नवबर्ष का आरंभ ------
भारतीय शास्त्र के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष से नव वर्ष का आरम्भ होता है .ऐसा माना जाता है की इसी दिन ब्रह्मा जी ने स्रष्टि का सृजन किया था .कुछ लोग ऐसा मानते हैं की भारत के प्रतापी राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के संवत्सर का आरंभ भी इसी दिन से किया था ,अतः इस दिन का दोनों ही द्रष्टि से बहुत महत्त्व है .ऐसी मान्यता भी है की इसी दिन भगवन विष्णु ने मतस्य अवतार लिया था ,
सवाल ये है की इसी दिन से ही संवत्सर का आरंभ क्यों माना जाता है ---
१.तो पहली बात यह मानी जाती है की चैत्र मास में ही वृक्ष और लताएं नव पल्लवित होती हैं .२. कहते हैं की माघ मास में मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है ,मगर इसका कहीं भी स्पष्ट उल्लेख नहीं है ,इसलिए चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही नव वर्ष का आरम्भ माना गया है .
इसी दिन पंचांग की पूजा का भी विधान है
,बहुत सारे घरों में पंडित के द्वारा पंचांग की पूजा कराकर संवत सुनकर नव वर्ष का स्वागत किया जाता है ,मुझे याद है हमारे घर में भी हमारे पूज्य दादाजी भी इस पूजा का आयोजन करते थे उसके बाद पूज्य पिताजी और फिर हमारे भाइयों ने भी इस प्रथा को आगे बढाया .
चैत्र मास की प्रतिपदा को गुडी पड़वा के रूप में भी हर्सौलास से मनाया जाता है ,सूर्य को अर्घ्य देकर नव वर्ष का स्वागत किया जाता है .
चैत्र मास की प्रतिपदा को गुडी पड़वा के रूप में भी हर्सौलास से मनाया जाता है ,सूर्य को अर्घ्य देकर नव वर्ष का स्वागत किया जाता है .
नवरात्री ------
नवरात्री साल में मुख्यतः २ बार मनाई जाती हैं जिसमें एक चैत्र पक्ष की और दूसरी आश्विन पक्ष की .इन दोनों में ही सामान रूप से माँ दुर्गा और कन्या की पूजा का विधान है .नवरात्री पूजन प्रतिपदा से दशमी तक मनाई जाती है ,ज्यादातर लोग नवमी को कन्या पूजन करके उपवास समाप्त करते हैं .
पूजन के स्थान की अच्छी तरह से सफाई करें और अगर सम्भव हो तो पूजा घर को पानी से घो लें .
सभी भगवान् के वस्त्र बदल दें .माता की मूर्ति या फोटो को साफ़ कर लें . अब सबसे पहले घट स्थापना की तैयारी करें .
पूजन के स्थान की अच्छी तरह से सफाई करें और अगर सम्भव हो तो पूजा घर को पानी से घो लें .
सभी भगवान् के वस्त्र बदल दें .माता की मूर्ति या फोटो को साफ़ कर लें . अब सबसे पहले घट स्थापना की तैयारी करें .
पूजा के लिए जो भी स्थान नियत हो वो स्थान ,पहनने वाले वस्त्र हमेशा शुद्ध हों ,आसन काला नहीं होना चाहिए ,ऐसी मान्यता है की पूजन के लिए ऊन का आसन सर्वोत्तम होता है ,कहते हैं की काठ के ऊपर बैठकर पूजा करने से निर्धनता आती है ,और पत्थर पर बैठ कर पूजा करने से रोग आते हैं ,अतः कोशिश करनी चाहिए की पूजा का स्थान और आसन दोनों ही पवित्र हों .
घट स्थापना -----
- १ कलश मिटटी का या फिर पीतल का
- जों बोने के लिए एक मिट्टी का पात्र .
- जटा वाला नारियल .
- पान के या अशोक के पत्ते ५ .
- साफ़ मिट्टी या रेता .
- चावल १ बड़ा चम्मच .
- एक गहरी कटोरी .
- रोली ,और मोली .
- रूपये .इछानुसार .
- जोँ २ बड़े चम्मच
- नारियल के लिए कपडा .
विधि -------
- कलश को अच्छी तरह से धो कर उसमें साफ़ पानी भरें .
- अब मिट्टी के पात्र को भी पानी से धो लें .
- इसमें मिट्टी भरें .
- अब इस मिट्टी में जों को चारों ऒर फैलाते हुए बो दें .
- इसके बीच में कलश को रखें और कलश के गर्दन में मोली को चारों ओर से लपेटें .
- कटोरी में चावल भरकर इसे कलश के ऊपर रखें और कटोरी के नीचे पहले कलश में आम के पत्तों को सजाते हुए लगायें ताकि इस कटोरी से ठीक से सेट हो जाएँ .
- अब रोली की सहायता से कलश पर स्वस्तिक बनाएं .
