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Tuesday, December 31, 2013
Sunday, December 29, 2013
bhajan
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बेला अमृत गया,आलसी सो रहा बन अभागा ,साथी सारे जगे तू न जागा ॥
१. कर्म उत्तम से नर तन ये पाया,आलसी बन के हीरा गँवाया ,
होवे उलटी मति ,करके अपनी छति ,विष में पागा ,साथी सारे जगे तू न जागा ॥
२. झोलियाँ भर रहे भाग वाले ,लाखों पतिको ने जीवन ,
रंक राजा बने, भक्ति रस में पगे ,कष्ट भागा ,साथी सारे जगे तू न जागा ॥
३. धर्म -वेदों को न देखा भाला, बेला अमृत गया न सम्भाला ,
सौदा घाटे का कर,हाथ माथे पे धर रोने लागा,साथी सारे जगे तू न जागा ॥
४. ब्रह्म -व्यापक न तूने विचारा ,सर से ऋषियों का ऋण न उतारा ,
हंस का रूप था,गंदा पानी पिया बन के कागा ,साथी सारी जगे तू न जागा ॥
Wednesday, December 18, 2013
bhajan
आना पवन कुमार हमारे घर कीर्तन में ----------
१. आप भी आना संग राम जी को लाना ,
लाना जनक दुलारी हमारे घर कीर्तन मे --------आना पवन कुमार ---
२. भारत जी को लक्ष्मण जी को ,
लाना राज दरबार ,हमारे घर कीर्तन में ---------आना पवन कुमार
३. कृष्ण जी को लाना ,राधा जी को लाना ,
लाना सब परिवार, हमारे घर कीर्तन में ----------आना पवन कुमार
४. शंकर जी को लाना ,नारद जी को लाना ,
डमरू वीणा बजाना ,हमारे घर कीर्तन में ----------आना पवन कुमार
५. सुमति को लाना ,कुमति को हटाना ,
करना बेडा पार ,हमारे घर कीर्तन में ------आना पवन कुमार
६. आप भी आना , संग में भैरों जी को लाना ,
लाना प्रेत राज सरकार, हमारे घर कीर्तन में --------------आना पवन कुमार
७. हम भक्तों पर कृपा करके ,
सुन लो नाथ पुकार, हमारे घर कीर्तन में --------आना पवन कुमार
Monday, December 9, 2013
bhajan
जीवन के आधार हमारे राधेश्याम ,भज लो बारम्बार हमारे राधेश्याम ,
१. चल के फिर ,के रोके-गाके ,दुःख में सुख में मन समझाकर ,
कहो पुकार -पुकार हमारे राधेश्याम ॥
२. जय योगेश्वर ,कृष्ण मुरारी ,भक्ति भाव में लीलाधारी ,
करते भव से पार ,हमारे राधेश्याम ॥
३. ह्रदय रमन करुणा के सागर, अनुपम अति सुंदर नटवर नागर ,
स्वयं प्रेम आगार ,हमारे राधेश्याम ॥
४. कुछ ही दिन का यह जीवन है ,प्रभु ध्यान ही सुखमय धन है ,
पथिक मुक्ति दातार ,हमारे राधेश्याम ॥
Wednesday, November 27, 2013
utpanna ekadashi
पूजा -पाठ हिदुस्तानी घरों की परम्परा है प्रतिदिन के व्रत -त्यौहार दिनचर्या में उसी तरह से शामिल हैं जिस तरह से भोजन। एकादशी ,तेरस ,पूर्णिमा,आदि के व्रत की परंपरा है ,कहा जाता है एकादशी के व्रत के रखने से विष्णु जी की कृपा के साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। आने वाली २९ नवम्बर २०१३ को उत्पन्न एकादशी पड़ रही है और जिसकी कथा और पूजा इस प्रकार है --------
इस व्रत को करने से मनुष्य का जीवन शुख शांति से व्यतीत होता है ,इस दिन परोपकारिणी देवी का जन्म हुआ था और इसीलिए इस दिन पूजन करके भगवद भजन करना चाहिए।
कथा-----
सतयुग में मुर नामक दानव ने देवताओं पर विजय पाकर इंद्र को पदस्थ कर दिया ,देवता लोग अप्रसन्न होकर भगवान् शंकर के पास पहुंचे ,शिवजी के आदेश से देवता विष्णु जी के पास पहुचे। विष्णु जी ने बाणों से राक्षसों का वध तो कर दिया मगर मुर न मरा। दानव मुर किसी देवता के वरदान से अजेय था। विष्णु जी ने मुर से लड़ना छोड़कर बद्रिकाश्रम की गुफा में आराम करने चले गए। मुर ने भी उनका पीछा न छोड़ा और गुफा में जाकर उन्हें मारना चाहा ,पर उसी समय विष्णु जी के शरीर से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया ,जिसने मुर का वध कर दिया।
उस कन्या ने विष्णु जी को बताया -:मैं आपके अंग से उत्पन्न हुई एक शक्ति हूँ। "विष्णु जी प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान दिया कि तुम संसार के माया जाल में उलझे तथा मोहवश मुझे भूले हुए प्राणियों को मेरे पास लाने में सक्षम होगी और तेरी आराधना करने वाले प्राणी आजीवन सुखी रहेंगे।
क्योंकि वो कन्या एकादशी के दिन पैदा हुई थी अतः इस एकादशी का नाम उत्पन्न पड़ा ,और इस एकादशी को करने वाले प्राणी को विष्णु लोक में वास मिलता है।
Sunday, November 24, 2013
bhajan
राम नाम के साबुन से मन का मैल छुड़ाएगा ,निर्मल मन के दर्पण में वो राम का दर्शन पायेगा॥
१. हर प्राणी में राम बसे हैं ,पल भर तुमसे दूर नहीं -२ देख सके न जिन आँखों से उन आँखों में नूर नहीं ॥
देखेगा मन मंदिर में वो प्रेम की जोत जलायेगा -निर्मल मन -------
२. नर शरीर अनमोल है ,प्राणी हरि कृपा से पाया है -२ झूठे जग प्रपंच में पड़कर क्यों हरि को बिसराया है ॥
समय हाथ से निकल गया तो फिर धुन -धुन पछतायेगा --निर्मल मन -----
३.साधन तेरा कच्चा है जब तक प्रभु पर विशवास नहीं -२ मंजिल को पाना है क्या जब दीपक में प्रकाश नहीं ॥
राम नाम एक मन्त्र यही प्रिय साथ तुम्हारे जाना है -निर्मल मन------
Friday, November 22, 2013
bhajan
मुखड़ा ---
बन के लिलहरी राधा को चलने चले ,भेष उनका बनाना गजब हो गया ,जुल्म ढाती थी जो चोटियां श्याम की ,मन सेंदुरा भराना गजब हो गया। …।
अंतरा ---
१. आसमां पर सितारे लरजने लगे ,चाँद बदली में मूहं को छुपाने लगा -----२
चांदनी रात में बेखदर बाम पर बेनकाब उनका आना गजब हो गया -----बन के लिलहरी ----
२. बिछड़ी जिस दम मिली थी नज़र से नज़र ,जान राधा गयीं छल किया आनकर ----२
बहुत शर्मिंदा थीं राधिका उस घड़ी ,श्याम का मुस्कुराना गजब हो गया --- बन के लिलहरी ----
३. हाथ गालों पे जिस दम धारा श्याम ने ,हाथ झलकार राधा ये कहने लगीं ---२
सच बता दे अरे छलिया तू कौन है ,तुझसे नज़रें मिलाना गजब हो गया ------बन के लिलहरी----
४. तेरा प्रेमी हूँ अच्छी तरह जान ले ,मैं हूँ छलिया किशन मुझको पहचान ------२
तेरी खातिर मैं राधा जनाना बना ,प्रेम तुमसे बढ़ाना गजब हो गया --बन के लिलहरी -----
Sunday, November 17, 2013
bhajan
रामा -रामा रटते -रटते बीती रे उमरिया,रामा -रामा रटते -रटते बीती रे उमरिया,
कब आओगे रघुकुल नंदन दासी की झोपड़िया।,रामा-रामा
१. मैं शबरी भीलनी की जायी भजन भाव न जानूं रे ,भजन भाव ना जानूं रे .
