स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प लिए हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं और इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है।
नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा होती है।
कहा गया है कि यदि कोई श्रद्धा और भक्ति पूर्वक माता कि पूजा,अर्चना करता है तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है ।माता की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है । पौराणिक कथाओं के अनुसार माता स्कन्द माता ही हिमालय पुत्री है और महादेव की पत्नी होने के कारण माहेश्वरी के नाम से भी पूजा जाता है । इनका पुत्र से अत्यधिक प्रेम होने के कारण इनहें इनके पुत्र स्कन्द के नाम से पुकारा जाता है ।
इस औषधि को नवरात्रि में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी
बीमारियां नहीं होती। साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति
मिलती है।
माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इस मन्त्र को कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिए।
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