- नारियल पर कपडा और मोली बाँध कर इसे चावलों वाली कटोरी के ऊपर रखें ,
- नारियल पर रूपये चढ़ाएं .
पूजन का सामान -----
- माता की चुन्नी .
- रोली , मोली ,
- साबुत सुपारी .९
- जायफल ९
- पान के पत्ते ९ .
- हवन सामिग्री १ किलो .
- काले तिल १ ० ० ग्राम .
- चावल धुले हुए ५ ० ग्राम .
- पञ्च मेवा कटी हुई २ बड़े चम्मच .
- गुड़ २ बड़े चम्मच .
- बूरा १ बड़ा चम्मच .
- देशी घी २ बड़े चम्मच .
- रुई .
- चावल पूजा के अक्षत के लिए
- धूप बत्ती .
- चौकी १ .
- बड़ा दिया १ .
- लाल कपडा बिछाने के लिए १ मीटर .
- गूगल १ चम्मच .
- ताम्र कुंड हवन के लिए
- कपूर .
- लौंग .
- दिए के लिए तेल या घी .
- पुष्प .
- बताशे प्रशाद के लिए
- जल का लोटा
- हवन के लिए आम की लकड़ी .
विधि -------------
- चोकी के ऊपर लाल वस्त्र बिछाकर माता को चुन्नी उढ़ाकर विराजित करें .
- हवन सामिग्री में गूगल ,मेवा,चावल,तिल ,जों, देशी घी ,बूरा,गुड़ को अच्छी तरह से मिलाकर सामिग्री को तैयार करें .
- अब माता के उत्तर पूर्व में घट रखें ,और दिए में घी या तेल सामर्थ्य के अनुसार भर कर और माता के समक्ष रखें .
- थाली में रोली,मोली ,चावल ,धूप बत्ती ,लौंग ,कपूर ,पुष्प ,बताशे रखें।
पूजन की विधि -----------
- आसन को बिछा कर बैठें और माँ का ध्यान करें .
- जल से आचमन करें,अब माता को स्नान कराएं ,पुष्प समर्पित करें ,
- टीका करें ,दिया प्रज्व्व्लित करें और फिर माता की आराधना करें
- आराधना में माता की स्तुति ,चालीसा पाठ और आरती करें .
- अब हवन के लिए कुंड में लकड़ी लगाकर कपूर से प्रज्वलित करें और सभी लोगों को सामान भाग से सामिग्री दे कर हवन शुरू करें .
- हवन करने के बाद प्रशाद ,पान चढ़ाएं .
- हवन के लिए या तो पंडित बुलाकर हवन कराएं या फिर स्वयं करें ,स्वयं हवन करने के लिए मन्त्र किसी पंडित से पूँछ कर ही करें ,अन्यथा न करें .
- अंत में सबको प्रशाद बांटें .
उपवास ---
- नवरात्री मे अधिकतर लोग उपवास रखते हैं ,अगर आप ९ दिनों का व्रत नहीं रख सकते हैं तो पहला और आखिरी यानि की प्रतिपदा और अष्टमी का व्रत रखें .
- उपवास में फल ज्यादा खाएं और पानी भी लगातार पियें ताकि शरीर में पानी की कमी न हो .
- व्रत ,उपवास शरीर के क्षमता के अनुसार ही रखना चाहिए .
- नवरात्रि में माता का कीर्तन अवश्य करें ,ऐसी मान्यता है की यदि माता के छंद नहीं गए जाते है तो माता एक पैर से खड़ी रहती हैं .
- संभव हो सके तो माता के मंदिर भी जायें .
माँ दुर्गा के ९ रूपों की पूजा का विधान नवरात्री में है,और माँ के ९ रूपों की व्याख्या इस प्रकार है -----
- प्रथम हैं माँ शैलपुत्री ,हिमालय पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा .
- नवरात्री के दुसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है ,तप और जप करने के कारन इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा .
- माँ चंद्रघंटा की पूजा नवरात्री की तीसरे दिन की जाती है ,इस रूप में माँ के मस्तक पर अर्धचन्द्र बना है अतः इस रूप को चंद्रघंटा कहते हैं .
- चतुर्थी को माँ कूष्मांडा की अर्चना का विधान है .ऐसा कहा जाता है मंद हंसी के द्वारा माँ ने ब्रम्हांड को उत्पन्न किया .इसलिए इन्हें कुष्मांडा कहा जाता है
- चार भुजाओं वाली माँ स्कंदमाता की अर्चना पंचमी को की जाती है .
- जिनकी उपासना से भक्तों के रोग ,शोक ,भय ,और संताप का विनाश होता है ऐसी माँ कात्यायनी की उपासना छठे दिन की जाती है .
- काल से रक्षा करने वाली देवी कालरात्रि की उपासना सातवें दिन की जाती है .
- शांत रूप वाली ,भक्तों को अमोघ फल देने वाली देवी महागौरी की पूजा आठवें दिन की जाती है .
- भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी सिध्दात्री की पूजा नवें दिन की जाती है .
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