राम तेरे दर्शन की खातिर वन में जीवन पालूं रे -वन में जीवन पालूं रे -
चरण कमल से निर्मल कर दो दासी की झोपड़िया ,,रामा -रामा---
२. रोज सवेरे वन में जाकर फल चुन-चुन कर लाऊंगी -फल चुन कर लाऊंगी -
अपने प्रभु के सन्मुख रखकर प्रेम से भोग लगाउंगी -प्रेम से भोग लगाउंगी ,
मीठे -मीठे बेरन की मैं भर लायी डलईया ,रामा -रामा ---
३. श्याम सलोनी मोहनी मूरत नैना बीच बसाऊंगी ,नैना बीच बसाऊंगी ,
पद पंकज की रज धर मस्तक जीवन सफल बनाउंगी ,जीवन सफल बनाउंगी ,
अब क्या प्रभु जी भूल गए हो दासी की डगरिया ,रामा -रामा --
४. नाथ तेरे दर्शन की प्यासी मैं अबला एक नारी हूँ ,मैं अबला एक नारी हूँ ,
दर्शन बिन दो नैना तड़पे ,सुनो बहुत दुखारी हूँ ,सुनो बहुत दुखारी हूँ।
हीरा रूप में दर्शन दे दो डालो एक नजरिया-- ऱामा -रामा
Sunday, November 10, 2013
anvla navmi
आंवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा मन गया है कि इस दिन सतयुग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इस की पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
एक कथा के अनुसार पुत्ररत्न की प्राप्ति के लिए एक दिन एक वैश्य की पत्नी ने पड़ोसन के कहने पर पराए लड़के की बलि भैरव देवता के नाम पर दे दी। इस वध का परिणाम विपरीत हुआ और उस महिला को कुष्ट रोग हो गया तथा लड़के की आत्मा सताने लगी।
बाल वध करने के पाप के कारण शरीर पर हुए कोढ़ से छुटकारा पाने के लिए उस महिला ने गंगा के कहने पर कार्तिक की नवमी के दिन आँवला का व्रत करने लगी। ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र प्राप्ति भी हुई। तभी से इस व्रत को करने का प्रचलन है।आँवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन कर उसकी जड़ में दूध देना चाहिए। इसके बाद पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बाँधकर कपूर, बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
इस वर्ष यह नवमी दिनांक ११ नवम्बर २०१३ को पड़ रही है और आप सभी को आवंला नवमी की बहुत -बहुत शुभकामनाएं
Friday, November 8, 2013
tulsi arti
तुलसा महारानी नमो -नमो,हरी की पटरानी नमो -नमो।
धन तुलसी पूर्ण तप कीन्हो ,शालिग्राम बनी पटरानी।
जाके पत्र मंजर कोमल ,श्रीपत चरण कमल लपटानी।
धूप -दीप -नवैद्य आरती, पुष्पन की वर्षा महारानी।
छपपन भोग छत्तीसों व्यंजन ,बिन तुलसी हरी एक न मानी।
सभी सखी मैया तेरो यश गावैं ,भक्ति दान दीजै महारानी।
नमो -नमो तुलसा महारानी ,नमो -नमो तुलसा महारानी। ।
इस आरती के अतिरिक्त जो आरती आजकल आरती संग्रह की पुस्तकों में हैं वो इस प्रकार है --------
जय जय तुलसी माता,
सबकी सुखदाता वर माता |सब योगों के ऊपर,
सब रोगों के ऊपर,
रज से रक्षा करके भव त्राता |
बहु पुत्री है श्यामा, सूर वल्ली है ग्राम्या,
विष्णु प्रिय जो तुमको सेवे सो नर तर जाता |
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित,
पतित जनों की तारिणि तुम हो विख्याता |
लेकर जन्म बिजन में, आई दिव्य भवन में,
मानव लोक तुम्हीं से सुख संपति पाता |
हरि को तुम अति प्यारी श्याम वर्ण सुकुमारी,
प्रेम अजब है श्री हरि का तुम से नाता |
जय जय तुलसी माता |
Monday, November 4, 2013
annkoot pooja
दीपावली के दूसरे (next day )दिन अन्नकूट या गोवर्धन की पूजा की जाती है। . पौराणिक कथानुसार यह पर्व द्वापर युग में
आरम्भ हुआ था क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन और गायों के
पूजा के निमित्त पके हुए अन्न भोग में लगाए थे, इसलिए इस दिन का नाम
अन्नकूट पड़ा.
इस दिन बृज में धूमधाम से छपपन भोग लगाकर इस पर्व को मनाया जाता है ,ये पर्व व्रज वासियों का विशेष रूप से है।
इस दिन बृज में धूमधाम से छपपन भोग लगाकर इस पर्व को मनाया जाता है ,ये पर्व व्रज वासियों का विशेष रूप से है।
कथा-----पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस पर्व को मनाये जाने की कथा इस प्रकार है ------
कथा यह है कि देवराज
इन्द्र को अभिमान हो गया था. इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री
कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची.
प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी
उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे. श्री कृष्ण ने
बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया ” मईया ये आप लोग किनकी पूजा की
तैयारी कर रहे हैं” कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र
की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं. मैया के ऐसा कहने पर श्री
कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा
करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता
है. भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए
क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय
है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते
हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए.
गोकुल वासियों ने जब ऐसा करने को मना किया तो नन्द जी ने कहा ,"जब कान्हा कह रहे हैं तो हम सबको गोवर्धन की पूजा ही करनी चाहिए।
लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा
की. देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी.
प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब
इनका कहा मानने से हुआ है. तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी
कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें
अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया. इन्द्र कृष्ण की यह लीला
देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी. इन्द्र का मान मर्दन के
लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत पर रहकर वर्षा
की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की
ओर आने से रोकें.
जब लगातार ७ दिनों तक की गयी मूसलाधार वर्षा से भी बृजवासियों का कुछ नहीं बिगड़ा तब इंद्र देवता ने विचार किया ये कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकते ,और वे ब्र्ह्मा जी के पास पहुँच गए और सारा वृतांत सुनाया ,तब ब्र्ह्मा जी ने बताया ये स्वयं साक्षात् भगवान् विष्णु जी हैं . तब इंद्र जी अत्यंत लज्जित होकर कृष्ण जी के पास पहुंचे और क्षमा प्रार्थना की।
इस पराणिक घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी. बृजवासी इस दिन
गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं. गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग
लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है. गाय और बैलों को
गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है.
