कीलक स्त्रोत ----
महर्षि मार्कण्डेय जी बोले -----
कल्याण प्राप्ति हेतु निर्मल ज्ञानरूपी शरीर धारण करने वाले दिव्य नेत्रों वाले ,तथा मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करने वाले भगवन शिव जी! को नमस्कार है
,इस धरा पर जो मनुष्य इस कीलक मन्त्र को जानने वाला है वाही कल्याण को प्राप्त करता है । जो केवल सप्तशती से ही देवी की स्तुति करता है उसे इस कीलक से देवी की सिद्धि हो जाती है ।देवि की सिद्धि के लिए दूसरी साधना की आवश्यकता नहीं रह जाती ,लोगों के मन में आशंका थी की केवल सप्तशती के मन्त्रों की उपासना अथवा अन्य मन्त्रों की उपासना से भी सामान रूप से सब कार्य सफल हो जाते हैं तो इनमें से कौन सा साधन श्रेष्ठ है ।
इन सभी शंकाओं को लेकर भगवन शंकर ने अपने सामने आये भक्तों को समझते हुए कहा---- सप्तशती नामक सम्पूर्ण स्त्रोत कल्याण को देने वाला है और तभी भगवन शंकर ने माँ के सप्तशती नामक स्त्रोत को गुप्त कर दिया । इसलिए मनुष्य इसको बड़े पुण्य से प्राप्त करता है ।
जो भी मनुष्य अष्टमी को या कृष्ण पक्ष की चतुर्दसी को देवी को अपना सर्वस्व समर्पित कने के पश्चात् उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करता है ,उस पर माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं,अन्यथा नहीं । इस प्रकार शिव जी द्वारा इस स्त्रोत को कीलित किया गया है ,और जो पुरुष इस स्त्रोत को निश्कीलित करके नित्य प्रति पाठ करता है ,वह सिद्ध हो जाता है और वही गंधर्व होता है ।
इस संसार में सर्वत्र विचरते हुए भी उस मनुष्य को भय नहीं रहता म्रत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करता है । किन्तु इस कीलक की विधि को जानकार ही सप्तसती का पाठ करना चाहिए । कीलन और निष्कीलन के ज्ञान के पश्चात यह स्त्रोत निर्दोष हो जाता है । ऐसा कहा जाता है , की स्त्रियों में जो सौभाग्यहैं ,इसी पाठ की कृपा स्वरूप हैं ।
इस स्त्रोत का पाठ उच्च स्वर में करने से ही की जानी चाहिए । उस देवी की स्तुति अवश्य की जानी चाहिए जिसके प्रसाद स्वरूप सौभाग्य ,आरोग्य ,सम्पत्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
No comments:
Post a Comment