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। ये
ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय,
जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा
भय-मुक्त हो जाता है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
इस दिन इस मन्त्र द्वारा माता कि अर्चना की जानी चाहिए
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