इस कथा में एक रोचक कथा ये भी है कि जब सारे गोकुलवासी वापस अपने-अपने घर गए तब वहाँ पानी नाममात्र के लिए भी नहीं था ,तब गोकुलवासियों ने कान्हा से कहा ,"इतनी वर्षा का पानी जो हमारे घरों में था कहाँ गया "तब कान्हा ने कहा "आप सबने गोवर्धन पर्वत को खाना खिलाया था और किसी ने पानी पिलाया था क्या "तो सारा पानी गोवर्धन ने ही पी लिया है "
Saturday, November 2, 2013
deepawali 30 October 2016
दीपावली की पूजा ,सामिग्री ,विधि
असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक तथा अंधेरों पर उजालों की छटा बिखेरने वाली हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या के दिन पूरे भारतवर्ष में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है. दीपावली त्यौहार हिन्दुओं के अलावा सिख, बौध तथा जैन धर्म के लोगों द्वारा भी हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाता है. यूं तो इस महापर्व के पीछे सभी धर्मों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थ में वर्णित कथाओं के अनुसार दीपावली का यह पावन त्यौहार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के बाद बनवास के बाद अपने राज्य में वापस लौटने की स्मृति में मनाया जाता है. इस प्रकाशोत्सव को सत्य की जीत व आध्यात्मिक अज्ञानता को दूर करने का प्रतीक भी माना जाता है.
दीपावली भगवान श्री राम के अयोध्या वापसी की खुशी में मनाई जाती है। इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है।
पूजन सामग्री -
- कलावा, रोली, सिंदूर, १ नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली.
विधि -------
चौकी को धोकर उसके ऊपर लाल कपडा बिछाएं इसके ऊपर गणेश एवं लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें ,और जिस जगह मूर्ति स्थापित करनी हो वहां कुछ चावल रखें. इस स्थान पर क्रमश: गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति को रखें.
चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहें. लक्ष्मीजी,गणेशजी की दाहिनी ओर रहें. पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे. कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें. नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें. यह कलश वरुण का प्रतीक है.
घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें. कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें. कलश के गले में मोली लपेटें. नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें.
लक्ष्मी पूजन विधि
आप हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए. कुछ द्रव्य भी ले लीजिए. द्रव्य का अर्थ है कुछ धन. यह सब हाथ में लेकर संकसंकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो. सबसे पहले गणेश जी व गौरी का पूजन कीजिए
हाथ में थोड़ा-सा जल ले लीजिए और आह्वाहन व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए. हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए.
घर के सभी सदस्य मिलकर हवन की विधि पूरी करें।
लक्ष्मी जी का मन्त्र है ---ॐ ह्रीं क्लीं कमले कमलालय प्रसीद प्रसीद ॐ ह्रीं क्लीं महालक्ष्मी नमः स्वाहा (इस मन्त्र का १०८ आहुति से हवन करें ,और फिर गायत्री मन्त्र का घी से आहुति देकर हवन समाप्त करें )
अंत में महालक्ष्मी जी की आरती के साथ पूजा का समापन कीजिये
जो लोग चित्रगुप्त महाराज जी की पूजा भी आज के दिन करते हैं वो अपनी पुस्तक ,पेन और बहीखाता आदि को चित्रगुप्त की मूर्ति के समक्ष रख कर अक्षत से पूजन करें।
ये पूजन विधि गृहस्थ लोगों के लिया आसान विधि है मगर जिन लोगों को विशेष पूजन करना होता हिअ उन्हें घर पर पंडित बुलाकर पूजा करनी चाहिए .
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
Friday, November 1, 2013
narak chaturadshi
नरक चतुर्दशी पर्व का सम्बन्ध साफ़-सफाई से विशेष है ,कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को "नरक चतुर्दशी" मनायी जाती है। कुछ जगह इसे छोटी दीवाली के रूप में भी मनाया जाता है।
कथाओं के अनुसार आज ही के दिन भगवान कष्ण ने नरकासुर नाम के दैत्य का संहार किया था। आज के दिन मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीप दान भी किया जाता है।
नरक चतुर्दशी की कथाः पुराने समय की बात है रन्तिदेवी नाम के राजा हुए थे। रन्तिदेवी अपने पूर्व जन्म में काफी धार्मिक व दानी थे, इस जन्म में भी दान पुण्य में ही समय बिताया था। कोई पाप किया याद न था लेकिन जब अंतिम समय आया तो यमदूत लेने आए। राजा ने यमदूतों से पूछा कि मैंने तो काफी दान पुण्य किया है कोई पाप नहीं किया फिर यमदूत क्यों आए हैं मतलब मैं नरक में जांऊगा।
राजा रन्तिदेवी ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु की माँग की। यमदूतों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस लौट गया था इस कारण नरक भोगना पडेगा।
राजा ने ऋषि मुनियों से जाकर अपनी व्यथा बताई। ऋषियों ने कहा कि राजन् तुम कार्तिक मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करो और इस ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपना अपराध सबके सामने स्वीकार कर क्षमा याचना करो। ऐसा करने से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे।
राजा ने ब्राह्मणों के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखा व सब पापों से मुक्त हो विष्णु लोक चला गया।
कई घरों में रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दिया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है. घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दिये को नहीं देखते. यह दीया यम का दीया कहलाता है और माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं.
कथाओं के अनुसार आज ही के दिन भगवान कष्ण ने नरकासुर नाम के दैत्य का संहार किया था। आज के दिन मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीप दान भी किया जाता है।
नरक चतुर्दशी की कथाः पुराने समय की बात है रन्तिदेवी नाम के राजा हुए थे। रन्तिदेवी अपने पूर्व जन्म में काफी धार्मिक व दानी थे, इस जन्म में भी दान पुण्य में ही समय बिताया था। कोई पाप किया याद न था लेकिन जब अंतिम समय आया तो यमदूत लेने आए। राजा ने यमदूतों से पूछा कि मैंने तो काफी दान पुण्य किया है कोई पाप नहीं किया फिर यमदूत क्यों आए हैं मतलब मैं नरक में जांऊगा।
राजा रन्तिदेवी ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु की माँग की। यमदूतों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस लौट गया था इस कारण नरक भोगना पडेगा।
राजा ने ऋषि मुनियों से जाकर अपनी व्यथा बताई। ऋषियों ने कहा कि राजन् तुम कार्तिक मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करो और इस ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपना अपराध सबके सामने स्वीकार कर क्षमा याचना करो। ऐसा करने से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे।
राजा ने ब्राह्मणों के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखा व सब पापों से मुक्त हो विष्णु लोक चला गया।
कई घरों में रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दिया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है. घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दिये को नहीं देखते. यह दीया यम का दीया कहलाता है और माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं.
विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं और उसका जीवन नरक की यातनाओं से मुक्त हो जाता है।
इस वर्ष नरक चतुर्दशी दिनांक २ नवंबर दिन शनिवार २०१३ को पड़ रही है ,आप सभी को दीपावली कि हार्दिक शुभकामनाएं। । …
Thursday, October 31, 2013
dhantryodashi
धनतेरस दीपावली के २ दिन पहले त्रयोदशी को मनायी जाती है। इस दिन मृत्यु के देवता यम और धन के देवता कुबेर की पूजा का विशेष महत्त्व है
कहा जाता है कि इस दिन धन्वन्तरि का जन्म हुआ था और जिस समय उनका अवतरण हुआ था उनके हाथ में कलश था और इसी कारण इस दें नए बर्तन खरीदने के परम्परा है। और बरतन चाँदी ,पीतल या तांबे का लेना चाहिए ,स्टील का बरतन नहीं लेना चाहिए।
कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था. दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा. राज इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े. दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया.
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे. जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा. यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए. दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक सरल उपाय मैं तुम्हें बताता हूं ". कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
कहा जाता है कि इस दिन धन्वन्तरि का जन्म हुआ था और जिस समय उनका अवतरण हुआ था उनके हाथ में कलश था और इसी कारण इस दें नए बर्तन खरीदने के परम्परा है। और बरतन चाँदी ,पीतल या तांबे का लेना चाहिए ,स्टील का बरतन नहीं लेना चाहिए।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है. इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है.
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है.धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या. दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके.कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था. दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा. राज इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े. दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया.
