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Friday, October 18, 2013

sharad poornima/ शरद पूर्णिमा/ कोजागिरी पूर्णिमा

आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है. वर्ष 2015 में शरद पूर्णिमा 26 अक्तूबर  को होगी . इस पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है . इस दिन चन्द्रमा व सत्य नारायण भगवान का पूजन, व्रत, कथा की जाती है.
 ज्योतिषिय नियमों  के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है. इस दिन के संदर्भ में एक मान्यता प्रसिद्ध है, कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था. इस दिन चन्द्रमा कि किरणों से अमृ्त वर्षा होने की किवदंती प्रसिद्ध है. इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रत भर चांदनी में रखकर अगले दिन प्रात: काल में खाने का विधि-विधान है.

कुछ लोग दूध में चूरा भिगो कर रखते हैं और कुछ लोग काली मिर्च में चीनी पीस कर देशी घी के साथ रखते हैं इस विषय में कहा ये जाता है की इस काली मिर्च के प्रसाद को खाने  से आँखों की रोशनी तेज़ होती है । 

अतः इस दिन कुछ भी प्रसाद बना कर चन्द्रमा की रौशनी में जरूर रखना चाहिए और प्रातः  उठकर इस प्रसाद को ग्रहण करना चाहिए और सभी में इस प्रसाद को वितरित करना चाहिए ।

कथा ----

    एक साहुकार था जिसके यहां दो पुत्रियां थीं. एक पुत्री विधि-विधान से व्रत पूरा करती थी.  और दूसरी पुत्री व्रत तो करती थी, परन्तु अधूरा ही किया करती थी. इसी कारण से दूसरी पुत्री के यहां जो भी संतान होती थी. वह मर जाती थी. यह स्थिति देख कर साहूकार की दूसरी पुत्री ने इसका कारण पंडितों  से पूछा. तब पंडितों ने बताया की तुम व्रत तो करती हो मगर अधूरा किया करती हों, इसी कारण से तुम्हारी सन्तान जन्म लेते ही मर जाती है.अतः  तुम शरद पूर्णिमा का पूरा व्रत करों,साहूकार की पुत्री ने पंडितों के बताये अनुसार व्रत किया फलस्वरूप उसे पुत्र तो हुआ मगर शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गयी । 
उसने अपनी संतान को एक पटली पर लिटा दिया और उसके ऊपर कपडा ढ्क दिया. इसके बाद वह अपनी बडी बहन को बुलाकर लाई और उसे बैठने के लिये कहा, उसकी बडी बहन के वस्त्र उस बालक से छू गयें. और देखते ही देखते मरा हुआ बच्चा रोने लगा. बालक को रोते देख, बडी बहन ने कहा कि अगर गलती से मैं बालक के ऊपर बैठ जाती तो बच्चा मर न जाता. तब छोटी बहन ने कहा की यह तो पहले ही मरा हुआ था. तेरे वस्त्र छूने से यह जीवित हो गया है. उसके बाद से शरद पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से करने की परम्परा चली आ रही है.

हिंदू धर्म में जितने भी व्रत त्यौहार, या तिथिएं  मनाई जाती है यदि देखा जाये तो उनका कोई न कोई महत्व है 

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