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे. जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा. यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए. दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक सरल उपाय मैं तुम्हें बताता हूं ". कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
और तभी से धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा की ओर दिया जलाया जाने लगा।
Sunday, October 27, 2013
rama ekadashi vrat
कार्तिक मास के कृ्ष्णपक्ष की एकादशी का नाम रमा एकादशी है. इस एकादशी को रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इसका व्रत करने से समस्त पाप नष्ट होते है.
रमा एकादशी व्रत कार्तिक मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. वर्ष 2013 में यह एकादशी दिनांक ३० अक्तूबर को किया जायेगा. इस दिन भगवान श्री केशव का संपूर्ण वस्तुओं से पूजन किया जाता है.
रमा एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है ------------
प्राचीन काल की बात है, एक बार मुचुकुन्द नाम का एक राजा राज्य करता था. वह प्रकृ्ति से सत्यवादी था. तथा वह श्री विष्णु का परम भक्त था. उसका राज्य में कोई पाप नहीं होता है. उसके यहां एक कन्या ने जन्म लिया. बडे होने पर उसने उस कन्या का विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र साभन के साथ किया.एक समय जब चन्द्रभागा अपने ससुराल में थी, तो एक एकादशी पडी. एकादशी का व्रत करने की परम्परा उसने मायके से मिली थी. चन्द्रभागा का पति सोचने लगा कि मैं शारीरिक रुप से अत्यन्त कमजोर हूँ. मैं इस एकादशी के व्रत को नहीं कर पाऊंगा. व्रत न करने की बात जब चन्द्रभागा को पता चली तो वह बहुत परेशान हुई़.
चन्द्रभागा ने कहा कि मेरे यहां एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं कर सकता. अगर आप भोजन करना ही चाहते है, तो किसी ओर स्थान पर चले जायें यदि आप यहाँ रहेंगे तो आपको व्रत अवश्य ही करना पडेगा. अपनी पत्नी की यह बात सुनकर शोभन बोला कि तब तो मैं यही रहूंगा और व्रत अवश्य ही करूंगा.
यह सोच कर उसने एकादशी का व्रत किया, व्रत में वह भूख प्यास से पीडित होने लगा. सूर्य भगवान भी अस्त हो गए. और जागरण की रात्रि हुई़. वह रात्रि सोभन को दु:ख देने वाली थी. दूसरे दिन प्रात: से पूर्व ही सोभन इस संसार से चल बसा.
राजा ने उसके मृ्तक शरीर को दहन करा दिया. चन्द्रभागा अपने पति की आज्ञानुसार अपने पिता के घर पर ही रही़. रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को एक उतम नगर प्राप्त हुआ, जो सिंहासन से युक्त था, परन्तु यह राज्य अध्रुव ( अदृश्य) था. यह एक अनोखा राज्य था।
एक बार उसकी पत्नी के राज्य का एक ब्राह्माण भ्रमण के लिए निकला, उसने मार्ग में सोभन का नगर देखा. और सोभन ने उसे बताया कि उसे रमा एकादशी के प्रभाव से यह नगर प्राप्त हुआ है. सोभन ने ब्राह्माण से कहा की मेरी पत्नी चन्द्र भागा से इस नगर के बारे में और मेरे बारे में बता देना , वह सब ठीक कर देगी.
ब्राह्माण ने वहां आकर चन्द्रभागा को सारा वृ्तान्त सुनाया. चन्द्रभागा बचपन से ही एकादशी व्रत करती चली आ रही थी. उसने अपनी सभी एकादशियों के प्रभाव से अपने पति और उसके राज्य को यथार्थ का कर दिया. और अन्त में अपने पति के साथ दिव्यरुप धारण करके तथा दिव्य वस्त्र अंलकारों से युक्त होकर आनन्द पूर्वक अपने पति के साथ रहने लगी.
जो भी इस रमा एकादशी का व्रत करते है. उनके ब्रह्महत्या आदि के पाप नष्ट होते है.
Sunday, October 20, 2013
karwa chauth..ka vrat ,poojaa
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को स्त्रियाँ पति की लम्बी आयु ,स्वास्थ्य और मंगलकामना के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं। इस व्रत का फल शुभ और सौभाग्य को देने वाला माना गया है । इस व्रत को रखने वाली स्त्री प्रातः काल में जलपान ग्रहण करने के उपरांत व्रत का संकल्प लेती अं और सायंकाल चंद्रोदय के उपरांत पूजा करके चन्द्र दर्शन करके पति के हाथ से जल ग्रहण करती है ।
कथा ------
एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए। द्रोपदी ने सोच की यहाँ हर वक्त विघ्न -बाधाएं आती रहती हैं ,उनके शयन के लिए कोई उपाय करना चाहिए तब उन्हें भगवान् कृष्ण का ध्यान किया। श्री कृष्ण जी ने कहा -पर्वत्री जी ने भी शिव जी से यही प्रश्न किया था तब न्होंने करवा चौथ का व्रत करने को कहा था जिसकी कथा और विधान में तुमको बताता हूँ
१. प्राचीन काल में धर्मपरायण ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी ,बड़ी होने पर ब्राह्मण ने उसका विधिवत विवाह कर दिया। विवाह के पश्चात उसने करवा चौथ का व्रत रखा। सात भाइयों की लाडली बहन चंद्रोदय से पहले ही भूख से व्याकुल होने लगी ,यह देखकर भाइयों से उसकी ऐसी अवस्था देखी न गयी और उन्होंने कुछ सोचते हुए चंद्रोदय से पहले ही भोजन करने की सोची और तब उन्होंने पीपल की आड़ से चलनी में दिया रख कर चन्द्रोदय होने की बात कही।
और कहा उठो बहन अर्घ्य देकर भोजन कर लो ,बहन ने अर्घ्य देकर भोजन कर लिया तभी उसके पति के प्राण पखेरू हो गए। यह देखकर वह रोने -चिल्लाने लगी। रोने की आवाज सुनकर देवदासियों ने आकर रोने का कारन पूछा तो ब्राह्मण की कन्या ने सब हाल कह सुनाया !तब देवदासियां बोली तुमने चंद्रोदय से पहले ही अन्न -जल ग्रहण कर लिया जिसके कारन तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। यदि अब तुम मृत पति की सेवा करती हुई बारह महीनों तक प्रत्येक चौथ का व्रत विधिपूर्वक करो और करवा चौथ का व्रत यथाविधि करो तो तुम्हारे पति अवश्य जी उठेंगे।
ब्राह्मण की पुत्री ने वैसा ही किया जैसा की देवदासियां कह कर गयीं थीं तो उसका पति जीवित हो उठा ।
इस प्रका कथा कह कर श्रीकृष्ण ने द्रोपदी से कहा तुम भी इसी प्रका व्रत करोगी तो तुम्हारे सरे दुःख दूर होंगे।
२. एक ब्राह्मण परिवार में सात बहुएँ थीं उनमें से छः बहुएं बहुत अमीर मायके की थी मगर सातवीं बहु निर्धन परिवार से थी ,वह घर का सारा काम काज करती थी और सबकी सेवा करती रहती थी।
तीज -त्यौहार पर जब उसके मायके से कोई न आता तो वह बहुत दुखी होती थी। करवा चौथ पर वह दुखी होकर घर से निकल पड़ी और जंगल में जाकर वृक्ष के नीचे बैठ कर रोने लगी। तभी बिल से सांप निकल और उके रोने का कारन पूछा ----तब छोटी ने सारी बात कही। नाग को उस पर दया आगई और बोल तुम घर चलो मैं अभी करवा लेकर आता हूँ।
नाग देवता करवा लेकर उसके घर पहुंचे। सास प्रसन्न हो गयी। सास ने प्रसन्न मन से छोटी को नाग के साथ उसके घर भेज दिया। नाग देवता ने छोटी को अपना सारा महल दिखया और कहा -जितने दिन चाहो यहाँ आराम से रहो!
एक बात याद रखना -सामने रखी नांद कभी मत खोलना। एक दिन उत्सुकता वश छोटी ने जब घर पर कोई नहीं था उस नांद को खोल कर देखना चाहा परन्तु उसमें से छोटे-छोटे नाग के बच्चे निकल कर इधर-उधर रेंगने लगे। उसने जल्दी से नांद को ढक दी ,जल्दी में एक सांप की पूँछ कट गयी ,शाम को नाग के आने पर उसने अपनी गलती स्वीकार ली और आज्ञा लेकर अपने घर वापस चली गयी ,उसकी ससुराल में बड़ी इज्जत होने लगी।
जिस सांप की पूछ कटी थी उसने जब अपनी माँ से पूछ की मेरी पूँछ कैसे कटी ? माँ ने बताया तो वह बोल मैं बदला लूँगा ,माँ के बहुत समझाने पर भी वो छोटी के घर गया और चुप कर बैठ गया।
वहां उसकी सास से किसी बात पर सास से बहस हो रही थी और छोटी बार-बार कसम खाकर कह रही थी की मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ,"मुझे बंदा भैया से प्यारा कोई नहीं मैं उनकी कसम खाकर कह रही हूँ मैंने ऐसा नहीं किया" यह सुनकर बंडा सोचने लगा ये मुझे इतना प्यार करती है और मैं इसे मारने चला था और वो वहां से चला गया । तभी से बंडा भैया करवा लेकर जाने लगे ।
इस वर्ष करवा चौथ का व्रत २२ अक्टूबर २०१३ को पड़ रहा है ।
Friday, October 18, 2013
sharad poornima/ शरद पूर्णिमा/ कोजागिरी पूर्णिमा
आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है. वर्ष 2015
में शरद पूर्णिमा 26 अक्तूबर को होगी . इस पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा
व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है . इस दिन चन्द्रमा व सत्य नारायण भगवान का
पूजन, व्रत, कथा की जाती है.
ज्योतिषिय नियमों के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है. इस दिन के संदर्भ में एक मान्यता प्रसिद्ध है, कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था. इस दिन चन्द्रमा कि किरणों से अमृ्त वर्षा होने की किवदंती प्रसिद्ध है. इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रत भर चांदनी में रखकर अगले दिन प्रात: काल में खाने का विधि-विधान है.
हिंदू धर्म में जितने भी व्रत त्यौहार, या तिथिएं मनाई जाती है यदि देखा जाये तो उनका कोई न कोई महत्व है
ज्योतिषिय नियमों के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है. इस दिन के संदर्भ में एक मान्यता प्रसिद्ध है, कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था. इस दिन चन्द्रमा कि किरणों से अमृ्त वर्षा होने की किवदंती प्रसिद्ध है. इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रत भर चांदनी में रखकर अगले दिन प्रात: काल में खाने का विधि-विधान है.
कुछ लोग दूध में चूरा भिगो कर रखते हैं और कुछ लोग काली मिर्च में चीनी पीस कर देशी घी के साथ रखते हैं इस विषय में कहा ये जाता है की इस काली मिर्च के प्रसाद को खाने से आँखों की रोशनी तेज़ होती है ।
अतः इस दिन कुछ भी प्रसाद बना कर चन्द्रमा की रौशनी में जरूर रखना चाहिए और प्रातः उठकर इस प्रसाद को ग्रहण करना चाहिए और सभी में इस प्रसाद को वितरित करना चाहिए ।कथा ----
एक साहुकार था जिसके यहां दो पुत्रियां थीं. एक पुत्री विधि-विधान से
व्रत पूरा करती थी. और दूसरी पुत्री व्रत तो करती थी, परन्तु अधूरा ही
किया करती थी. इसी कारण से दूसरी पुत्री के यहां जो भी संतान होती थी. वह
मर जाती थी. यह स्थिति देख कर साहूकार की दूसरी पुत्री ने इसका कारण पंडितों से पूछा. तब पंडितों ने बताया की तुम व्रत तो करती हो मगर अधूरा किया करती हों,
इसी कारण से तुम्हारी सन्तान जन्म लेते ही मर जाती है.अतः तुम शरद पूर्णिमा का
पूरा व्रत करों,साहूकार की पुत्री ने पंडितों के बताये अनुसार व्रत किया फलस्वरूप उसे पुत्र तो हुआ मगर शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गयी ।
उसने अपनी संतान को एक पटली पर लिटा दिया और उसके ऊपर कपडा ढ्क दिया.
इसके बाद वह अपनी बडी बहन को बुलाकर लाई और उसे बैठने के लिये कहा, उसकी
बडी बहन के वस्त्र उस बालक से छू गयें. और देखते ही देखते मरा हुआ बच्चा
रोने लगा. बालक को रोते देख, बडी बहन ने कहा कि अगर गलती से मैं बालक के
ऊपर बैठ जाती तो बच्चा मर न जाता. तब छोटी बहन ने कहा की यह तो पहले ही मरा
हुआ था. तेरे वस्त्र छूने से यह जीवित हो गया है. उसके बाद से शरद
पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से करने की परम्परा चली आ रही है. हिंदू धर्म में जितने भी व्रत त्यौहार, या तिथिएं मनाई जाती है यदि देखा जाये तो उनका कोई न कोई महत्व है
Monday, October 14, 2013
Hema's Archana: पापाकुंशा एकादशी
Hema's Archana: पापाकुंशा एकादशी: श्री कृष्ण जी बोले --हे युधिष्ठिर आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापाकुंशा एकादशी है। पापाकुंशा एकादशी के फलों के विषय में...
पापाकुंशा एकादशी
श्री कृष्ण जी बोले --हे युधिष्ठिर आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापाकुंशा एकादशी है।
पापाकुंशा एकादशी के फलों के विषय में कहा गया है, कि हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के फल,इस एकादशी के फल के सोलहवें, हिस्से के बराबर भी नहीं होता है. इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को स्वस्थ शरीर और सुन्दर जीवन साथी की प्राप्ति होती है.
यदि इसके व्रत में श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान विष्णु क पूजन किया जाए तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति इस एकादशी की रात्रि में जागरण करता है, उन्हें, बिना किसी रोक के स्वर्ग मिलता है.इस लोक में सुन्दर स्त्री ,पुत्र और धन की प्राप्ती होती है ।
इस एकादशी के एक दिन पहले भगवान राम ने रावण का वध किया था ।रावण स्वभाव से चाहे जैसा भी था लेकिन था तो ब्राम्हण ,अतः ब्रह्म हत्या के दोष निवारण हेतु मर्यादा पुरुसोत्तम राम ने पापाकुंशा एकादशी का व्रत किया और पाप रहित हो गए।
अंगिरा ऋषि ने उसे आश्चिन मास कि शुक्ल पक्ष कि एकादशी के दिन श्री विष्णु जी का पूजन करने की सलाह दी़. इस एकादशी का पूजन और व्रत करने से वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को गया ।।।।
इस दिन साँवा मलीचा का सागार लिया जाना चाहिए ।
पापाकुंशा एकादशी के फलों के विषय में कहा गया है, कि हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के फल,इस एकादशी के फल के सोलहवें, हिस्से के बराबर भी नहीं होता है. इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को स्वस्थ शरीर और सुन्दर जीवन साथी की प्राप्ति होती है.
इस
एकादशी के दिन मनोवांछित फल कि प्राप्ति के लिये श्री विष्णु भगवान कि
पूजा की जाती है. - See more at:
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पापाकुंशा एकाद्शी
पापाकुंशा
पापाकुंशा
एकादशी तिथि के दिन सुबह उठकर स्नान आदि कार्य करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. यदि इसके व्रत में श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान विष्णु क पूजन किया जाए तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति इस एकादशी की रात्रि में जागरण करता है, उन्हें, बिना किसी रोक के स्वर्ग मिलता है.इस लोक में सुन्दर स्त्री ,पुत्र और धन की प्राप्ती होती है ।
इस एकादशी के एक दिन पहले भगवान राम ने रावण का वध किया था ।रावण स्वभाव से चाहे जैसा भी था लेकिन था तो ब्राम्हण ,अतः ब्रह्म हत्या के दोष निवारण हेतु मर्यादा पुरुसोत्तम राम ने पापाकुंशा एकादशी का व्रत किया और पाप रहित हो गए।
कथा ------
विन्ध्यपर्वत पर महा क्रुर और अत्यधिक क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था. उसने बुरे कार्य करने में सारा जीवन बीता दिया. जीवन के अंतिम भाग आने पर यमराज ने उसे अपने दरबार में लाने की आज्ञा दी. दूतोण ने यह बात उसे समय से पूर्व ही बता दी. मृ्त्युभय से डरकर वह अंगिरा ऋषि के आश्रम में गया. और यमलोक में जाना न पडे इसकी विनती करने लगा.अंगिरा ऋषि ने उसे आश्चिन मास कि शुक्ल पक्ष कि एकादशी के दिन श्री विष्णु जी का पूजन करने की सलाह दी़. इस एकादशी का पूजन और व्रत करने से वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को गया ।।।।
इस दिन साँवा मलीचा का सागार लिया जाना चाहिए ।
Saturday, October 12, 2013
aathvan navratra (mahagauri poojan
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः |
महागौरी शुभं दद्यान्त्र महादेव प्रमोददा ||
इस मन्त्र से आज हमने माता की उपासना की है ।और आप सभी भी इसी मन्त्र से आराधना करें तो उत्तम फल कि प्राप्ति होगी ।
इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत है ।इनकी चार भुजाएं है ।इनका वाहन वृषभ है ।अपने पार्वती रूप में इन्होने भगवान् शिव को पति - रूप में प्राप्त करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी ।इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया ।इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान् शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत् प्रभा के समान अत्यंत कान्तिमान गौर हो उठा ! तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा । दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है ।इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है । माता के इस स्वरूप की पूजा करने से पूर्व संचित पाप भी विनिष्ट हो जाते है ।भविष्य में पाप संताप , दैन्य - दुःख उसके पास कभी नै आते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है ।इनकी पूजा उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते है माँ महागौरी का ध्यान - स्मरण पूजन - आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है । हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए ! इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है ।मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादार - विन्दों का ध्यान करना चाहिए । ये भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती है ! इनकी पूजा - उपासना से भक्तों के असम्भव कार्य भी संभव हो जाते है ! अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमे सर्व विध प्रयत्नं करना चाहिए । पुराणों में इनकी महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है ।ये मनुष्य की वृत्तियों को सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती हैं ।
माता के इस स्वरूप को हम सभी सत -सत प्रणाम करते है बोलो माता रानी कि जय,
Friday, October 11, 2013
7venth navratra
दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। माँ दुर्गा का यह स्वरूप कालरात्रि के नाम से पूजा जाता है , माना गया है कि इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है
साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है।
इस लिए ब्रह्मांड की समस्त
सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में
अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक
नाम 'शुभंकारी' भी है। अतः इनके भक्तों को माता के इस स्वरूप से भयभीत होने कि आवश्यकता नही है
माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। ये
ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय,
जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा
भय-मुक्त हो जाता है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
इस दिन इस मन्त्र द्वारा माता कि अर्चना की जानी चाहिए
बोलो अम्बे मात की जय
Thursday, October 10, 2013
chatha navratra (maa katayaani )
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना |
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि ||
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि ||
इस मंत्र द्वारा मां के छठे रूप की आराधना की जाती है
मार्कण्डये पुराण के अनुसार जब राक्षसराज
महिषासुर का अत्याचार बढ़ गया, तब देवताओं के कार्य को सिद्ध करने के लिए
देवी मां ने महर्षि कात्यान के तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर पुत्री रूप
में जन्म लिया. चूँकि महर्षि कात्यान ने सर्वप्रथम अपने पुत्री रुपी
चतुर्भुजी देवी का पूजन किया, जिस कारण माता का नाम कात्यायिनी पड़ा.
मान्यता है कि यदि कोई श्रद्धा भाव से नवरात्री के छठे दिन माता कात्यायनी
की पूजा आराधना करता तो उसे आज्ञा चक्र की प्राप्ति होती है.
इनका रूप भव्य और दिव्य हैं ,स्वर्ण के समान तेज वाली मां के बायी तरफ उपर वाले हाथ में कमल पुष्प और नीचे वाले हाथ में तलवार हैं .
मां कात्यायनी की उपासना से मनुष्य सरलता पूर्वक अर्थ ,धर्म ,काम और मोक्ष चारो फलों को आसानी से प्राप्त कर लेता हैं । जो मनुष्य मन ,कर्म और वचन से मां की आराधना करता हैं उन्हे मां धन -धान्य से परिपूर्ण करती हैं और साथ ही भयमुक्त भी करती हैं ।
मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में
प्राप्त करने के लिए रुक्मिणी ने इनकी ही आराधना की थी, जिस कारण मां
कात्यायनी को मन की शक्ति कहा गया है.
Wednesday, October 9, 2013
fifth navratra---maa sakndmata ki aaraadhana
स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प लिए हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं और इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है।
नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा होती है।
कहा गया है कि यदि कोई श्रद्धा और भक्ति पूर्वक माता कि पूजा,अर्चना करता है तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है ।माता की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है । पौराणिक कथाओं के अनुसार माता स्कन्द माता ही हिमालय पुत्री है और महादेव की पत्नी होने के कारण माहेश्वरी के नाम से भी पूजा जाता है । इनका पुत्र से अत्यधिक प्रेम होने के कारण इनहें इनके पुत्र स्कन्द के नाम से पुकारा जाता है ।
इस औषधि को नवरात्रि में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी
बीमारियां नहीं होती। साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति
मिलती है।
माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इस मन्त्र को कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
Tuesday, October 8, 2013
maata ka chand
अम्बिके जग्दम्बिके अब तेरा ही आधार है ,जिसने ध्याया तुझको उसका बेडा पार है -----२
नंगे-नंगे पैरों मैया अकबर आया ,सोने का छत्र मां उसने चढाया -२
पूजा करी मां तेरी तू शक्ति का आधार है ,अम्बिके --------
२. पान, सुपारी ,ध्वजा ,नारियल भेंट चढाउँ ,खोल दरवाजा आजा तुझे ही बुलाउ -२
दर पे आए भक्तों ने बोली जय -जयकार है --अम्बिके
३. दर पे खडा सवाली भर दे मेरी झोली खाली , तेरा वचन न जाए खाली जय हो माता शेरा वाली -२
कर दे किरपा मेहरा वाली तू बड़ी दयालु है ---अम्बिके
४. धर्म भवन जागरण में मैया तुझको आना है , सब भक्तों को मैया तेरा दर्शन पाना है -२
जल्दी से आजा मैया तेरा इन्तजार है --अम्बिके ---
Sunday, October 6, 2013
mata ke chand (geet)
कामना पूर्ण करो महारानी -२
- सो देवा रानी काहे के चारो खंबा -२काहे के चारो झंडी …--सो मन्त्री सोने के चारों खंबे ,तूल कि झंडी लगी महारनी -----कामना पूर्ण करो -----२. सो देवा रानी काहे का तेरा लहंगा -२काहे की चुनर बनी महारानी -------सो मन्त्री सातन का मेरा लहंगा ,रेशम ओढ्निया बनी महारानी ----कामना पूर्ण करो ------३. सो देवा रानी कहे का तेरा भोग -२कहे का प्रसाद बना महारानी -----सो मंत्री हलवे का मेरा भोग , चने का प्रसाद बना महारानी --कामना पूर्ण करो महारानी
2end navaratra-----maa bhrhamcharini
दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मां दुर्गा की दूसरी शक्ति स्वरूपा भगवती ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. माता ब्रह्मचारिणी का स्वरुप बहुत ही सात्विक
और भव्य है. ये श्वेत वस्त्र में लिपटी हुई कन्या रूप में हैं जिनके दाहिने
हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है. मां दुर्गा की 9 शक्ति का यह दूसरा रूप भक्तों और साधकों को अनंत फल प्रदान करने वाला है.
ब्रह्मचारिणी - तप का आचरण करने वाली - वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म - वेद, तत्व और तप ' ब्रह्म शब्द के अर्थ है !
पौराणिक कथानुसार अपने पूर्व जन्म में ब्रह्मचारिणी मां भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए देवर्षि नारद के उपदेश से कठिन तपस्या की ,और इस तपस्या के दौरान मां ब्रह्मचारिणी ने एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं. अपने कठिन उपवास के समय मां केवल जमीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शिव की अराधना करती रही और फिर कई हज़ार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार ही व्रत करती रही, तब जाकर भगवान शिव इन्हें पति रूप में प्राप्त हुए।
इनकी पूजा - उपासना से मनुष्य में तप , त्याग , वैराग्य , सदाचार , संयम , पर उपकार की वृद्धि होती हैं ! जीवन के कठिन समय में भी विचलित नहीं होते !
ब्रह्मचारिणी - तप का आचरण करने वाली - वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म - वेद, तत्व और तप ' ब्रह्म शब्द के अर्थ है !
पौराणिक कथानुसार अपने पूर्व जन्म में ब्रह्मचारिणी मां भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए देवर्षि नारद के उपदेश से कठिन तपस्या की ,और इस तपस्या के दौरान मां ब्रह्मचारिणी ने एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं. अपने कठिन उपवास के समय मां केवल जमीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शिव की अराधना करती रही और फिर कई हज़ार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार ही व्रत करती रही, तब जाकर भगवान शिव इन्हें पति रूप में प्राप्त हुए।
इनकी पूजा - उपासना से मनुष्य में तप , त्याग , वैराग्य , सदाचार , संयम , पर उपकार की वृद्धि होती हैं ! जीवन के कठिन समय में भी विचलित नहीं होते !
Thursday, October 3, 2013
navarati
नवरात्री वर्ष मे २ बार मनाई जाती है ,दशहरे से पहले मनाई जाने वाली नवरात्री को महा नवरात्री के रूप मे मनाया जाता है ,
इस वर्ष नवरात्री का शुभ आरंभ ५ अक्तूबर से होगा ,और हिंदू धर्म मे नवरात्री का विशेष महत्व है ,परम्पराओं के इस त्योहार मे सबसे पहले कलश कि स्थापना का विधान है ।
घटस्थापन- कलश स्थापन मुहुर्त : 06:16 AM to 07:15 AM (Kanya Lagna) ज्योतिष के अनुसार यह उत्तम समय घट स्थापना के लिये बताया गया है । यदि किसी कारण वश इस शुभ मुहूर्त मे स्थापना न हो सके तो कलश कि स्थापना कभी भी राहू काल मे नही कि जानी चाहिये .कलश स्थापना vidhi ------
सर्वप्रथम स्नान से निवृत होकर जिस स्थान पर पूजन किया जाने हो उस स्थान पर सफाई करें और कलश में गंगा जल भर कर उसके उपर अशोक या आम के पत्तों को कलश पर रखें। इसके उपर दीपक रखें और प्रज्वलित करें ।
तत्पचात सभी देवी -देवता का आह्वाहन करें और प्रार्थना करें ,
आराधना और पूजा के बाद आरती और वन्दना के पश्चात भोग लगाएँ तथा सभी में वितरित कर दें।
दुर्गा जी कि पूजा में मंत्रों का विशेष महत्व है अतः उनका आवाहन मंत्रों द्वारा किया जाना चाहिए ।
तत्पचात सभी देवी -देवता का आह्वाहन करें और प्रार्थना करें ,
आराधना और पूजा के बाद आरती और वन्दना के पश्चात भोग लगाएँ तथा सभी में वितरित कर दें।
दुर्गा जी कि पूजा में मंत्रों का विशेष महत्व है अतः उनका आवाहन मंत्रों द्वारा किया जाना चाहिए ।
Monday, September 9, 2013
bhajan
मोहन हमारे मधुबन में तुम आया न करो -तुम आया न करो ---------
जादू भरी ये बांसुरी बजाया न करो -बजाया न करो -------------
१. सूरत तुम्हारी देख कर सलोनी सांवली -सलोनी सांवली -२
सुन बांसुरी की तान मैं हो गयी बाँवरी -२
माखन चुराने वाले ,दिल चुराया न करो - चुराया न करो -----
मोहन हमारे मधुबन में तुम आया न करो ----
२. माथे मुकुट गलमाल कटि में काछनी सोहे -काछनी सोहे -२
कानों में कुंडल झूमते मन को मेरे सोहे - मन को मेरे सोहे -२
इस चन्द्रमा के रूप से लुभाया न करो ----
मोहन हमारे मधुबन में तुम आया न करो …
३. अपनी यशोदा मात की सौगंध है तुमको -सौगंध है तोहे -२
यमुना नदी के तीर पर तुम न मिलो हमको - तुम न मिलो हमको -२
इस बांसुरी की तान पे बिल्माया न करो ---
मोहन हमारे मधुबन में तुम आया न करो ……
४. इसी तुम्हारी बांसुरी ने मोहनी डारी -मोहनी डारी -२
चन्द्र सखी की विनती तुम सुन लो बनवारी -सुन लो बनवारी -२
दर्शन दिखा दो साँवरे अब देर न करो -अब देर न करो ----
मोहन हमारे मधुबन में तुम आया न करो -------
Thursday, September 5, 2013
bhajan
हरी नाम का दीवाना बन कर देखो ,कोई प्रेम का प्याला पी कर देखो …।
१. हुई दीवानी मीराबाई -हुई दीवानी मीराबाई
पाए कष्ट लाखों नहीं पछताई --२
विष से बन गया अमृत देखो -----।
२. शबरी के घर राम जी आये -शबरी के घर राम जी आये .
खाए बेर और बहुत सिहाये -२
कहा लक्ष्मण से चख कर देखो -----।
३ . इस भक्ति का नशा है छाया -इस भक्ति का नशा है छाया .
जो कोई पीये होए मतवाला -२
इस भक्ति के रस पी के देखो …। --
Tuesday, September 3, 2013
upasna
- पूजा के लिए स्थान पवित्र ,और स्वछ होना चाहिए . पूजा मूर्ति या चित्र के समक्ष करना चाहिए ।
- हनुमान जी को सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
- विष्णु जी को अक्षत नहीं चढाने चाहिये ।
- गणेश जी को तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए ।
- दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए ।
- शंकर जी को मदार का पुष्प चढ़ाना चाहिए ।
- बेल पत्र खंडित नहीं होना चाहिए .
- बेलपत्र ४० दिनों तक के पुराने भी चढ़ाएं जा सकते हैं ।
- कीड़ों के खाए हुए पुष्प नहीं चढाने चाहिए ।
- गणपति को दूर्वा और लाल पुष्प चढाने चाहिए ।
Friday, August 30, 2013
shubh kary ke muhurt
किसी भी शुभ कार्य के लिए जाते समय अगर तिथि ,और मुहूर्त का ध्यान रखा जाये तो कार्य में सफलता पाने के रास्ते आसान हो जाते हैं. यह निश्चित तो नहीं की कार्य अवश्य सफल हो लेकिन हां पूर्ण होने की संभावना बढ़ जाती है, और यदि हमारे कुछ थोड़ा बहुत कुछ करने से कार्य में सफलता मिला जाये तो ईश्वर का ध्यान करने में क्या बुराई है ,ईश्वर अगर हमारे किये गए शुभ कार्यों का तुरंत फल नहीं देते तो , उसका बुरा फल भी नहीं देते हैं। तो क्यों न ईश्वर का ध्यान कर लिया जाये। कुछ लोगों का मानना है की हमने ऐसा किया था ,मगर हमारा ये कार्य सफल नहीं हुआ या हमको सफलता नहीं मिली ,ऐसा सोचना गलत है बल्कि हमें तो ये सोचना चाहिए की यदि हमारा कार्य पूर्ण नहीं हुआ तो ईश्वर ने हमारे लिए इससे भी अच्छा कुछ सोचा होगा।
किसी भी शुभ कार्य के लिए शुभ दिन और तिथि इस तरह हैं ---
१. पंचक या गंड मूल न हो।
२. राहु काल में कोई भी शुभ कार्य आरम्भ नहीं करना चाहिए।
३. चतुर्थी ,सप्तमी ,नवमी और अमावश्या को शुभ कार्य न शुरू करें।
४,मकान बनाने के लिए या बदलने के लिए सोम और मंगल शुभ।
५. पढाई से सम्बंधित कार्यों के लिए ,परीक्षा आदि के लिए सोमवार ,वीरवार , और शुक्रवार शुभ होते हैं।
६ बाहर जाने से पहले पैर अवश्य धोने चहिये।
. और अगर फिर भी कार्य करना आवश्यक हो तो अपने इष्ट का ध्यान करें ,मीठा खाएं और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर काम के लिए निकलें।
किसी भी शुभ कार्य के लिए शुभ दिन और तिथि इस तरह हैं ---
१. पंचक या गंड मूल न हो।
२. राहु काल में कोई भी शुभ कार्य आरम्भ नहीं करना चाहिए।
३. चतुर्थी ,सप्तमी ,नवमी और अमावश्या को शुभ कार्य न शुरू करें।
४,मकान बनाने के लिए या बदलने के लिए सोम और मंगल शुभ।
५. पढाई से सम्बंधित कार्यों के लिए ,परीक्षा आदि के लिए सोमवार ,वीरवार , और शुक्रवार शुभ होते हैं।
६ बाहर जाने से पहले पैर अवश्य धोने चहिये।
. और अगर फिर भी कार्य करना आवश्यक हो तो अपने इष्ट का ध्यान करें ,मीठा खाएं और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर काम के लिए निकलें।
Tuesday, August 27, 2013
aja ekadashi
भाद्र पक्ष की कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी मनाई जाती है । इस व्रत में आत्मशुद्धि तथा अध्यात्मिकता का मार्ग खुलता है ।
कथा----
सूर्य वंश में राजा हरिश्चन्द्र का जन्म अयोध्या नगरी में हुआ था। राजा हरिश्चन्द्र के द्वार पट पर एक श्याम पट लगा था और जिसमें मडीयों से लिखा था ,"इस द्वार पर मुंह माँगा दान दिया जाता है ,कोई भी खाली हाथ नहीं जाता है "
महर्षि विश्वामित्र ने पढ़ कर कहा यह लेख मिथ्या है। राजा बोले 'आप परीक्षा कर लें महाराज "
विश्वामित्र बोले --अपना राज्य मुझे दे दो। राजन ने कहा राज्य आपका है ,और क्या चाहिए ?
विश्वामित्र बोले- : दक्षिणा भी तो लेनी है "रहू ,केतु और शनि की पीड़ा भोगनी सहज है ,साढ़ेसाती का कष्ट भी सुगम है ,मेरी परीक्षा में पास होने बड़ा ही कठिन है। आपको मुर्दे जलने होंगे ,आपकी पत्नी को दासी बनना पड़ेगा। यदि आप इन कष्टों से भय नहीं तो हमारे साथ काशी चलें।
राजा पत्नी और पुत्र के साथ काशी गए वहां स्वयं श्मशान में डोम (शवों को जलने के लिए लकड़ी बेचने वाले ) बने ,पत्नी दासी बनी।
राजा के पुत्र को नाग ने डस लिया परन्तु ऐसी विपत्ति में भी राजन ने सत्य का मार्ग नहीं त्यागा।
परन्तु मन में शोक उत्पन्न हुआ। उस समय गौतम ऋषि ने राजा को अजा एकादशी का व्रत विधि पूर्वक करने को कहा। राजा ने विधिपूर्वक अजा एकादशी का व्रत पूजन किया और इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से अपने पुत्र को जीवित पाया तथा पत्नी को आभूषणों से युक्त पाया। एकादशी व्रत के प्रभाव से अनंत में स्वर्ग को प्राप्त हुए।
इस कथा के महात्म्य का फल अश्वमेघ यग्य के फल के सामान माना गया है।
इस दिन बादाम था छुहारे का सागार लिया जाना चाहिए।
Saturday, August 24, 2013
bhajan
तूने अजब रचा भगवान् खिलौना माटी का ,तूने अजब रहका भगवान् खिलौना माटी का ।
कान दिये हरि गुण सुनने को ---२
मुख से करो गुणगान ---खिलौना माटी का ----------
२. मुख से भज हरि नाम प्रभु का --२
जीभ से करो पहचान - खिलौना माटी का --------------
३. शीश दिये गुरु चरण नमन को -२
हाथों से करो तुम दान - खिलौना माटी का ------------
४. आँख दई है हरि दर्शन को -२
मुख से करो गुणगान - खिलौना माटी का -------
५. पैर दिये तीर्थ करने को -२
निश्चय हो कल्याण --खिलौना माटी का ----
६. राम नाम की नाव बनाकर -२
भाव से हो जाये पार - खिलौना माटी का ------
Thursday, August 15, 2013
prarthana
ऐसी कृपा करो भगवान् ,हरदम रहे तुम्हारा ध्यान।
ऐसा दे दो द्रढ़ विश्वास ,आपको समझें अपने पास ।।
करें तुम्हारा ही गुणगान , ऐसी कृपा करो भगवान्।
सुख में आपको भूल न पाएं ,दुःख आने पर न घबराएं ।।
सुख में दुःख में रहे समान ऐसी कृपा कर भगवान्।
करें जगत के सारे धन्दे ,पर धंधों के पड़े न फंदे ।।
जीवन होवे कमल समान ,ऐसी कृपा करो भगवान्
हर इक से हम करें भलाई ,किसी के साथ न करें बुराई ॥
ऐसे नेक बने इंसान ,ऐसी कृपा करो भगवान् ।
दयावान और परोपकारी ,सब के बन जायें हितकारी ।।
सारे जग का चाहें कल्याण ,ऐसी कृपा करो भगवान्।
गुण अपनाएं अवगुण छोड़ें ,झूठ ,कपट चल से मुख मोड़ें।
नम्र बनें तज कर अभिमान ,ऐसी कृपा करो भगवन।
हे जगदीश्वर अन्तर्यामी ,मिल कर हम सेवक हे स्वामी।
मांग रहे तुम से वरदान ,सब को सुमति करो प्रदान।
ऐसी कृपा करो भगवान् ।।
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